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Written By Author कीर्ति राजेश चौरसिया

यहां खुलेआम होता है लाखों-करोड़ों का जुआ...

यहां खुलेआम होता है लाखों-करोड़ों का जुआ... - Damoh Sankranti Mela, Madla village, Damoh
दमोह। मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड अंचल के दमोह जिले के मडला गांव में संक्रांति पर लगने वाला यह मेला एक विवादित और बदनाम मेला है। इस मेले में जाने से कई लोग घबराते हैं क्योंकि इस मेले में होता है ऐसा काम, जिससे लोग बेवजह हो जाते हैं बदनाम।
खुलेआम होता है यहां जुआ, नहीं होती कार्यवाही : दरअसल मेले में खुलेआम बेड़नियों द्वारा नाच के साथ ही लाखों-करोड़ों का जुआ भी खेला जाता है। जुए के मामले में इसे अगर मध्यप्रदेश का लास वेगास कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यहां 100 से भी ज्यादा काउंटर जुए के चल रहे होते हैं। यहां कार्यवाही के नाम पर पुलिस तो क्या कोई  परिंदा भी, पर नहीं मार सकता।
 
मेला समिति कमाती है तगड़ा कमीशन : राई बुंदेली नाच को देखने के लिए भीड़ इकट्ठा की जाती है और फिर होता है जुए का खेल। देखा जाए तो मेले को स्थानीय नेताओं, जनप्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त है। 5 दिन चलने वाले इस मेले में जुए का बड़ा कारोबार होता है।
 
पुलिस प्रशासन के उदासीन रहने के कारण हर साल होने वाले इस मेले में जिले के लोग अपनी मेहनत की गाड़ी कमाई हार जाते हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो इस मेले में पैसों के लालच में जीवन की पूंजी हारे और फिर जीवनभर कभी पनप नहीं पाए।
 
यहां रहते हैं देशी बाउंसर, पत्रकारों की नो इंट्री : संस्कृति और परंपरा की आड़ में चल रहा यह गोरखधंधा कई वर्षों से चला आ रहा है। खास बात तो यह है कि मेला समिति में 200 से भी ज्यादा बाउंसरों की फौज केवल इसी बात का ध्यान रखती है कि कहीं कोई वीडियो या फोटो तो नहीं खींच रहा। यहां तक कि पुलिस भी फोटो वीडियो बनाने वालों को ऐसा करने से रोकती है। 
 
मजे की बात तो यह है कि दमोह जिले की पथरिया विधानसभा के विधायकजी का यह गृह ग्राम है और विधायकजी इस कार्यक्रम के संयोजक मंडल के रूप में रहते हैं। संक्रांति से लेकर 4 दिन तक लगने वाले इस मेले में कई प्रकार के जनप्रतिनिधियों का जमावड़ा रहता है। पुलिस भी मेले में व्यवस्था के तौर पर मौजूद रहती है, लेकिन एक जुआ के फड़ों (टेबलों) पर किसी भी प्रकार का लगाव नहीं होता। 
 
दमोह शहर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर यह इतना बड़ा खेल चलता है। इन 4 दिनों में 4 से 5 करोड़ रुपए का टर्नओवर जुआरी कर ले जाते हैं, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा मेला आयोजन समिति के हाथों में भी आ जाता है।
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