दुविधा में न बन जाओ हमसफर
मानसी
हेलो दोस्तो! कुछ रिश्ते अपना निश्चित आकार लेने से पहले ही सवाल खड़े करने लगते हैं। ऐसे रिश्तों की ओर कोई बेझिझक कदम बढ़ाने से डरता है। आखिर क्या निर्णय लिया जाए, यह फैसला थोड़ा कठिन होता जाता है। रिश्ते के बारे में मन में संजोए कोमल विचार और उस कल्पना को हकीकत के रूप में देखने की अभिलाषा इतनी प्रबल होती है कि उसे तोड़ने के बारे में सोचना तक, जीवन का खात्मा करने जैसा लगता है। पर, वास्तविक जीवन में हर पल इतने नागवार गुजरते हैं कि साथ-साथ जीने की चाहत व इच्छा ही खत्म होती जाती है। साथ घर बसाने का उल्लास समाप्त-सा हो जाता है लेकिन नए सिरे से फिर एक रिश्ते की तलाश के विचार से ही आपका दिल घबराने लगता है।अंकिता (बदला हुआ नाम) भी ऐसे ही सवाल-जवाब से उलझी हुई हैं। अंकिता वर्षों से अपने एक दोस्त से प्यार करती हैं। दोनों शादी और बच्चे की बातें भी करते रहते हैं। पर, इन सबके बावजूद अंकिता इस रिश्ते के भविष्य को लेकर चिंतित है। दरअसल, अंकिता जब भी किसी कारण से परेशान होती है तो उसे अपने दोस्त विशाल (बदला हुआ नाम) से वह सपोर्ट नहीं मिलता जिसकी उसे उम्मीद होती है। जब वह भावनात्मक रूप से मुश्किल घड़ी में होती है तो न तो वह विशाल के कंधे पर अपना सिर रखकर रो सकती है और न ही खुश होने पर उसका हाथ पकड़कर तफरीह के लिए जा सकती है। उसके सामने अपनी नौकरी की समस्या का जिक्र करने पर उसे भावुक लीचड़ तक की उपाधि वह दे डालता है। अंकिता को लगता है जब उसे सांत्वना या दिलासा की जरूरत होती है तो उसके साथी के पास एक शब्द नहीं होता है। इसी वजह से वह इस रिश्ते को अमली जामा पहनाने से डरती है। पर, जब अपने सगे-संबंधी से राय लेती है तो उनका जवाब इस रिश्ते की हां की ओर इशारा करता है। विशाल अंकिता के प्रति तो बेरुखी दिखाता है पर बाहर कहता फिरता है कि उसका जीवन अंकिता के बिना नहीं चल सकता है। अंकिता अपने तजुर्बे से ज्यादा दूसरों के बयान पर इसलिए भी भरोसा करना चाहती है कि उसे लगता है वह २८ वर्ष की हो गई है और नए सिरे से अन्य रिश्ते की तलाश बहुत ही समय और ऊर्जा खोजता है जो अब उसमें नहीं है। इसलिए वह अवसाद की स्थिति में आ गई है। अंकिता जी, आपके रिश्ते की कहानी जितनी भी पेचीदा क्यों न हो पर एक बात आपके पक्ष में है, वह है आपकी उम्र। अपनी उम्र को लेकर आप नाहक परेशान हैं। २८ की उम्र में तो कई बार लोगों को नौकरी मिलती है फिर वे दो-तीन वर्ष थोड़ा अपने काम में जमते हैं। दोस्त बनाते हैं और कोई ज्यादा अच्छा लगा तो प्रेम भी करते हैं। इसलिए यह सोचकर परेशान होना तो छोड़ ही दें कि आप २८ वर्ष की हो गई हैं अब क्या होगा। हां, यह बात आपको अधिक साल रही होगी कि आपने अपना कीमती समय ऐसे रिश्ते पर क्यों लगा दिया जिसे अंतिम स्वरूप देने में दिल कांप रहा है। आपका समय बेजा नहीं गया है। कुछ न कुछ संबल तो आपको इस रिश्ते से मिला ही है वरना यह रिश्ता बहुत पहले टूट गया होता। हां, निश्चित ही उतना नहीं मिला जिससे आपको आंखें मूंदकर आखिरी दम तक निभाने की प्रेरणा मिलती। इस महत्वपूर्ण मोड़ पर आकर तार्किक विचार करना जरूरी है। दूसरे क्या कहते हैं इस आधार पर किसी के साथ जीवन नहीं गुजारा जा सकता है। जिस प्रश्न के कारण आपका दिल इस शादी के लिए राजी नहीं हो रहा है वह डर सही है। शादी जैसा रिश्ता खुशी महसूस करने, बेखौफ संवाद बना पाने और सहयोग पाने के लिए ही बनाया जाता है। प्रेम करने के बावजूद यदि आप शादी के बाद भी अंतरंगता न बन सके तो फिर प्रेम-विवाह का मतलब ही क्या रहा। शादी साथ-साथ एक-दूसरे के हाथ में हाथ लिए चलने का नाम है। कहने का अर्थ यह है कि चाहे आप कहीं भी हों आपके भीतर भावना ऐसे ही साथ की होती है। पर, इस रिश्ते में आप सड़क की एक ओर तो वह दूसरी ओर चल रहे हैं। हाथ में हाथ डालने की भावना तो दूर, आप दोनों तो आस-पास भी नहीं चल रहे हैं। कोई व्यावहारिक तो कोई भावुक हो ही सकता है। यदि वह आपको व्यावहारिक होने में मदद नहीं कर सकता है तो कम से कम आप पर अपना धौंस जमाकर आपका आत्मविश्वास तो नहीं तोड़े। साथी यदि सचमुच प्यार करता है तो वह आपका आत्मविश्वास बढ़ाएगा। आपको सहज और व्यावहारिक बनने में मदद करेगा ताकि आपके अन्य सामाजिक रिश्ते भी आसानी से संभाले जा सकें। पर, यहां विशाल का प्रयास संबंधों को सहज करने के बजाय आपको सहमाकर रखने में है। अभी दूर रहने पर जब यह व्यवहार है तो साथ रहने पर और भी बदतर ही होगा। सबसे अच्छी बात यह है कि न तो शादी हुई है और न ही बच्चे। विशाल से थोड़ा डिटैच होकर उससे संवाद बनाएं। थोड़ी दूरी बना लें। यदि वह अपनी भूल समझकर अपने आप में सुधार लाता है तो उसे परखने की कोशिश करें वरना इस रिश्ते को लंबे समय तक खींचना आपके लिए मुमकिन नहीं होगा। एक बात याद रखनी चाहिए कि कोई व्यक्ति अपना स्वभाव या व्यवहार छड़ी घुमाकर नहीं बदल सकता है।