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Written By अजय बोकिल

चुनावी जंग में टिकट की टुच्ची बगावत

चुनावी जंग में टिकट की टुच्ची बगावत -
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को खां, पूरा माहोल बागी हुआ जा रिया हे। हर कोइ बगावत पे उतारु हे। जो टिकट मिलने की आस में खड़ा हुआ था, वो बिठाने से नई बेठ रिया। ये बगावत गजब की हे। न कोई उसूल, न कोई कायदा। बस केवल हो अपना फायदा। लोग बिना हथियार के लड़े ओर मरे जा रिए हें तो कोई अपनी किस्मत पे फूट-फूट के रो रिया हे। लोग पार्टी की 'सेवा' का बेजा मेवा मांग रिए हें। कोई खुद टिकट न मिलने से खफा हे तो कोई भाई-भतीजे को न मिलने से। कोई मिला टिकट गंवाने से पगला रिया हे। टिकट के आगे सारे नाते-रिश्ते फालतू लगने लगे हें। टिकट जीने-मरने का सवाल बन गया हे। जिंदगी एक अदद चुनावी टिकट के वास्ते दावं पे लग गई हे। बागियों को पार्टी छोड़ने या पार्टी से मुअत्तिल होना मंजूर हे, पर टिकट होना। मतलब ये के बगावत के मानी बदल गए हें। ये देख के बगावत खुद शर्मिंदा हे।

मियां, बगावत करना इत्ता आसान तो उस जमाने में भी नई था, जब बागी खुलेआम अगले को चेलेंज करा करते थे। तब बागी होने का मतलब सत्ता हासिल न होने पे हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करना रेता था। उसके कुछ उसूल होते थे। जान हथेली पे ले जीना पड़ता था। लोग अपने बेरी को चेन से न सोने देने की कसमें खाया करते थे। जवान ओरतें बागियों को हीरो की निगाह से देखती थीं तो हुकूमत गुनहगार के रूप में। किसी बागी की मोत पे बिना सिंदूर वाली मांग पोंछके मन ई मन रोया करती थीं।

खां, फिर जमाना आया लोगों को लूटने वाले बागियों का। बड़ी-बड़ी मूंछों ओर कंधों पे गहने की माफिक बंदूक लटकाए ये बागी चंबल के बीहड़ों में अपनी दुकान चलाया करते थे। बोला जाता था के अपने पे हुए जुल्म का बदला लेने के वास्ते ये बिजनेस कर रिए हें। फिर भी लोगों में उनका खोफ ओर इज्जत थी। जब भी पुलिस से फर्जी एनकाउंटर होता ये 'शोले' की अदा में पूछते थे के कित्ते आदमी हें? मगर ये बागी चुनाव लड़ने के चक्कर में ज्यादा नई पड़े। चुनावी बगावत कभी उनके पल्ले नई पड़ी। क्योंके उसमे लूट ओर मरने-मारने का तरीका बिल्कुल दूसरा रेता हे।

पिरजातंत्र में बगावत का नया रंग उभरा। चुनावी टिकट में सारे भोग दिखने लगे। इसके लिए हर इंसान बागी बनने लगा। हर किसी का दावा ये के वो टिकट के लिए सबसे काबिल। उसे टिकट न मिला तो पार्टी को शाप लगेगा। इस बगावत के कुछ आजमाए तरीके थे। मसलन टिकट न मिले तो भी फारम जरूर भरो। कोशिश करो के फार्म बी में सेटिंग हो जाए। फार्म भरके पार्टी के असली पिरत्याशी से बेठने का तगड़ा मुआवजा लूटो। अगले को चुनाव हरवाने की धमकी दो। बंधी मुट्ठी लाख की होने की एक्टिंग करो। चुनाव में डटे रहो ओर अगले की हवा खराब कर दो। टुच्चेपन के पशेमानी से बचो। कुछ भी हासिल न हो तो बागी उम्मीदवारों की लिस्ट में अपना जुड़वा के तारीख में अमर हो जाओ।

खां, ये टिकट की बगावत दोनो तरफ से फायदा देती हे। मतलब ये के पूंछ पकड़ने से काम न चले तो तुम इसे मूंछ की लड़ाई में बदल दो। याद रहे के बगावत चुनावी जंग का चायनीज बम हे। चल गया वारे-न्यारे। नई चला तो अगले चुनाव का इंतजार।