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Written By Author वेबू
Last Updated : मंगलवार, 6 दिसंबर 2022 (17:39 IST)

गुजरात के बाद अब मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला हैं!

गुजरात के बाद अब मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला हैं! - After Gujarat something big is going to happen in Madhya Pradesh politics!
गुजरात विधानसभा चुनाव खत्म होते ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 2023 में राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति बनाने में जुट गया है। सोमवार और मंगलवार को दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में दो दिन तक राष्ट्रीय पदाधिकारियों की चिंतन बैठक हुई जिससे निकलकर आ रही खबरों के मुताबिक बैठक में आगामी चुनाव को लेकर पार्टी का ब्लूप्रिंट भी तैयार हुआ।

अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने है उसमें भाजपा के गढ़ के रूप में देश की राजनीति मे पहचान रखने वाला मध्यप्रदेश भी है। गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद क्या मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है अब सबकी निगाहें इस पर लग गई है।

विधानसभा चुनाव को देखते हुए मध्यप्रदेश में सियासत के केंद्र में आ गया है और प्रदेश में वोटर्स को लुभाने की कवायद शुरु हो गई है। गुजरात में जिस तरह से आदिवासी बाहुल्य वाले जिलों में बंपर वोटिंग की खबरें आई है उससे अब भाजपा ने आदिवासी वोटर पर अपना फोकस कर दिया है।

पिछले दिनों प्रदेश के आदिवासी अंचल में जिस तरह से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा निकली उसको देखकर भाजपा हाईकमान प्रदेश में आदिवासी वोटर्स को भाजपा से जोड़ने के लिए आदिवासी नेतृत्व को आगे बढ़ाने पर पूरा फोकस कर रहा है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते में प्रदेश में भाजपा संगठन और सरकार में आदिवासी वर्ग की भागीदारी बढ़ाने को लेकर सियासी चर्चा तेज हो गई है। 
आदिवासी वोटरों को रिझाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जहां पिछले दिनों पेसा कानून लागू कर खुद को उसका सबसे बड़ा मास्टरट्रेनर बता दिया है तो दूसरी संगठन की ओर से पिछले दिनों भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी आदिवासी बाहुल्य धार और झाबुआ का दौरा कर संगठन को रिचार्ज करने की कोशिश की।

मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले भाजपा संगठन और सरकार में लगातार फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही है और अब गुजरात चुनाव के बाद उन अटकलों का एक तरह से लिटमस टेस्ट आ गया है।

आदिवासी नेतृत्व नहीं होने का खामियाजा भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था।  2023 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा आने वाले दिनों में आदिवासी समुदाय से आने वाले किसी नेता को बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर आदिवासी वोट बैंक को सीधा संदेश दे सकती है।

दरअसल भाजपा की नजर आदिवासी के उन चेहरों पर टिकी हुई है जिनकी आदिवासी समाज में एक साफ सुथरी छवि है। अगर मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रमुख आदिवासी चेहरों की बात करें उसमें संघ की पंसद के तौर पर देखे जाने वाले राज्यसभा सांसद सुमेर सिहं सोलंकी का नाम सबसे आगे आता है। सुमेर सिंह सोलंकी को लेकर प्रदेश के सिसायी गलियारों में लगातार कई प्रकार की अटकलें भी लगाई जाती रही है। आदिवासी वोटरों को रिझाने के लिए भाजपा ने सुमेर सिंह सोलंकी को राज्यसभा में भेजा था

आदिवासी वोट बैंक को लेकर संघ भी लगातार अपनी चिंता जताता है। संघ के पदाधिकारियों ने आदिवासी क्षेत्रों में अपने प्रवास शुरु कर दिए है। अगर देखा जाए तो मध्यप्रदेश जहां आदिवासी वोट बैंक 70-80 विधानसभा सीट में जीत हार तय करते है वहां भाजपा ने आदिवासी चेहरों को प्रदेश की राजनीति में फ्रंट पर लाना शुरु कर दिया है। अगर ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आदिवासी नेतृत्व को आगे बढ़ाने को लेकर भाजपा हाईकमान कोई बड़ा लें तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता।  
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