शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. मध्यप्रदेश
  4. Why BJP and Congress face to face on OBC reservation in Madhya Pradesh
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 11 मई 2022 (17:52 IST)

मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के लिए OBC आरक्षण पर सियासत क्यों है जरूरी 'मजबूरी'?

मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के लिए OBC आरक्षण पर सियासत क्यों है जरूरी 'मजबूरी'? - Why BJP and Congress face to face on OBC reservation in Madhya Pradesh
भोपाल। मध्यप्रदेश में ओबीसी को लेकर सियासत फिर गर्मा गई है। सुप्रीम कोर्ट के बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत और निकाय चुनाव कराने के फैसले के बाद अब सत्तारूढ़ दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ही ओबीसी वर्ग को लुभाने में जुट गई है। दोनों ही दलों ने प्रस्तावित निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी टिकट देने का एलान कर दिया है। वहीं दोनों ही दल एक दूसरे को पिछड़ा वर्ग विरोधी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है।   
 
दरअसल मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के 27 फीसदी का आरक्षण सियासी दलों की गले की फांस बना हुआ है। इसके चलते प्रदेश में लगभग ढाई साल से पंचायत और निकाय चुनाव नहीं हो सके है। पिछले साल नवंबर में मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव कराने का ऐलान भी कर दिया था, लेकिन ओबीसी आरक्षण को लेकर चुनाव फिर से निरस्त हो गए थे। 
 
OBC को 27 फीसदी टिकट देने का एलान- बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस और भाजपा ने 27 फीसदी टिकट ओबीसी वर्ग को देने का एलान किया है। कांग्रेस ने ओबीसी वर्ग को रिझाने के लिए निकाय चुनाव में 27 फीसदी टिकट ओबीसी वर्ग को देने का एलान किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण पर भाजपा सरकार को घेरते हुए कहा कि हमें बीजेपी सरकार से कोई उम्मीद नहीं है। बीजेपी ने ओबीसी आरक्षण के लिये 2 साल में कोई प्रयास नहीं किया, कोई क़ानून नहीं लाये। कांग्रेस पार्टी ने तय किया है कि आने वाले निकाय चुनावों में हम 27% टिकट ओबीसी वर्ग को देंगे।
 
वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने कहा कि पार्टी चुनाव में 27 फीसदी से ज्यादा टिकट ओबीसी वर्ग को देगी। उन्होंने कहा कि जहां जरूरत होगी वहां भाजपा इससे ज्यादा टिकट ओबीसी वर्ग को देने से पीछे नहीं हटेगी। वीडी शर्मा ने कहा कि भाजपा पंचायत के साथ अन्य चुनावों में भी ओबीसी कार्यकर्ताओं को टिकट देने का काम करेगी।  

सियासी दलों के इस एलान को भी सुप्रीम कोर्ट की ओबीसी आरक्षण से जुड़ी एक टिप्पणी से भी जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो भी पॉलिटिकल पार्टी ओबीसी की पक्षधर हैं, वो सभी सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उम्मीदवार उतारने के लिए स्वतंत्र है। 
 
OBC पर संविधान संशोधन बिल की भी उठी मांग?- इस बीच कांग्रेस ने ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग कर दी है। 'वेबदुनिया' से बातचीत में पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल कहते हैं कि अगर भाजपा सरकार की मंशा वकाई ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने की है तो विधानसभा का विशेष सत्र तत्काल बुलाया जाए और सरकार संविधान में संशोधन के लिए प्रस्ताव भेजे। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
 
कांग्रेस के संविधान संशोधन की मांग पर भाजपा प्रवक्ता डॉ. हितेष वाजपेयी 'वेबदुनिया' से बातचीत में कहते हैं कि अब पूरा विषय न्यायपलिका के विचाराधीन है और सब कुछ न्यायालय के डायरेक्शन में होना है। जहां तक कांग्रेस की मांग का सवाल है तो विधानसभा अपना काम कर चुकी है। कांग्रेस इस विषय को भुनाने और भटकाना चाहती है और भाजपा इसको सहीं रास्ते पर लाना चाहती है
 
OBC आरक्षण और उसका राजनीतिक असर- भाजपा और कांग्रेस का ओबीसी वर्ग को लेकर आमने-सामने होने का बड़ा कारण इसकी संख्या है। प्रदेश में लगभग आधी आबादी वाले इस वोट बैंक को नज़रअंदाज़ करने का जोखिम कोई भी दल नहीं लेना चाहता है।

अगर पिछले दिनों मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को सही माना जाए तो प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79 प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटरों की केवल पंचायत और निकाय चुनाव में नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका होने जा रही है और कोई भी राजनीतिक दल चुनाव से ठीक पहले ओबीसी वोटर को नाराज नहीं कर सकता है।
 
 
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी सियासत पर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं इस पूरे मामले को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। के. कृष्णमूर्ति बनाम भारत संघवाद (2010) में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने पंचायतों और नगर निकायों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने वाले अनुच्छेद 243D(6) और अनुच्छेद 243T(6) की व्याख्या की थी इसमें सर्वोच्च न्ययालय ने यह माना था कि राजनीतिक भागीदारी की बाधाएँ, शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को सीमित करने वाली बाधाओं के समान नहीं हैं। इस मामले में कोर्ट ने ओबीसी वर्ग को आरक्षण की बात कही थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी वाद में दिए गए निर्णय के मुताबिक किसी भी हालत में राज्यों को आरक्षण देते वक़्त 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है।
 
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता आगे कहते हैं कि ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण की बात कहकर इसकी आड़ में असल में सरकार चुनाव कराने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बच रही है। इस पूरे मामले को अनावश्यक रूप से तूल दिया जा रहा है। सरकार की पूरी कोशिश है कि चुनाव किसी तरह रुक जाए, लेकिन किसी एक राज्य के लिए ऐसा संभव नहीं होगा। इस मामले पर भाजपा और कांग्रेस के बीच पॉलिटिकल नूराकुश्ती देखने को मिल रही है। 
ये भी पढ़ें
Tata Motors की Nexon EV Max की धमाकेदार इंट्री, सिंगल चार्ज में 437 km की रेंज, जानिए क्या है कीमत