मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को पिछली विजय की तुलना में इस बार तीस सीटों का सीधा नुकसान हुआ है। चार क्षेत्रों में यह नुकसानी बँटी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्रसिंह तोमर के चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में भाजपा को छः सीटों से हाथ धोना पड़ा, जबकि उसे सबसे ज्यादा सीटों का नुकसान मालवा में हुआ है।
मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को पिछली विजय की तुलना में इस बार तीस सीटों का सीधा नुकसान हुआ है। चार क्षेत्रों में यह नुकसानी बँटी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्रसिंह तोमर के चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में भाजपा को छः सीटों से हाथ धोना पड़ा
यहाँ 42 सीटों से घटकर 29 पर आ गई है, जबकि कांग्रेस इस क्षेत्र में पन्द्रह सीटें अधिक जुटाने में सफल रही। इसके बाद भाजपा को ज्यादा नुकसान महाकोशल में हुआ, जहाँ उसे तेरह सीटें खोनी पड़ी है। बुंदेलखंड में उसे छः सीटों का नुकसान हुआ। विंध्य क्षेत्र में वह छः अधिक सीटें प्राप्त करने में सफल हुई है।
कुल मिलाकर तुलनात्मक रूप से भाजपा ने अड़तीस सीटें खोई और आठ उसने कांग्रेस व अन्य से छीनी हैं। इसी तरह पिछली बार के 173 के अंक से घटकर वह 143 पर आ गई है। सत्तारूढ़ दल के लिए यह चिंतन का विषय है कि प्रदेश के प्रमुख क्षेत्रों में, विंध्य को छोड़कर वह पिछड़ी क्यों है।
यदि विकास के पैमाने पर जो भाजपा का प्रमुख चुनावी मुद्दा था, इस नुकसान को परखें तो क्या प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश सरकार द्वारा उस क्षेत्र में किए गए विकास को अपर्याप्त या असंतोषजनक मानता है
यदि विकास के पैमाने पर जो भाजपा का प्रमुख चुनावी मुद्दा था, इस नुकसान को परखें तो क्या प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश सरकार द्वारा उस क्षेत्र में किए गए विकास को अपर्याप्त या असंतोषजनक मानता है? या बिजली, पानी, सड़क के अभाव अब भी इन प्रमुख क्षेत्रों चंबल, बुंदेलखंड, महाकोशल और मालवा में, जनता की प्रमुख चिंता बना हुआ है? या जिस पद्धति या जिस प्रकार से इन क्षेत्रों में सरकार विकास कार्य कर रही है, उससे जनता सहमत नहीं है? यह नई सरकार के लिए एक गौरतलब तथ्य होगा।
बिजली संकट एक ऐसा प्रत्यक्ष कारण है जिससे अब सत्तारूढ़ दल भी इंकार नहीं कर सकता है। पेयजल संकट तेजी से उभर रहा है। मालवा इस वर्ष बहुत कम वर्षा के कारण गंभीर जल संकट के मुहाने पर खड़ा है।
सरकार की यही पहली प्राथमिकता होगी, मतदाताओं की इस अपेक्षा को नजरअंदाज करने का जोखिम प्रदेश की नई सरकार मोल नहीं ले सकेगी। उसे उन इलाकों को भी यह विश्वास दिलाना होगा कि विकास वाकई सरकार की प्राथमिकता है, जहाँ सत्तारूढ़ दल ने सीटें खोई हैं।