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Written By विशेष प्रतिनिधि
Last Updated : सोमवार, 3 अक्टूबर 2022 (14:33 IST)

72 घंटे की भू-समाधि के बाद बाहर निकले पुरुषोत्तमानंद, कहा- माता रानी से हुआ साक्षात्कार

72 घंटे की भू-समाधि के बाद बाहर निकले पुरुषोत्तमानंद, कहा- माता रानी से हुआ साक्षात्कार - Purushottamand came out outside the 72-hour Bhoomi Samadhi
भोपाल। राजधानी में तीन दिन पहले भू-समाधि लेने वाले स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज आज सकुशल समाधि से बाहर आ गए। समाधि से बाहर आने पर पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कहा कि जनकल्याण के लिए उन्होंने भू-समाधि ली थी। राजधानी भोपाल के पॉश इलाके टीटी नगर में माता मंदिर के पीछे आध्यात्मिक संस्था के संस्थापक बाबा पुरुषोत्तमानंद महाराज ने 10 दिन से अन्न-जल का त्याग करने के बाद बीते 30 सितंबर को भूमिगत समाधि ली थी। आज समाधि के तीन दिन बाद पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करके स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज को साधु-संतों ने बाहर निकाला।
 
भू-समाधि से बाहर आने के बाद बाबा पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कहा कि वह बचपन से ही मां भगवती की आराधना कर रहे हैं और खुद मां भगवती ने खुद उन्हें समाधि के लिए प्रेरणा दी थी। जिसके बाद उन्होंने नवरात्रि में भूमिगत समाधि का फैसला लिया था। समाधि से बाहर निकलने के बाद पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कहा सभी भक्त अपने विचारों में भक्ति भाव लाकर एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल हो। 

भू-समाधि के लिए दरबार परिसर में पांच फीट चौड़ा, छह फीट लंबा और सात फीट गहरा गड्ढा समाधि स्थल के रूप में तैयार किया गया। जिसमें पुरुषोत्तमानंद महाराज ने ध्यानमुद्रा बनाकर आसन लगाया। इसके बाद गड्ढे को लकड़ी के पट्टियों से ढंक दिया गया। उस पर कपड़ा बिछाकर मिट्टी बिछा दी गई। आज 72 घंटे बाद पूजा पाठ के बाद समाधि को खोला गया और बाबा बाहर आ गए। 

पुरुषोत्तमानन्द महाराज के शिष्य रूपनारायण शास्त्री ने बताया कि समाधि में बैठने के लिए बाबा ने अन्न-जल त्याग किया था और इसके बाद भी समाधि के दौरान महाराज जी को कोई परेशानी नहीं हुई और वह पूरी तरह स्वस्थ है।

वहीं हैरत की बात यह है कि पुरुषोत्तमानंद महाराज तीन दिन तक भू समाधि ली लेकिन प्रशासन इस पूर पूरी तरह मौन रहा। समाधि की अनुमति ना लेने को लेकर महाराज पुरुषोत्तमानंद महाराज का कहना था कि उन्होंने समाधि लेने के लिए प्रशासन से लिखित में अनुमति मांगी थी, लेकिन नहीं मिली। उधर जिला प्रशासन का कहना है कि बाबा की ओर से भागवत कथा और दूसरे धार्मिक आयोजन के लिए अनुमति मांगी गई थी।