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Last Modified: बुधवार, 18 जून 2025 (19:00 IST)

जनगणना कैसे की जाती है और क्या है census का महत्व? संपूर्ण जानकारी

Census
Census 2027 in India: भारत में 16वीं जनगणना के लिए अधिसूचना जारी हो गई है। जनगणना किसी देश की जनसंख्या, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सांस्कृतिक विविधता को समझने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जनगणना न केवल जनसंख्या के आंकड़े एकत्र करने का माध्यम है, बल्कि यह नीति निर्माण, संसाधन आवंटन और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का आधार भी है। भारत में जनगणना एक दशकीय प्रक्रिया है, जो हर दस वर्षों में आयोजित की जाती है। हालांकि 2021 में कोरोना संक्रमण के चलते यह स्थगित हो गई थी। आइए जानते हैं भारत में जनगणना की प्रक्रिया, इसके ऐतिहासिक विकास, महत्व और आगामी 2027 की जनगणना से संबंधित विभिन्न पहलुओं को, विशेष रूप से जातिगत गणना और परिसीमन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर विस्तृत जानकारी।
 
क्या है जनगणना का महत्व?
जनगणना भारत जैसे विविधतापूर्ण और जटिल समाज में सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए आधार प्रदान करती है। यह डेटा सरकार को विभिन्न समुदायों की आवश्यकताओं को समझने और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए साक्षरता दर, रोजगार की स्थिति और आवासीय सुविधाओं के आंकड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, और आवास नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त, जनगणना सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) की स्थिति को समझने और उनके लिए सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) नीतियों को लागू करने का आधार भी प्रदान करती है।
 
2027 की जनगणना का विशेष महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इसमें जातिगत गणना को शामिल किया गया है, जो स्वतंत्र भारत में पहली बार सभी हिंदुओं के लिए लागू होगी। यह कदम सामाजिक समानता और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास हो सकता है, बशर्ते इसका कार्यान्वयन पारदर्शी और त्रुटिहीन हो। जातिगत डेटा का उपयोग सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को मापने और लक्षित कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में किया जा सकता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में डेटा की सटीकता और गोपनीयता सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) में देखी गई कमियों ने इसके परिणामों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे।
 
राजनीतिक दृष्टिकोण से, जनगणना लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के परिसीमन के लिए आधार प्रदान करती है। 2027 की जनगणना के आंकड़े 2026 के बाद होने वाले राजनीतिक परिसीमन के लिए उपयोग किए जाएंगे, जो संसदीय और विधानसभा सीटों की संख्या और उनके भौगोलिक वितरण को निर्धारित करेगा। इसके अतिरिक्त, यह जनगणना लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण को लागू करने का आधार बनेगी, जो भारत की राजनीति में लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
 
क्या है जनगणना की प्रक्रिया या कैसे होगी जनगणना?
भारत में जनगणना एक जटिल और व्यापक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त (Registrar General and Census Commissioner of India) द्वारा संचालित किया जाता है। यह प्रक्रिया जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत नियंत्रित होती है, जो केंद्र सरकार को जनगणना आयोजित करने और संबंधित आंकड़े एकत्र करने का अधिकार प्रदान करता है। जनगणना का कार्य दो मुख्य चरणों में विभाजित है : मकान सूचीकरण और जनसंख्या गणना।
1. मकान सूचीकरण (House Listing) : मकान सूचीकरण चरण जनगणना का प्रथम चरण है, जो सामान्यतः 5-6 महीनों की अवधि में आयोजित किया जाता है। इस चरण में देश भर के सभी भवनों, मकानों, और परिवारों की गणना की जाती है। यह चरण आवासीय परिस्थितियों, सुविधाओं, और संपत्तियों से संबंधित जानकारी एकत्र करता है। 2011 की जनगणना में मकान सूचीकरण अनुसूची में 35 प्रश्न शामिल थे। 
 
