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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : सोमवार, 20 अप्रैल 2020 (15:43 IST)

महाभारत में द्रोणाचार्य, जानिए 5 खास बातें

महाभारत में द्रोणाचार्य, जानिए 5 खास बातें - Dronacharya in Mahabharata
भीष्म के बाद द्रोणाचार्य को सबसे अहम माना जाता है। कहते हैं कि देवगुरु बृहस्पति ने ही द्रोणाचार्य के रूप में जन्म लिया था। आओ जानते हैं कि महाभारत में द्रोणाचार्य की 5 खास बातें।
 
 
1.द्रोण का जन्म : कहते हैं कि अप्सरा घृताची को देखने से महर्षि भारद्वाज का वीर्य किसी द्रोणी में स्खलित होने से जिस पुत्र का जन्म हुआ, उसे द्रोण कहा गया। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहिन कृपि से हुआ था।

 
2. अश्‍वत्थामा के पिता : गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्‍वत्थामा। पिता- पुत्र की जोड़ी ने मिलकर महाभारत में कोहराम मचा दिया था। अश्‍वत्थामा को महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न किया गया था। द्रोणाचार्य हस्तिनापुर के राजगुरु और शिक्षक थे। 

 
3.द्रोण का वचन : उन्होंने भीष्मपितामह को वचन दिया था कि वे कौरववंश के राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे और अर्जुन को वचन दिया था कि तुमसे बड़ा कोई धनुर्धर नहीं होगा। गुरु द्रोणाराचार्य ने यह नहीं कहा था कि मैंने किसी शूद्र को शिक्षा नहीं देने का वचन दिया है। लेकिन इस घटना को कुछ लोगों के समूह ने गलत अर्थो में लिया और उस अर्थ को बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करके समाज में विभाजन किया। इस सामाजिक विभाजन को हवा देने वाले संगठन भी कौन है यह सब जानते हैं। 

 
द्रोणाचार्य ने जिस अर्जुन को महान सिद्ध करने के लिए एकलव्य का अंगूठा कटवा दिया था, उसी अर्जुन के खिलाफ उन्हें युद्ध लड़ना पड़ा और उसी अर्जुन के पुत्र की हत्या का कारण भी वे ही बने थे और उसी अर्जुन के साले के हाथों उनकी मृत्यु को प्राप्त हुए थे। द्रोणाचार्य के चरित्र को समझना अत्यंत कठिन है।

 
4. द्रोण का वध : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए जाते हैं। अश्वत्थामा के पिता द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के ‍खेमे में दहशत फैल जाती है। पिता-पुत्र मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर देते हैं। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से भेद का सहारा लेने को कहा।

 
इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्‍ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्‍वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'।

 
जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला।

 
5.गुरु द्रोण का आश्रम : गुरु द्रोण का आश्रम हस्तिनापुर में था। उन्होंने हजारों शिष्यों को शिक्षा दी। उन शिष्यों में पांडु पुत्र पांडव का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। गुरु द्रोण युद्ध से जुड़ी सभी तरह की शिक्षा देने में पारंगत थे।

 
भारत के 16 जनपदों में से एक कुरु जनपद में घुड़सवारी, धनुर्विद्या और अन्य हस्त और दिव्यास्त्रों की शिक्षा का यह प्रमुख आश्रम था। हालांकि यहां ज्योतिष, चिकित्सा और वैदिक ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती थी।

 
द्वापर युग में कौरवों और पांडवों के गुरु रहे द्रोणाचार्य भी श्रेष्ठ शिक्षकों की श्रेणी में काफी सम्मान से गिने जाते हैं। द्रोणाचार्य अपने युग के श्रेष्ठतम शिक्षक थे। द्रोणाचार्य भारद्वाज मुनि के पुत्र थे। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे। द्रोण का जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में बताया जाता है जिसे हम देहराद्रोण (मिट्टी का सकोरा) भी कहते थे। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपि से हुआ जिनसे उन्हें अश्वत्थामा नामक पुत्र मिला। द्रोण के हजारों शिष्य थे जिनमें अर्जुन को उन्होंने विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का वरदान दिया। इस वरदान की रक्षा करने के लिए ही द्रोण ने जब देखा कि अर्जुन से भी श्रेष्ठ एकलव्य श्रेष्ठ धनुर्धर है तो उन्होंने एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया।

 
महाभारत युद्ध में द्रोण कौरवों की ओर से लड़े थे। द्रोणाचार्य और उनके पुत्र अश्वथामा जब पांडवों की सेना पर भारी पड़ने लगे, तब एक छल से धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट दिया। द्रोण एक महान गुरु थे। इतिहास में उनका नाम अजर-अमर रहेगा। इसके अलावा अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन और ऐतरेय के भी गुरुकुल थे।
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