क्या है पहला कारण, जानिए अगले पन्ने पर..
क्या मोदी का जादू चला, अगले पन्ने पर..
* मोदी की ज्यादा सभाएं : राज्य में पार्टी की जीत का एक कारण नरेन्द्र मोदी की सभाएं भी हैं। शिव की चतुराई से इन सभाओं को इस तरह से आयोजित किया गया कि कहीं भी मोदी और मुख्यमंत्री एकसाथ नहीं दिखे।
लोग यह समझते रहे कि यह दो दिग्गजों के टकराव की वजह से हो रहा है, पर मुख्यमंत्री को पता था कि अगर वे मोदी से अलग सभा करते हैं तो भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू होगा और कही भी प्रचार अभियान कमजोर नहीं होगा। इसी वजह से प्रदेश में मोदी का भरपूर उपयोग किया गया। इससे राज्य में माहौल भी बना और वे स्वयं भी ज्यादा से ज्यादा सभाएं कर पाएं। माना जा रहा है कि महिला वोटरों के बीच शिवराज और युवा मतदाताओं में मोदी के फैक्टर ने काम किया।
क्या विकास ने जीताया शिवराज को, अगले पन्ने पर..
क्या अधिक मतदान बना जीत का कारण, अगले पन्ने पर
* अधिक मतदान : इस बार चुनावों में उम्मीदवारों की भारी-भरकम संख्या (2,583) रही लेकिन सबको अचरज था प्रदेश में हुए रिकॉर्डतोड़ मतदान देखकर। इस बार मध्यप्रदेश में कुल 72.52 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, जो राज्य के गठन के बाद 57 सालों में सबसे ज्यादा है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 6 सीटों पर 80 फीसदी से ज्यादा वोट दर्ज हुए, जो आदर्श मतदान माना जाता है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों ने इसे अपने पक्ष में हुआ जनादेश बता सुर्खियां बटोरने की कवायद की। अक्सर ज्यादा मतदान के मायने सत्ता पक्ष के खिलाफ माने जाते हैं लेकिन एक बार फिर यह बात गलत साबित हुई और भाजपा ने मध्यप्रदेश में अपनी तीसरी पारी का शानदार आगाज किया।
बेहतर चुनावी प्रबंधन का खेल, अगले पन्ने पर..
* बेहतर चुनावी प्रबंधन : विधानसभा चुनाव को लेकर समयबद्ध तैयारी और बेहतर प्रबंधन ने भी पार्टी की राह आसान कर दी। एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड मतदाता पंजीयन हुआ है। यदि देश के दूसरे राज्यों में मतदाता बढ़ने का औसत तकरीबन 10 रहा तो मध्यप्रदेश में 28 फीसदी नए मतदाता बने।
भाजपा ने पूरे प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का अभियान शानदार तरीके से चलाया। हालत यह थी कि कांग्रेस प्रत्याशी जब पार्टी का टिकट लेकर विधानसभा में पहुंचे तो मतदाता सूची देखकर कइयों के होश उड़ गए। कार्यकर्ताओं को पार्टी का साफ निर्देश था कि अपना वोटर मतदाता सूची में जगह पाए और वोटिंग के दिन किसी भी हालत में मतदान जरूर करे। साथ ही जिन इलाकों में भाजपा के उम्मीदवार पिछले चुनाव में बहुत मामूली अंतर से जीते या हारे थे वहां जमीनी कार्यकर्ता सक्रिय थे और इन इलाकों के मतदाताओं की बढ़ी हुई संख्या ने बचा-खुचा काम कर दिया।
क्या उमा की वापसी काम कर गई...
कांग्रेस की आपसी फूट बनी भाजपा की जीत का कारण..
* बिखरी हुई थी कांग्रेस : इस चुनाव में कांग्रेस बिखरी हु्ई-सी दिखाई दे रही थी। कमाल की बात यह रही कि सब जानते हैं कि जनता में भाजपा सरकार के मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ नाराजगी है यहां तक की विकास और उन्नति के दावे करती सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी औसत रहा है। लेकिन कांग्रेस हर मोर्चे पर भाजपा को घेरने में नाकाम रही।
मध्यप्रदेश कांग्रेस चुनाव के ऐन पहले नींद से जागी और हड़बड़ाहट में प्रचार अभियान शुरू किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को काफी देर से और अनमने तरीके से चुनावी चेहरा बनाने से जनता में कांग्रेस को लेकर मानस नहीं बन पाया। इसी तरह चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में वरिष्ठ नेताओं में अहंकार भारी दिखा जिसका परिणाम हुआ कई जगह से कांग्रेसी बागी हुए और कांग्रेस के ही वोट काटे।
लोगों में कांग्रेस के प्रति नाराजगी..
भाजपा कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास...
* आत्मविश्वास : चुनाव शुरू होने से पहले ही हर भाजपा कार्यकर्ता को यह पता था कि जीत तो हमारी ही होगी। आत्मविश्वास से भरे कार्यकर्ता जब जोशपूर्ण ढंग से मतदाताओं से मिले तो बेहतर ढंग से सरकार की उपलब्धियों का प्रचार हुआ।
शिवराज, रामलाल, अरविंद मेनन और नरेन्द्र मेनन ने जिस खूबसूरती से टिकट वितरण के समय उपजी नाराजगी को समय रहते पहचाना और डैमेज कंट्रोल किया उससे भी कड़े मुकाबले में फंसे प्रत्याशियों को फायदा हुआ। इस कवायद की वजह से पार्टी ने सभी सीटों पर आत्मविश्वास से चुनाव लड़ा।