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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 14 अप्रैल 2022 (19:38 IST)

शांति के टापू मध्यप्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ना 'संयोग' या 'प्रयोग'?

शांति के टापू कहलाने वाले मध्यप्रदेश में आखिरी क्यों लगातार बिगड़ रहे है हालात, मालवा-निमाड़ में हिंसा की वारदातों की सीरिज की पूरी पड़ताल

शांति के टापू मध्यप्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ना 'संयोग' या 'प्रयोग'? - Cover story on disturbing communal harmony in Madhya Pradesh
शांति का टापू कहा जाने वाले मध्यप्रदेश की फिजा इन दिनों अशांत है। रामनवमी पर राज्य के खरगोन और बड़वानी जिले के सेंधवा में दो गुटों में हुई हिंसक झड़प और आगजनी के बाद मध्यप्रदेश देश भर में सुर्खियों के केंद्र में बना हुआ है। खरगोन में रामनवमी पर हुए दंगे के बाद आज चौथे दिन प्रशासन ने दिन में दो बार कर्फ्यू ढील दी है। ढील के दौरान केवल महिलाओं को ही घरों से बाहर निकलने की अनुमति दी गई और केवल दूध, सब्जी, किराना और मेडिकल की दुकानें खुली रही। 
खरगोन में भले ही अब हालात धीरे-धीरे सामान्य होते हुए दिख रहे है लेकिन रामनवमी को हुए दंगे के जख्म अभी भी लोगों को दिलों में ताजा है। गंगा-जमुनी तहजीब वाले मालवा-निमाड़ में आने वाले खरगोन और बड़वानी जिले के सेंधवा में जिस तरह से सांप्रदायिक सौहार्द को तार-तार कर दिया गया इसका असर लंबे समय तक रहेगा। 
खरगोन दंगा 'संयोग' या 'प्रयोग'?- खरगोन दंगे की पहले से प्लानिंग के इनपुट भी जांच के दौरान मिल रहे है। इंटेलिंजेंस के हाथ इस बात के इनपुट लगे है कि हिंसा को लेकर पहले से प्लानिंग की गई थी और एक प्लान के तहत घटना को अंजाम दिया गया। इस मामले में इंटेलिजेंस जमात ए मुजाहिद्दीन और सिमी जैसे संगठनों के तार खंगाल रही है। खरगोन घटना के बाद गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि उपद्रवी बड़ी साजिश को अंजाम देना चाहते थे लेकिन मप्र पुलिस की जांबाजी के कारण वे अपने मंसूबे में सफल नहीं हो पाए।

खरगोन दंगे का PFI कनेक्शन?- वहीं खरगोन में रामनवमी पर हुए हिंसक दंगे के तार अब कट्‌टरवादी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़ते हुए दिखाई दे रहे है। शुरुआती जांच में हिंसा में पीएफआई फंडिग के बात भी सामने आ रही है। इसके पहले इंदौर में थाने के घेराव की घटना में भी पीएफआई का नाम सामने आ चुका है।

गौरतलब है कि पीएफआई का नाम दिल्ली दंगों में भी सामने आया था इसके साथ लगातार हिंसा के मामलों में भी पीएफआई का नाम जुड़ता आया है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 23 फरवरी से 26 फरवरी 2020 के बीच फैले हिंसक दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस ने अदालत में जो प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पेश की, उसमें भी इस बात का जिक्र था कि दंगे में पीएफआई का भी हाथ था। वहीं CAA के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान जब दिल्ली में दंगे हुए थे तब पीएफआई का ही नाम सामने आया था।

संवेदनशील मालवा-निमाड़ में हिंसा की सीरिज?-अगर सांप्रदायिक स्थितियों पर गौर किया जाए तो मालवा-निमाड़ हमेशा से काफी संवेदनशील रहा है। प्रदेश के मालवा-निमाड़ इलाके में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश को लेकर लगातार मामले सामने आते रहे है। मालवा-निमाड़ के बड़े जिले उज्जैन, इंदौर, मंदसौर, खंडवा, खरगोन और बड़वानी में पिछले दो साल में सांप्रदायिक हिंसा और तनाव की घटनाएं सामने आती रही है। 
चाहे बात इंदौर में चूड़ी बेचने वाले मुस्लिम युवक की भीड़ के द्धारा बेरहमी से पिटाई करने की घटना की हो या उज्जैन के महिदपुर में असामाजिक तत्वों ने कबाड़ का काम करने वाले अब्दुल रशीद की पिटाई करने के साथ डरा-धमकाकर धार्मिक नारे लगवाने की रही हो। इसके साथ इंदौर और मंदसौर में अयोध्या में बनने वाले मंदिर के लिए चंदा मांगने की घटना के दौरान भी पथराव की घटना भी सामने आई थी लेकिन प्रशासनिक तत्परता और सूझ-बूझ से कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी।

