गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. मध्यप्रदेश
  4. Focus on Dalits, OBC and Tribals in Bahujan politics in Madhya Pradesh
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 13 फ़रवरी 2023 (13:19 IST)

मध्यप्रदेश में बहुजन की राजनीति का शंखनाद, दलित के साथ ओबीसी और आदिवासी पर फोकस

मध्यप्रदेश में बहुजन की राजनीति का शंखनाद, दलित के साथ ओबीसी और आदिवासी पर फोकस - Focus on Dalits, OBC and Tribals in Bahujan politics in Madhya Pradesh
भोपाल। साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कई तरह के सियासी रंग देखे जा रहे है। चुनाव में भले ही अभी आठ महीने का समय शेष बचा हो लेकिन सियासी दलों ने चुनावी शंखनाद कर दिया है। प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर बहुजन की राजनीति सियासत के केंद्र में आ गई है। बहुजन की राजनीति का मतलब है कि पिछले वर्ग और दलितों की राजनीति। वहीं प्रदेश में बहुजन की राजनीति में पिछड़े और दलितों के साथ आदिवासी वोट बैंक भी जुड़ गया है।

बहुजन की राजनीति जो बिहार और उत्तरप्रदेश की राजनीति लंबे समय से सियासत के केंद्र में रही है वहप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले बहुजन की राजनीति केंद्र में आ गई है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है सियासी दलों में आदिवासी के साथ-साथ दलित और ओबीसी वर्ग को रिझाने की होड़ मच गई है। जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही कास्ट पॉलिटिक्स के सहारे अपने वोट बैंक को मजबूत कर 2023 का चुनावी रण फतह करने की तैयारी में दिखाई दे रही है। वहीं अन्य छोटे दल भी अपना पूरा सियासी दमखम दिखाने लगे है। गए है।

बिखरे दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश?- बहुजन की राजनीति का मुख्य आधार दलित है और प्रदेश में दलित वोट बैंक 17 फीसदी है। विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के साथ यह वोट बैंक एकमुश्त जाता है उसकी सत्ता की राह आसान हो जाती है। प्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) के लिए 35 सीटें रिजर्व है,वहीं प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते है। विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोट बैंक को साधने के लिए सियासी दल पूरा जोर लगा रहे है। रविवार को भोपाल में भीम आर्मी ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर दलित वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश की।

दलित और आदिवासी गठजोड़ से निकलेगा सत्ता का रास्ता?- 2023 के विधानसभा चुनाव में दलित और आदिवासी वोट बैंक ही सियासी दलों के लिए सत्ता का रास्ता तय करेगा। मध्यप्रदेश में बहुजन की राजनीति में दलित के साथ आदिवासी भी एक अहम हिस्सा बन जाता है। प्रदेश की कुल आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।

चुनाव में आदिवासी वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा और कांग्रेस अपना पूरा जोर लगा रहे है। भोपाल में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने आदिवासी मुख्यमंत्री का बड़ा दांव चला है। भीमा आर्मी की राजनीतिक विंग आजाद समाज पार्टी के बैनर तले हुए प्रदर्शन में चंद्रशेखर ने कहा कि प्रदेश में जो एससी और एसटी वर्ग मुख्यमंत्री बनाने का काम करते है क्यों न उनका मुख्यमंत्री हो। सभा में चंद्रशेखर ने हम प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का काम करेंगे। इसके साथ चंद्रशेखर ने एसी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग से एक-एक डिप्टी सीएम बनाने  का फॉर्मूला पेश किया।दरअसल इस फॉर्मूले के सहारे चंद्रशेखर ने दलित के साथ आदिवासी,ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के अपने पाले में लाने की कोशिश की है। 

चुनाव से पहले आदिवासी वर्ग को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस भी पूरा जोर लगा रही है। रविवार को आदिवासी समाज के बड़े संगठन जयस के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से मुलाकात कर समर्थन का एलान किया। जयस के प्रतिनिधिमंडल ने कमलनाथ के नेतृत्व में आस्था जताते हुए चुनाव में कांग्रेस के समर्थन की बात कही। गौरतलब है कि जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर विधायक है। वहीं पिछले सप्ताह शुक्रवार को आदिवासी समाज के डिलिस्टिंग के मुद्दे पर भोपाल में हुए आंदोलन में सरकार के मंत्री और आरएसएस से जुड़े संगठन के लोग नजर आए।

ओबीसी पर सबकी नजर?-बहुजन की राजनीति में दलित,आदिवासी के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग का गठजोड़ सियासी दलों के भविष्य का फैसला कर देता है। मध्यप्रदेश में ओबीसी वोट बैंक पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर है। पिछले दिनों सरकार की आई एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। वहीं मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79 प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटर 2023 विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका निभाने जा रहे है। 

ओबीसी वोटरों को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस किस तरह आतुर है इसका नजारा पिछले दिनों कि पंचायत और निकाय चुनाव में दिखाई दिया जब ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे। वहीं दोनों ही दलों ने चुनावी मैदान में बड़ी संख्या में ओबीसी वर्ग को टिकट देकर उनको साधने की कोशिश की। 

बहुजन की राजनीति में भाजपा की सेंध-मध्यप्रदेश में बहुजन की राजनीति के सहारे कांग्रेस सहित अन्य छोटे दल भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में जुटे हुए है वहीं भाजपा और आरएसएस बहुजन की राजनीति के विपक्ष दलों के बड़े आधार में सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रही है। बहुजन की राजनीति के लिए भाजपा हिंदुत्व के साथ जातीय चेतना और लाभार्थी का कार्ड खेल रही है।

आदिवासियों (बहुजनों) के हिंदुत्वीकरण के लिए पिछले दिनों बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस मनाने साथ आमू आखा हिंदू छे! को लेकर बड़े कार्यक्रम किए गए। इसके साथ पिछले सप्ताह भोपाल में डिलिस्टिंग को लेकर आदिवासियों का बड़ा कार्यक्रम करके उनमें जातीय चेतना और जातीय अस्मिता बोध का तुष्टीकरण के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ भाजपा बहुजन के एक बड़े वर्ग को लाभार्थी वोट बैंक में तैयार करके इस बड़े वर्ग में सेंध लगाकर सियासी राह आसान बना रही है।   

प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा छिटकते दलित वोट बैंक को अपने साथ एक जुट रखने के लिए दलित नेताओं को आगे बढ़ रही है। बात चाहे बड़े दलित चेहरे के तौर पर मध्यप्रदेश की राजनीति में पहचान रखने वाले सत्यनारायण जटिया को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शामिल करना हो या जबलपुर से सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा भेजना हो। भाजपा लगातार दलित वोटरों को सीधा मैसेज देने की कोशिश कर रही है।