निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्री कृष्णा धारावाहिक के 8 मई के छठवें एपिसोड वसुदेव और देवकी को कारागार में बताया जाता है।
दूसरी ओर एक ओर पुत्र का जन्म होता है तो कंस को इसकी सूचना मिलती है और वह कारागार में पहुंच जाता है और वह देवकी से पुत्र को छुड़ाकर ले जाता है और उसकी हत्या कर देता है। फिर उसे चाणूर के समक्ष अट्टाहास करते हुए बताते हैं और वह कहता है कि कोई संतान जीवित नहीं रहेगी। फिर तीसरे पुत्र, चौथे, पुत्र, पांचवें पुत्र, छठें पुत्र एक एक करके सभी का वध कर देता है।
इधर, वसुदेव के पिता विष्णु भगवान की मूर्ति के समक्ष कहते हैं कि अब ओर नहीं सहा जाता। कब तक आप हमारी विनती नहीं सुनोगे? वसुदेव भी कारागार में भगवान विष्णु की प्रार्थना करते हैं।
इधर, शेषनाग भगवान से दर्शन देने की प्रार्थना करते हुए क्षीरसागर छोड़कर गोलोक पहुंच जाते हैं। श्रीकृष्ण पूछते हैं आने का कारण। शेषनाग कहते हैं कि जब आपने रामावतार लिया तो मैं आपके छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में आपकी सेवा में था। मैं चाहता हूं कि इस बार मैं आपका बड़ा भाई बनकर आपकी सेवा करूं। बस इतनी सी प्रार्थना लेकर आया हूं और आप माता देवकी के सप्तम गर्भ में जाने की आज्ञा दें। श्रीकृष्ण कहते हैं तथास्तु।
तभी रात्रि में देवकी कहती है आर्य देखिए। वसुदेव आंखें खोलकर देखते हैं। वसुदेव कहते हैं ये क्या हुआ। देवकी कहती हैं कि ऐसा लगता है कि मेरे गर्भ में एक दिव्य प्रकाश ने प्रवेश किया है। वसुदेव भी देखते हैं कि गर्भ के चारों और प्रकाश फैला हुआ है। दोनों इसे देखकर आश्चर्य करते हैं। देवकी से वसुदेव कहते हैं कि इस प्रकाश को छिपा लो। इसे कोई देख ना लें।
लेकिन तीन सैनिक इसे देख लेते हैं और वे इसकी सूचना देने के लिए कंस के पास चले जाते हैं और कंस को इसकी सूचना देते हैं। कंस यह सुनकर अचंभित होकर कहता है कि क्या कहा, देवकी के गर्भ से प्रकाश निकल रहा है? यह संभव नहीं हो सकता। यह असत्य है। सैनिक कहता है कि यह सत्य है उस प्रकाश से संपूर्ण कारागार आलौकित हो गया।
सभा में बैठे भौमासुर, वाणासुर और चाणूर को देखकर तब कंस चाणूर को कहता है सुना चाणूर तुमने? यह अवश्य ही कोई मायावी चमत्कार है। ये अवश्य विष्णु होगा। वो बड़ा ही मायावी है। इन चमत्कारों से वह हमें भरमाना चाहता है। तब चाणूर कहता है कि हो सकता है कि वह छल से सातवें गर्भ में ही आ गया हो। इस पर कंस कहता हैं हां, अवश्य यदि सचमुच विष्णु आ गया है तो वह हमारे हाथ से बचकर नहीं जा सकता। चाणूर आओ हमारे साथ।
दोनों कारागार में पहुंच जाते हैं। मुख्य कक्ष में प्रवेश करते ही बिजली कड़कती है। चकाचौंध हो जाती है। देवकी और वसुदेव भी सहम जाते हैं।
बड़ी मुश्किल से कंस भीतर दाखिल होता है और वह तलवार निकालकर देवकी को मारने ही लगता है कि एक नाग उसके मस्तक पर फन मारता है और बिजली कड़कती है। कंस कहता है कि मेरी दृष्टि। मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा चाणूर। चाणूर मुझे बाहर ले चलो, मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। जल्दी से बाहर ले चलो। सांप, सांप वो देखो सांप। वो सांप मेरी आंखों में विष डालने की चेष्ठा कर रहा है। चाणूर जल्दी से कंस को बाहर ले जाता है।
