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Written By भाषा

बॉलीवुड स्टारों को रास नहीं आई राजनीति

सुनील दत्त और राज बब्बर ने खेली लंबी पारी

बॉलीवुड स्टारों को रास नहीं आई राजनीति -
कहते हैं कि राजनीति का चस्का एक बार लगे तो छूटता नहीं, लेकिन कुछ नामी गिरामी बॉलीवुड फिल्मस्टारों के बारे में शायद यह बात सही नहीं है, क्योंकि अमिताभ बच्चन से लेकर गोविन्दा तक तमाम स्टारडम अभिनेता राजनीति में तो आए लेकिन सुनील दत्त या राज बब्बर की तरह टिककर कोई पारी खेल नहीं पाए। मुंबइया फिल्मों के ये कलाकार आँधी की तरह राजनीति में आए और तूफान की तरह गायब हो गए।

राजनीति में यदि किसी का प्रवेश सबसे ज्यादा चर्चित रहा तो वह सुपरस्टार अमिताभ बच्चन का था, जिन्होंने इलाहाबाद सीट पर 1984 के लोकसभा चुनावों में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को 50,000 से अधिक मतों से शिकस्त दी थी।

अमिताभ की यह पारी ज्यादा लंबी नहीं चली और तीन साल बाद ही उनके छोटे भाई अजिताभ बच्चन का नाम बोफर्स घोटाले में आने के बाद उन्होंने संसद से इस्तीफा दे दिया। राजनीति के किसी दिग्गज उम्मीदवार को किसी फिल्मी कलाकार द्वारा मिली यह जबर्दस्त पराजय मानी गई।

पिछले लोकसभा चुनावों में गोविन्दा ने भी उत्तर मुंबई से भाजपा के दिग्गज राम नाइक को पराजित किया। छोटे मियाँ की राजनीति में एंट्री तो काफी जबर्दस्त रही और उन्होंने कई भारी भरकम वायदे भी किए, लेकिन उन पर न तो अमल कर पाए और न ही संसद में समय दे पाए। नतीजतन कांग्रेस ने इस बार उनका टिकट काट दिया।

फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' के साथ फिल्मी कैरियर शुरू करने वाले धरम पाजी ने भाजपा के टिकट पर 2004 का चुनाव बीकानेर से लड़ा था। लेकिन संसद की अपनी पारी के दौरान कभी-कभार ही संसद आए।

शोला और शबनम, आँखें, कुली नंबर वन, हीरो नंबर वन, आंटी नंबर वन, हसीना मान जाएगी जैसी हिट फिल्मों के नायक गोविन्दा ने अपने कार्यकाल के दस महीने तो सांसद विकास निधि से कुछ खर्च ही नहीं किया। मीडिया के ध्यान आकर्षित करने पर वे कुछ चेते और बड़े-बड़े वायदे कर डाले, लेकिन संसद में उनकी अनुपस्थिति सुर्खियाँ जरूर बनीं।

राजनीतिक विश्लेषक कृष्ण कुमार का मानना है कि फिल्म अभिनेताओं को राजनीति का ग्लैमर और सत्ता से निकटता की इच्छा संसद की ओर खींचती है। इनमें संजीदा होकर राजनीति करने वालों की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है।

सिने तारिका जयाप्रदा को राजनीति का चस्का तेलुगूदेशम पार्टी ने राज्यसभा भेजकर लगाया, लेकिन सपा महासचिव अमरसिंह उन्हें हाईजैक कर रामपुर ले गए और उन्हें जमीनी राजनीति से सीधे जोड़ा। जयाप्रदा 2004 में उत्तरप्रदेश के रामपुर से लोकसभा चुनाव जीतीं। शराबी, देवता और तोहफा सहित कई फिल्मों में काम कर चुकी जयाप्रदा को सपा ने इस बार भी रामपुर से उम्मीदवार बनाया है।

दोराहा, खामोशी, आराधना, नमक हराम, अमर प्रेम, आपकी कसम और रोटी जैसी सुपरहिट फिल्में देने वाले अभिनेता राजेश खन्ना कांग्रेस के टिकट पर 1991 में नई दिल्ली सीट पर चुनाव जीते लेकिन उसके बाद राजनीतिक पारी जारी नहीं रख सके।

उधर इंसाफ का तराजू, निकाह, आज की आवाज जैसी फिल्मों के जरिए खासे चर्चित हुए राब बब्बर सपा के टिकट पर दो बार आगरा का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कर चुके हैं और इस बार वे फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।

ऐसा नहीं है कि फिल्मी दुनिया के लोगों ने सिर्फ उत्तर भारत में ही तहलका मचाया। दक्षिण के फिल्मी कलाकार भी पीछे नहीं रहे और वैजयन्तीमाला, जयललिता, एनटी रामाराव से लेकर चिरंजीवी तक और रजनीकांत जैसे दक्षिण के कई सुपरस्टारों ने राजनीतिक पारियाँ खेलीं और कई अभी भी खेल रहे हैं।

हिन्दू अखबार के पूर्व पत्रकार और राजनीतिक स्तंभकार जेपी शुक्ला ने बताया कि फिल्मस्टारों को अपने कैरियर के रूप में केवल हिट फिल्मों और उससे होने वाली आय से वास्ता रहता है। राजनीति को वे कैरियर के साथ नहीं चला पाते और नतीजा यह होता है कि उन्हें हर खासो आम की आलोचना का शिकार बनना पड़ता है, जैसा गोविन्दा के मामले में हाल ही में हुआ।

फिल्मों के अलावा टेलीविजन पर्दे के स्टार कलाकार भी संसद पहुँचते रहे हैं। रामानंद सागर के सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी सीरियल रामायण की सीता दीपिका चिखलिया वडोदरा से लोकसभा में पहुँच चुकी हैं। रामायण के ही रावण अरविन्द त्रिवेदी भी टीवी पर मिली लोकप्रियता को राजनीति में भुनाकर संसद का सफर कर चुके हैं।

बीआर चोपड़ा के मशहूर टीवी सीरियल महाभारत में कृष्ण बने नीतीश भारद्धाज जमशेदपुर से 1996 में सांसद चुने गए। इस बार के चुनावों में भी बिहार की पटना साहिब सीट पर बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा और टीवी के मशहूर कलाकार शेखर सुमन के बीच मुकाबला है। बिहारी बाबू को भाजपा ने तो शेखर को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। रामपुर में जयाप्रदा तो फतेहपुर सीकरी में राज बब्बर तो चुनावी मुकाबले में हैं ही।

कुमार ने ज्यादा साफगोई से कहा कि राजनीति में बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं और फिल्मों में पापड़ बेलकर आए कलाकारों को राजनीतिक दल केवल उनके ग्लैमर और लोकप्रियता के आधार पर टिकट दे देते हैं। ऐसे में उनसे संसद में रहकर काम की अपेक्षा करना उचित नहीं है।