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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 17 अगस्त 2023 (14:25 IST)

भाजपा के सबसे कमजोर गढ़ ग्वालियर-चंबल पर अमित शाह का फोकस, 20 को कार्यसमिति की बैठक में देंगे जीत का मंत्र

Amit Shah
भोपाल। मध्यप्रदेश में पूरी ताकत के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा ने अब अपने सबसे कमजोर गढ़ ग्वालियर-चंबल पर फोकस कर दिया है। चुनाव से पहले भाजपा की आखिरी वृहद कार्यसमिति की बैठक में 20 अगस्त को ग्वालियर में होने जा रही है। चुनाव की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण कार्यसमिति की बैठक में 1200 से अधिक पार्टी पदाधिकारी शामिल होंगी।

अमित शाह देंगे जीत का मंत्र!-ग्वालियर में 20 अगस्त को होने जा रही पार्टी की वृहद् प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल होंगे। यह पहला मौका होगा जब भाजपा के चुनावी चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होंगे। माना जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले ग्वालियर में होने जा रही कार्यसमिति की बैठक में अमित शाह पार्टी को जीत का मंत्र देने के साथ गुटबाजी को खत्म करने के लिए दो टूक नसीहत देंगे।

ग्वालियर-चंबल में चरम पर गुटबाजी!-प्रदेश  में पांचवीं बार सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी भाजपा को सबसे अधिक परेशानी का सामना ग्वालियर संभाग में ही करना पड़ रहा है। दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद ग्वालियर-चंबल की भाजपा नई और पुरानी भाजपा में बंट गई है और आए दिन दोनों ही खेमे आमने सामने दिखाई देते है। बात चाहे पिछले दिनों पंचायत चुनाव की हो या नगरीय निकाय चुनाव की, नई भाजपा और पुरानी भाजपा के नेताओं में टकराव साफ देखा गया था। यहीं कारण है कि ग्वालियर में महपौर के चुनाव में भाजपा को 57 साल बाद हार का सामना करना पड़ा।

इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में ग्वालियर के साथ-साथ डबरा और भितरवार में जनपद पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठाने के लिए महाराज समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी और भाजपा के कई दिग्गज मंत्री आमने सामने आ गए थे। पंचायत चुनाव में दोनों ही गुटों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए खुलकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था। यहीं कारण है कि भाजपा चुनाव से पहले ग्वालियर संभाग पर अपना पूरा फोकस अपने इस सबसे कमजोर गढ़ को मजबूत करने में जुट गई है।

ग्वालियर-चंबल पर फोकस क्यों?-ग्वालियर में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक होने का बड़ा कारण इस क्षेत्र का सियासी महत्व है। दरअसल मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल अंचल की किंगमेकर की भूमिका होती है। प्रदेश के सियासी इतिहास को देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस जो भी ग्वालियर चंबल अंचल में जीतती है उसकी ही प्रदेश सरकार बनती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से भाजपा सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गई थी वहीं कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत हासिल कर ग्वालियर-चंबल में अपना परचम लहराया था।

2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल में भाजपा की हार का बड़ा कारण एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण के चलते अंचल के कई जिलों का हिंसा की आग में झुलसना था। हिंसा के बाद दलित वोट बैंक भाजपा से दूर हो गया था। ग्वालियर-चंबल की 34 विधानसभा सीटों में से 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और 2018 के विधानसभा चुनाव में से भाजपा इन 7 सीटों में से सिर्फ एक सीट जीत सकी थी। वहीं अंचल की सामान्य सीटों पर भी दलित वोटरों ने भाजपा की मुखालफत कर उसकी प्रदेश में चौथी बार सत्ता में वापसी की राह में कांटे बिछा दिए थे। हलांकि 2020 में ग्वालियर से आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आने के बाद प्रदेश में भाजपा की वापसी हुई थी।
 
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