Ashwatthama: शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां है, यह नहीं बताया गया है। कहते हैं कि कलयुग के अंत में वे भगवान कल्कि के साथ मिलकर युद्ध करेंगे और फिर वे मुक्त हो जाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या अश्वत्थामा सचमुच में भी आज जीवित है?
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श्रीकृष्ण ने 3000 वर्षों तक कोढ़ी के रूप में भटकने का श्राप दिया था।
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3000 ईसा पूर्व महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लगा गया था।
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2000 वर्ष पूर्व ही श्राप की अवधि पूरी हो चुकी है।
अपने पिता के मारे जाने के बाद अश्वत्थामा बदले की आग में जल रहा था। उसने पांडवों का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा ली और चुपके से पांडवों के शिविर में पहुंचा और कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से उसने पांडवों के बचे हुए वीर महारथियों को मार डाला। केवल यही नहीं, उसने पांडवों के पांचों पुत्रों के सिर भी काट डाले।
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पुत्रों की हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। उसने पांडवों से कहा कि जिस मणि के कारण वह अजर अमर है उस मणि को उसके मस्तक पर से उतार लो। अर्जुन ने जब यह भयंकर दृश्य देखा तो उसका भी दिल दहल गया। उसने अश्वत्थामा के सिर को काटने की प्रतिज्ञा ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनकर अश्वत्थामा वहां से भाग निकला। भीम को जब यह पता चला तो वह अश्वत्थामा को मारने के लिए उसे ढूंढने निकल पड़े। उनके पीछे युधिष्ठिर भी निकल पड़े। बाद में श्रीकृष्ण और अर्जुन भी अपने रथ पर सवार होकर निकल पड़े।
पांडवों से बचने के लिए अश्वत्थामा उस वक्त धृत लगाकर कुश के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर बैठा था। वहां वेद व्यास जी के साथ अन्य ऋषि भी थे। यह भी कहा जाता है कि उसे जब यह पता चला कि अर्जुन और श्रीकृष्ण उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे आ रहे हैं तो वह वेदव्यास जी के आश्रम में पहुंच गया। तभी वहां पर अर्जुन और श्रीकृष्ण पहुंच जाते हैं। उन्हें देखकर अश्वत्थामा एक कुश को निकालकर मंत्र पढ़ने लगता है और उस कुश को ही ब्रह्मास्त्र बनाकर उसे अर्जुन पर छोड़ देता है। यह देखकर श्रीकृष्ण और वेद व्यास जी अचंभित हो जाते हैं। तब तक्षण श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करता है।
यह देखकर वेदव्यास जी घबरा जाते हैं और वह अपने बल से दोनों के ब्रह्मास्त्र को बीच में ही रोककर कहते हैं कि अपने अपने ब्रह्मास्त्र को वापस लो अन्यथा विनाश हो जाएगा। अर्जुन तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लेता है परंतु अश्वत्थामा कहता है कि मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं तब वह उस ब्रह्मास्त्र का रुख अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक पर छोड़ देता है। यह देखकर सभी अचंभित और क्रोधित हो जाते हैं।
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यह देखकर कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा- 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र तो होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवित कर दूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ 3,000 वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' वेद व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया।
तब अश्वत्थामा ने कहा, 'हे श्रीकृष्ण! यदि ऐसा ही है तो आप मुझे वह मनुष्यों में केवल व्यास मुनि के साथ रहने का वरदान दीजिए, क्योंकि मैं सिर्फ उनके साथ ही रहना चाहता हूं।' जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी।
हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3000 ईसा पूर्व महाभारत का युद्ध हुआ था। यानी आज से करीब 5000 वर्ष पहले। 2023 दिसंबर में 5160वीं गीता जयंती मनाई गई थी। यदि उपरोक्त समय को माना जाए कि 2000 वर्ष पूर्व ही अश्वत्थामा श्राप से मुक्त हो गए हैं।
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श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को नराधम कहते हुए 3,000 साल तक कोढ़ी के रूप में रहकर भटकने का श्राप दे दिया। इस शाप का वेदव्यास जी भी अनुमोदन करते हैं। -(महाभारत : सौप्तिक पर्व) अत: यहां यह सिद्ध हुआ कि श्रीकृष्ण ने कलिकाल के अंत तक नहीं, बस 3,000 वर्ष तक ही अश्वत्थामा को जिंदा रहकर दुख भोगने का शाप दिया था।
आधुनिक शोध के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था, लेकिन आर्यभट्ट के बताए समय पर भी ध्यान देने की जरूरत है। वे कहते हैं कि 3137 ईपू में महाभारत का युद्ध हुआ था। दूसरी ओर ब्रिटेन में कार्यरत न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन डॉ. मनीष पंडित ने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के संदर्भ में कहा कि महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। उन्होंने अपनी खोज के लिए टेनेसी के मेम्फिन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. नरहरि आचार्य द्वारा 2004-05 में किए गए शोध का हवाला भी दिया था।
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'माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों का इतिहास' के लेखक बालमुकुंद चतुर्वेदी इस बारे में सभी से भिन्न मत रखते हैं। वे परंपरा से प्राप्त इतिहास एवं पीढ़ियों की उम्र की गणना करने के बाद बताते हैं कि श्रीकृष्ण का जन्म 3114 विक्रम संवत पूर्व हुआ था। इस मान से अश्वत्थामा 2,000 वर्ष पूर्व ही शाप से मुक्त हो चुके हैं और अब उनके जिंदा होने की संभावना नहीं के बराबर है। ऐसे में उनके जिंदा होने के कयास लगाते रहना उचित नहीं है।
यह अलग बात है कि शाप से मुक्त होने के बाद भी अश्वत्थामा अपनी इच्छा से जिंदा हो, क्योंकि इतने हजार वर्षों तक जिंदा रहने वाला सामान्य मनुष्य भी खुद की शक्ति से ही जिंदा रहना सीख जाता होगा और वे तो अश्वत्थामा थे।