पिछले साल उज्जैन में हिंदूवादी संगठनों की रैली के दौरान हिंसा और पथराव की घटना हुई थी लेकिन प्रशासन ने समय रहते हुए उसे काबू में कर लिया था। हिदू संगठनों की रैली पर हुए पथराव के बाद दूसरे पक्ष के 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त सूबे के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पहली बार एलान किया था कि जिस घर से पत्थर आए है उस घर के पत्थर निकाल दिए जाएंगे। उज्जैन की घटना में संभवत मध्यप्रदेश में पहली बार आरोपियों के घर को बुलडोजर से जमीदोंज किया गया था।

अब तक छिटपुट या इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर बीते कुछ सालों से दंगे जैसे बदनुमा दाग मध्यप्रदेश के दामन पर नहीं लगे थे। लेकिन बीते रामनवमी के जुलूस के दौरान खरगोन में हिंसा और आगजानी के घटना के बाद दंगा का बदनुमा दाग मध्यप्रदेश के माथे पर आखिरीकार लग ही गया। खरगोन के साथ-साथ बड़वानी जिले के सेंधवा में भी सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की गई।  
अशांत मध्यप्रदेश में ध्रुवीकरण की सियासत?-शांति का टापू कहा जाने वाला मध्यप्रदेश में भले ही सांप्रदायिक तनाव को लेकर आम जनमानस अशांत है लेकिन सूबे के सियासी दल इस पर अपनी सियासी रोटिंया सेंकने से नहीं चूक रहे है। अशांत मध्यप्रदेश में सियासी दल जमकर अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे है।

सियासी रोटिंया सेंकने का बड़ा कारण मालवा-निमाड़ की सूबे की सियासत में अपना रसूख होना है। मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा वाली सीटों में मालवा-निमाड़ की 66 सीटों के चुनाव परिणाम ही तय करते है कि सत्ता में कौन बैठेगा? ऐसे में जब अगले साल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है तब भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही खरगोन हिंसा के बहाने अपना ध्रुवीकरण कार्ड खेल दिया है।

खरगोन हिंसा के बाद जिस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दंगाईयों के घरों पर बुलडोजर चलाने का एलान हर मंच से करते हुए नजर आ रहे है और कांग्रेस जिस तरह से सरकार की कार्रवाई को एक पक्ष को जानबूझकर निशाना बनाने का कहकर प्रचारित कर सियासी माइलेज लेने ही होड़ में जुटी हुई वह किसी से छिपा नहीं है।

खरगोन हिंसा पर ओवैसी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि “ओवैसी साहब वहीं से चिल्ला रहे है, मध्यप्रदेश में ये हो रहा है, आके तो देख भैया। ये मेरा मध्यप्रदेश है,यहाँ सब सुरक्षित हैं किसी जाति और धर्म के हो, यहां कार्रवाई होगी तो गड़बड़ करने वालों के खिलाफ़ होगी।

गुरूवार को भोपाल में अंबेडकर जयंती के कार्यक्रम में बोले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिनने घर जलाये हैं उनके खिलाफ़ कार्रवाई होगी। लेकिन जिनके घर जले हैं, वो चिंता न करें,मामा फिर से घर बनवाएगा। अभी तो हम करेंगे,लेकिन बाद में जिन्होंने जलाये हैं उनसे वसूल करूँगा छोडूंगा नहीं।

ऐसे में जब मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपनी सियासी गोटियां सेट करने लगे है तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ओवैसी को मध्यप्रदेश आने का न्योता देना बताता है कि आने वाले समय में मध्यप्रदेश में ध्रुवीकरण की सियासत और तेज होगी।