जैसे ही चाणूर कंस को पकड़कर बाहर ले जाता है तो कंस कहता है कि अंदर सांप हैं चाणूर। मुझे कुछ दिखता नहीं लेकिन यहां दिखाई दे रहा है। वह सैनिकों से कहता है कि सब लोग जाओ और उस सांप को पकड़ो और उसका सिर कुचल डालो और जैसे ही वह सांप मारा जाए तो मुझे सूचना देना। मैं वापस आऊंगा। सैनिक कक्ष में सांप को ढूंढते हैं लेकिन उन्हें कहीं सांप दिखाई नहीं देता।
बाद में वसुदेव से देवकी कहती हैं कि मुझे बहुत भय लग रहा है वो फिर वापस आएगा और हमें मार डालेगा। तब वसुदेव कहते हैं कि देवी ऐसा चमत्कार देखने के बाद भी तुम्हें भगवान पर विश्वास नहीं होता? कंस के रूप में मृत्यु तुम्हारे सामने खड़ी थी परंतु उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। विश्वास रखो तारणहार अवश्य आएंगे।
उधर, कंस जब अपने शयनकक्ष में सोया रहता है तो तभी उसे ऐसा लगता है कि उसके गालों पर सांप ने डंक मारा। वह चमककर उठ जाता है। फिर उसे लगता है कि पैरों के पास सांप है तो वह भयभीत होकर चादर हटा देता है, लेकिन वहां भी सांप नहीं रहता है। फिर वह चारों ओर देखता है।
फिर उसे खिड़की के परदे की सांप की छाया दिखाई देती है। वह डर जाता है। जैसे ही वह पर्दे को हाथ से हटाता है तो वहां पीछे एक रस्सी लटकती हुई नजर आती है। फिर उसे खिड़की के दूसरे पर्दे पर सांप नजर आता है। वह घबराकर प्रहरी को आवाज देता है। प्रहरी आते हैं तो वह अंगुली बताकर कहता हैं कि देखो वो सांप हैं वहां। तभी वह देखता है कि वहां तो कोई सांप नहीं है तो वह प्रहरियों से कहता है जाओ नहीं है। प्रहरी जाने लगते हैं तो वो उन्हें रोकता है। नहीं, मत जाओ देखो यहां सांप है, वहां भी सांप है। वह कहीं छुप गया है। किसी कोने में छुपा है। ढूढों उसे। मैं दूसरे कक्ष में जा रहा हूं।
अगले दिन सभा में कंस बताता है कि अवश्य उसने मेरे पीछे कोई नाग लगा दिया है। वह समझता है कि इससे मैं भयभीत हो जाऊंगा। हां, परंतु वह यह नहीं जानता कि कंस कोई ऐसा शत्रु नहीं जिसे वह छल से हरा देगा। एक दिन उसे मेरे सामने आकर मुझसे युद्ध करना होगा। तब चाणूर कहता है कि वह आप जैसे वीर के समक्ष कभी नहीं आएगा। उसने सदा छल से ही काम लिया है। वो बड़ा मायावी है।
तब कंस कहता है कि तो क्या हुआ हमारे पास भी बड़े मायावी है। ये कैशी है जो घोड़े का रूप धारण कर लेता है। ये कागासुर है जो कौवे का रूप धारण कर लेता है। ये बकासुर है और सबसे बड़ी मायावी तो पूतना है। यह सुनकर चाणूर कहता है कि परंतु इन सबकी कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती यदि आप मेरे परामर्श पर विचार करें तो।
तब चाणूर कहता है कि महाराज आपने अब तक वसुदेव की बातों और उसकी प्रतिज्ञा से भ्रमित होकर वृक्ष के केवल फूल और टहनियां ही काटे हैं। एक बार आप वृक्ष को जड़ से काट दीजिए। फिर न रहेगा वृक्ष और न रहेंगी टहनियां और फूल। तब कंस कहता है कि ऐसा करना वीर को शोभा नहीं देता। हमें याद है आकाशवाणी ने देवकी के आठवें गर्भ ने हमें मारने की चुनौती दी है। इसलिए हमें अष्टम गर्भ तक प्रतिक्षा करनी चाहिए। हम देवकी के अष्टम गर्भ तक हम देवकी की संतान का वध करते रहेंगे।
इधर, श्रीकृष्ण योगमाया से कहते हैं कि अब आपके धरती पर जाने का समय आ गया हैं। हे कल्याणी आप जाएं और देवकी के गर्भ में शेषनाग को वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहणी के गर्भ में स्थापित कर दें।