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Last Modified: गुरुवार, 30 अगस्त 2018 (17:00 IST)

SC-ST एक्ट का पोस्टर लगाकर विरोध, केन्द्र सरकार के खिलाफ गुस्सा

SC-ST एक्ट का पोस्टर लगाकर विरोध, केन्द्र सरकार के खिलाफ गुस्सा - Oppose of SC/ST act
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ SC-ST एक्ट में संशोधन के बिल को संसद की हरी झंडी मिलने के बाद अब लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है। मध्यप्रदेश के महू कस्बे में लोगों ने अपने घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर पोस्टर लगा लिए हैं। 
 
इंदौर के समीप महू में लगाए गए इन पोस्टरों पर लिखा है कि हमारा परिवार सामान्य वर्ग अथवा पिछड़ा वर्ग का है परिवार है। हम SC-ST संशोधन बिल का विरोध करते हैं। बताया जा रहा है कि इस तरह के पोस्टर 50 रुपए में लोगों को दिए जा रहे हैं, जिन्हें वे अपने घरों और दुकानों पर स्वेच्छा से लगा रहे हैं। 
 
फिलहाल यह अभियान सीमित दायरे में है। अभी 40 से 50 घरों में पोस्टर लगे हैं। इसे ग्रामीण इलाकों तक भी पहुंचाने की भी योजना है। इस संबंध में इस अभियान को शुरू करने वाले संजय विजयवर्गीय का कहना है कि SC-ST एक्ट का दुरुपयोग ज्यादा होता है और संशोधन बिल आने के बाद तो इसका दुरुपयोग पहले से और ज्यादा बढ़ गया है। अत: इस पर रोक लगनी चाहिए। 
 
विजयवर्गीय ने कहा कि अभी यह अभियान महू के बाजारों और घरों तक सीमित है। जल्द ही आसपास के ग्रामीण इलाकों में भी इस तरह के पोस्टर लगाए जाएंगे। इसके बाद इसे सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश में फैलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह विरोध पूरी तरह स्वैच्छिक है। इसको लेकर किसी पर दबाव नहीं है। इससे जुड़े लोग सभी राजनीतिक विचारधाराओं के लोग हैं। 
 
एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि इस बिल का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी देखने को मिलेगा। इनका कहना था कि मैं लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट नहीं दूंगा। इस तरह के और भी लोग हैं जो विरोध का मन बना रहे हैं।

गैरजमानती अपराध : इस एक्ट के तहत इस एक्ट के तहत किसी को जातिगत आधार पर अपमानित करने को गैर जमानती अपराध माना गया है। शीर्ष अदालत ने इसी साल 19 मई को एससी-एसटी ऐक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। बड़े पैमाने पर इस कानून के बेजा इस्तेमाल का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया था। 

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर में दलित संगठन गुस्सा जताते हुए सड़क पर उतर आए थे। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान तमाम संगठनों ने सरकार से अदालत के फैसले को पलटने की अपील की थी और फैसले को दलितों के खिलाफ करार दिया था।
 
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