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  4. Four big challenges before BJP in choosing the new Chief Minister in Madhya Pradesh
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 9 दिसंबर 2023 (11:10 IST)

मध्यप्रदेश का नया मुख्यमंत्री चुनने में भाजपा के सामने चार बड़े चैलेंज?

मध्यप्रदेश का नया मुख्यमंत्री चुनने में भाजपा के सामने चार बड़े चैलेंज? - Four big challenges before BJP in choosing the new Chief Minister in Madhya Pradesh
मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री को लेकर बना सस्पेंस अब 11 दिसंबर को साफ होगा। 11 दिसंबर यानि सोमवार शाम 7 बजे भाजपा विधायक दल की बैठक प्रदेश भाजपा कार्यालय में होगी जहां पर विधायक दल के नेता का चुनाव किया जाएगा। विधायक दल की बैठक में पार्टी संसदीय बोर्ड की ओर से नियुक्त किए गए तीनों पर्यवेक्षक हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. के लक्ष्मण और पार्टी की राष्ट्रीय सचिव आशा लाकड़ा भी मौजूद रहेंगे।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद अब तक मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं होना अपने आप में चौंकाने वाला है। सवाल यहीं उठ रहा है कि क्या भाजपा मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फंस गई है? सवाल यह भी है कि आखिरी भाजपा को नया मुख्यमंत्री चुनने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है?

1-जातिगत समीकरण साधना बड़ी चुनौती- मध्यप्रदेश में नया मुख्यमंत्री चुनने को लेकर भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जातिगत समीकरण साधना है। दरअसल मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस ओबीसी वर्ग से आते है जिसकी प्रदेश में आबादी 50 फीसदी से अधिक है। ऐसे में अगर पार्टी शिवराज सिंह चौहान को हटाती है तो उनके स्थान ओबीसी चेहरे को लाना बड़ी चुनौती है। यहीं कारण है कि ओबीसी वर्ग से आने वाले प्रहलाद सिंह पटेल का नाम मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे है।

लोधी समुदाय से आने वाले प्रहलाद पटेल एक अनुभवी राजनेता है और नरसिंहपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए है, ऐसे में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व प्रहलाद सिंह पटेल को मध्यप्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकता है। प्रहलाद सिंह पटेल प्रदेश में ओबीसी वर्ग के सबसे बड़े चेहरों में शामिल है। प्रहलाद सिंह पटेल उस महाकौशल क्षेत्र से आते है जिससे अब तक प्रदेश में कोई मुख्यमंत्री नहीं बना है। लोकसभा चुनाव में ओबीसी वर्ग को साधने के लिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रहलाद सिंह पटेल पर अपना दांव लगा सकती है।

2-चेहरे की जन स्वीकार्यता बड़ी चुनौती-भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के सामने प्रदेश का नया मुख्यमंत्री चुनने में सबसे बड़ी चुनौती उस चेहरे की जन स्वीकार्यता होना है। मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जन लोकप्रियता मध्यप्रदेश में किसी से छिपी नहीं है, चुनावी साल में लाड़ली बहना योजना लाकर शिवराज ने प्रदेश की आधी आबादी (महिलाओं) के बीच ऐसी गहरी  पैठ बनाई है जिसको बनाए रखना नए मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में अगर पार्टी उनके साथ पर किसी नए चेहरे को लाती है तो उसकी लोकप्रियता और जनका के स्वीकार्यता होना एक बड़ी चुनौती होगी।  

3-2024 लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती- मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद केंद्रीय हाईकमान अब सरकार के साथ संगठन का चेहरा बदलने की तैयारी में है। ऐसे में जब चार महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने है तब भाजपा हाईकमान ऐसे चेहरे पर ही दांव लगाना चाहता है जो उसके मिशन-29 को साध सके। यहीं कारण है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा पहुंचकर मिशन-29 का आगाज कर दिया है। वहीं विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने लोकसभा  चुनाव को लेकर हर बूथ मोदी अभियान का आगाज कर दिया है। ऐसे में भाजपा हाईकमान शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर जिस भी किसी नए चेहरे पर दांव पर लगाएगी उसके कंधों पर पार्टी के लोकसभा चुनाव के मिशन-29 को पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती है।  

4-दिग्गजों में आपसी सहमति बनाना बड़ी चुनौती- मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्री समेत 7 सांसदों और पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजवर्गीय को चुनावी मैदान में उतारा था। इसमें से चुनाव जीते दो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के साथ ही सांसदी पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में मुख्यमंत्री की रेस में अब भाजपा के कई दिग्गज चेहरे चुनावी मैदान में आ डटे है। ऐसे में इन सभी दिग्गज नेताओं के बीच आपसी सामंजस्य बैठाकर सर्व सहमित से नया सीएम चेहरा चुनाना बड़ी चुनौती है।

विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी के दिग्गज नेताओं में चुनाव में जीत के कारणों को लेकर जिस तरह से मत भिन्नता देगी गई वह यह बताती है कि पार्टी के दिग्गज नेताओं से आपसी सहमति बनाना केंद्रीय हाईकमान के लिए एक टेढी खीर है।
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