यह चरण जनसंख्या गणना के लिए आधार तैयार करता है, क्योंकि यह प्रगणकों (Enumerators) को मकान सूचीकरण ब्लॉकों की पहचान करने और जनसंख्या गणना के लिए ब्लॉकों का व्यावहारिक खाका तैयार करने में मदद करता है। इस चरण में स्थानीय स्कूल शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों, और स्थानीय निकायों के कर्मचारियों को प्रगणक और पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है।
Census in India
2. जनसंख्या गणना (Population Enumeration) :  दूसरा चरण जनसंख्या गणना है, जो सामान्यतः जनगणना वर्ष के फरवरी महीने में आयोजित किया जाता है और संदर्भ तिथि 1 मार्च निर्धारित की गई है। इस चरण में प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित विस्तृत जानकारी एकत्र की जाती है। इसमें नाम, लिंग, आयु, धर्म, मातृभाषा, जाति, शैक्षणिक योग्यता, रोजगार, वैवाहिक स्थिति आदि से जुड़े प्रश्नों जानकारी मांगी जाती है। 
 
इस चरण में प्रगणक घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करते हैं और इसे अनुसूचियों में दर्ज करते हैं। डेटा संकलन के बाद, इसे डेटा प्रोसेसिंग सेंटर में भेजा जाता है, जहां इसका विश्लेषण किया जाता है। अनंतिम (Provisional) आंकड़े सामान्यतः कुछ महीनों के भीतर जारी किए जाते हैं, जबकि विस्तृत जनसांख्यिकीय, धार्मिक, और भाषाई प्रोफाइल के साथ अंतिम रिपोर्ट में अधिक समय लगता है। उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना के अनंतिम आंकड़े मार्च 2011 में जारी किए गए थे, जबकि अंतिम रिपोर्ट अप्रैल 2013 में प्रकाशित हुई थी।
 
इस बार की जनगणना पिछली बार से कैसे अलग है?
2027 की जनगणना भारत की पहली पूर्ण डिजिटल जनगणना होगी। इसमें मोबाइल ऐप्स और स्व-गणना पोर्टल का उपयोग किया जाएगा, जिससे नागरिकों को अपनी जानकारी स्वयं दर्ज करने का अवसर मिलेगा। यह प्रक्रिया कागज रहित होगी और डेटा को वास्तविक समय में संकलित और संसाधित किया जाएगा। इस डिजिटल दृष्टिकोण से डेटा संग्रह की गति और सटीकता में सुधार होगा। स्व-गणना के लिए आधार नंबर या मोबाइल नंबर अनिवार्य होगा और डेटा को 16 भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी, और 14 क्षेत्रीय भाषाओं) में एकत्र किया जाएगा।
 
किसी भी देश के लिए जनगणना क्यों जरूरी है?
जनगणना केवल जनसंख्या की गणना तक सीमित नहीं है, यह एक राष्ट्रीय डेटाबेस है, जो नीति निर्माण, संसाधन आवंटन, और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बिंदु जनगणना के महत्व को रेखांकित करते हैं- 
  • नीति निर्माण और योजना : जनगणना डेटा सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और रोजगार जैसे क्षेत्रों में नीतियां बनाने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, साक्षरता दर और शैक्षिक योग्यता के आंकड़े शिक्षा नीतियों को आकार देने में उपयोगी होते हैं।
  • संसाधन आवंटन : वित्त आयोग जनगणना के आंकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान आवंटित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि संसाधन जनसंख्या और आवश्यकताओं के अनुरूप वितरित किए जाएं।
  • सामाजिक न्याय : जनगणना डेटा सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को समझने और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) नीतियों को लागू करने में मदद करता है।
  • परिसीमन : जनगणना के आंकड़े लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों के परिसीमन के लिए आधार प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुपात में हो।
  • महिला आरक्षण : हाल ही में पारित महिला आरक्षण अधिनियम के तहत, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी। यह प्रक्रिया 2027 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगी।
  • आर्थिक और व्यावसायिक उपयोग : जनगणना डेटा उद्योगों और व्यावसायिक घरानों को बाजार विश्लेषण और नए क्षेत्रों में विस्तार के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
  • सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का दस्तावेजीकरण : जनगणना मातृभाषा, धर्म और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं को दर्ज करती है, जो भारत की समृद्ध विविधता को समझने में मदद करती है।
भारत में जनगणना का इतिहास क्या है?
भारत में जनगणना का इतिहास प्राचीनकाल से शुरू होता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल की आइन-ए-अकबरी में जनसंख्या और संसाधनों की गणना के संदर्भ मिलते हैं। मौर्य साम्राज्य में ग्रामीण और नगरपालिका अधिकारियों द्वारा व्यापारियों, कृषकों, और अन्य व्यवसायों की गणना की जाती थी, मुख्यतः कराधान के उद्देश्यों के लिए।
Census in India
आधुनिक जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में हुई। पहली जनगणना 1872 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के अधीन आयोजित की गई थी, लेकिन यह पूर्ण रूप से समकालिक (Synchronous) नहीं थी। पहली समकालिक और संपूर्ण जनगणना 1881 में लॉर्ड रिपन के समय हुई, जिसके लिए डब्ल्यूसी प्लोडेन को भारत का पहला जनगणना आयुक्त नियुक्त किया गया था। इसके बाद, हर 10 वर्षों में जनगणना आयोजित की जाती रही।
 
