• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. चुनाव 2009
  4. »
  5. लोकसभा चुनाव
Written By भाषा
Last Modified: लखनऊ (भाषा) , रविवार, 17 मई 2009 (12:33 IST)

अंदरूनी कलह ने निकाली साइकिल की हवा

अंदरूनी कलह ने निकाली साइकिल की हवा -
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में 80 में से 36 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी समाजवादी पार्टी को अंदरूनी कलह और पार्टी से बाहर निकले दिग्गज नेताओं की चुनौती के चलते इस चुनाव में मात्र 22 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है।

पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ थी। उसे लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 26.74 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे और उसने अपने तमाम प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ते हुए आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की थी। बावजूद इसके वह केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व मे बनी संप्रग सरकार में भागीदारी पाने से वंचित रह गई थी।

सपा ने 14वीं लोकसभा के आम चुनाव में 80 में 35 सीटें जीती थीं। बाद में पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के निधन से खाली हुई बलिया लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में उनके पुत्र नीरज शेखर को अपना उम्मीदवार बनाकर उस सीट को भी अपने खाते में डाल लिया था और इसकी संख्या 36 तक पहुँच गई थी।

15वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव से पहले वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे वरिष्ठ भाजपा नेता कल्याणसिंह से दोस्ती के कारण पार्टी को अपने दल के ही वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा और राजनीतिक हल्कों में इसे मुस्लिम समुदाय में पार्टी के जनाधार के लिए नुकसानदायक समझा गया। जिस तरह से इस चुनाव में सपा की सीटें घटीं उससे आशंकाएँ बहुत हद तक सच भी साबित हुई हैं।

कभी पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव रहे अमरसिंह को कथित रूप से अत्यधिक महत्व दिए जाने के कारण पहले तो सपा के संस्थापकों में रहे बेनीप्रसाद वर्मा और सिने अभिनेता राज बब्बर इसके मुखिया मुलायमसिंह यादव से हाथ छुड़ाकर कांग्रेस के पाले मे चले गए।

बाबरी मस्जिद के विध्वंसक कल्याणसिंह से दोस्ती के सवाल पर पार्टी के एक अन्य महत्वपूर्ण संस्थापक सदस्य और पार्टी का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले मोहम्मद आजम खाँ सपा से रूठकर न सिर्फ कोपभवन मे चले गए बल्कि समय-समय पर उनके विरुद्ध आग उगलने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

यहाँ तक कि समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाने वाले इटावा और फिरोजाबाद इलाकों मे भी इसके दिग्गज नेताओं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धनीराम वर्मा और एसपी सिंह बघेल ने साइकिल की सवारी छोड़कर हाथी की सवारी कर ली और सपा मुखिया यादव को आमने-सामने से चुनौती दे डाली।

अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के सवाल पर वामपंथियों के समर्थन वापसी के बाद संप्रग सरकार को सहारा देकर सपा ने हालाँकि एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अहम भूमिका हासिल कर ली मगर उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के साथ सीटों का तालमेल नहीं हो पाने के बाद एक बार फिर केन्द्रीय राजनीति में अपनी भूमिका कमजोर पड़ती देख सपा मुखिया ने बिहार की राजनीति के दिग्गजों राजद के लालूप्रसाद यादव और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान के साथ मिलकर चौथा मोर्चा बना लिया।

हालाँकि मुलायम के दोनों बिहारी साथी कुछ खास कारनामा दिखा पाने में कामयाब नहीं रहे मगर तमाम अन्तर्विरोधों के बावजूद मुलायम सिंह यादव उत्तरप्रदेश में बहुत हद तक अपनी जमीन बचा ले जाने में कामयाब रहे। बावजूद इसके कि उन्हें बसपा से कड़ी चुनौती मिली और जनता ने कल तक मरणासन्न पड़ी कांग्रेस को नई ताकत के साथ खड़ा किया और कुछ हद तक भाजपा को भी सहारा दिया।

सपा की सीटें कम हुई हैं मगर परमाणु करार पर सहायता देने के बदले कांग्रेस और संप्रग का रुख इस बार उसके प्रति नरम है। सपा नेताओं को भरोसा है कि वर्ष 2004 के विपरीत इस बार उसे केन्द्र की सत्ता में भागीदारी का मौका मिल जाएगा।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि 18 मई को पार्टी संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी जहाँ एक ओर अपने चुनाव परिणामो की समीक्षा करेगी, वहीं अपनी भावी रणनीति को अंतिम रूप प्रदान करेगी।