स्वतंत्रता के बाद, 1951 में आजाद भारत की पहली जनगणना आयोजित की गई। इस समय से जनगणना का कार्य जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत किया जाता है। 1881 से 2011 तक, भारत में 15 दशकीय जनगणनाएं बिना किसी रुकावट के आयोजित की गईं। हालांकि, 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई, जो 150 वर्षों में पहली बार हुआ।
 
कितने चरणों में होगी जनगणना 2027?
पहला चरण (मकान सूचीकरण) :
यह चरण 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगा और इसमें हिमाचली क्षेत्रों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, और जम्मू-कश्मीर) को शामिल किया जाएगा। इस चरण में आवासीय परिस्थितियों और सुविधाओं से संबंधित जानकारी एकत्र की जाएगी।
 
दूसरा चरण (जनसंख्या गणना) : यह चरण 1 मार्च 2027 से शुरू होगा और इसमें मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या के व्यक्तिगत विवरण दर्ज किए जाएंगे। इस चरण में जातिगत आंकड़े भी शामिल होंगे। इस जनगणना की पूरी प्रक्रिया मार्च 2027 तक समाप्त होने की उम्मीद है, और प्राथमिक आंकड़े मार्च 2027 में ही जारी किए जा सकते हैं, जबकि विस्तृत डेटा दिसंबर 2027 तक उपलब्ध होगा।
 
जातिगत जनगणना से देश और समाज को क्या लाभ होगा?
2027 की जनगणना में पहली बार स्वतंत्र भारत में सभी हिंदुओं के जातिगत विवरण शामिल किए जाएंगे। 
  • सामाजिक-आर्थिक आधार : जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय और समान विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह डेटा सरकार को विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने और उनके लिए उपयुक्त नीतियां बनाने में मदद करेगा।
  • नीतिगत सुधार : यह डेटा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC), और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावी बनाने में सहायक होगा।
  • सामाजिक समानता : जातिगत जनगणना से यह स्पष्ट होगा कि कौन से समुदाय अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, जिससे सरकार को लक्षित विकास कार्यक्रम लागू करने में मदद मिलेगी।
  • चुनौतियां : जातिगत जनगणना की प्रक्रिया जटिल है और इसके लिए सावधानीपूर्वक प्रारंभिक कार्य की आवश्यकता है। 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) में कई कमियां थीं, जिसके कारण इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। केंद्र सरकार ने 2027 की जनगणना में जातियों की सूची तैयार करने और राजनीतिक दलों से परामर्श करने का निर्णय लिया है, ताकि डेटा की सटीकता सुनिश्चित की जा सके।
जनगणना को लेकर भारत के कुछ राज्यों की आशंकाएं क्या हैं?
दक्षिणी और छोटे राज्यों की आशंकाएं : दक्षिणी राज्य (जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और केरल) और कुछ छोटे उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में 2027 की जनगणना और इसके बाद होने वाले परिसीमन को लेकर आशंकाएं हैं। इनकी मुख्य चिंताएं निम्नलिखित हैं:
  • जनसंख्या नियंत्रण के कारण प्रतिनिधित्व में कमी : दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसके कारण उनकी जनसंख्या वृद्धि दर उत्तरी राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार) की तुलना में कम है। यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो दक्षिणी राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनका राजनीतिक प्रभाव कम होगा।
  • संघीय ढांचे पर प्रभाव : कुछ राज्यों का मानना है कि परिसीमन से भारत के संघीय ढांचे पर असर पड़ सकता है, क्योंकि यह उत्तरी राज्यों को अधिक संसदीय सीटें दे सकता है।
  • लोकसभा सीटों को स्थिर करने की मांग : कई दक्षिणी और छोटे राज्य मौजूदा लोकसभा सीटों की संख्या को स्थिर (Freeze) करने की मांग कर रहे हैं, ताकि उनका प्रतिनिधित्व कम न हो। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन प्रक्रिया में इन राज्यों की चिंताओं का ध्यान रखा जाएगा।
इस बार देरी से क्यों हो रही है जनगणना?
भारत में हर 10 साल में जनगणना होती है। पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, लेकिन इस बार करीब 5 साल भी ज्यादा समय की देरी से 2027 में जनगणना होगी। दरअसल, 2021 में कोरोना महामारी के चलते जनगणना के कार्य को स्थगित कर दिया गया था। अगली जनगणना भी 2031 में न होकर 2035 में होगी।
 
2011 की जनगणना के समय कितनी थी भारत की आबादी?
2011 के मुताबिक भारत की कुल आबादी 121 करोड़ थी, लेकिन अनुमानित आंकड़े के अनुसार अब यह बढ़कर लगभग 146 करोड़ हो चुकी है। 2011 की जनगणना के बाद भारत में 62.37 करोड़ पुरुष और 58.65 करोड़ महिलाएं थीं। 2001-2011 के बीच जनसंख्या में 18.1 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई थी। 2011 की जनगणना में भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी थी, जबकि हिन्दी के बाद बंगाली और मराठी का स्थान रहा।
 
क्या जनगणना के समय आपसे लिया गया डेटा सुरक्षित रहेगा?
चूंकि इस बार डिजिटल जनगणना होगी। अत: लोगों की एक चिंता यह भी है कि क्या उनका डेटा सुरक्षित रहेगा? हालांकि सरकार की ओर से कहा गया है कि लोगों से ली गई जानकारी पूरी तरह सुरक्षित होगी। इसकी सुरक्षा के लिए पूरा इंतजाम किया गया है। जनगणना के लिए डेटा इकट्ठा करना, उसे ट्रांसफर और स्टोर करने समेत हर कदम पर डेटा लीक ना होने पाए। इसके कड़े इंतजाम होंगे। 
 
2027 की जनगणना भारत के इतिहास में एक मील का पत्थर होगी, क्योंकि यह पहली डिजिटल जनगणना होगी और इसमें जातिगत आंकड़े शामिल किए जाएंगे। यह जनगणना न केवल जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने में मदद करेगी, बल्कि परिसीमन और महिला आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों के लिए आधार भी प्रदान करेगी। हालांकि, जातिगत गणना और परिसीमन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों, विशेष रूप से दक्षिणी और छोटे राज्यों की चिंताओं को संबोधित करने के लिए व्यापक विचार-विमर्श और सहमति की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि जनगणना का डेटा सामाजिक न्याय और समान विकास को बढ़ावा दे, न कि क्षेत्रीय असंतुलन को।
 
जनगणना भारत की नीति निर्माण और विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। यह न केवल देश की जनसांख्यिकीय तस्वीर प्रस्तुत करती है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक नीतियों को आकार देने और संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 2027 की जनगणना के परिणाम न केवल भारत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को समझने में मदद करेंगे, बल्कि यह देश के भविष्य को आकार देने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
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