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Last Updated : सोमवार, 5 फ़रवरी 2024 (13:21 IST)

लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स पर BJP की नजर,पीएम मोदी झाबुआ से करेंगे चुनावी अभियान का शंखनाद

लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स पर BJP की नजर,पीएम मोदी झाबुआ से करेंगे चुनावी अभियान का शंखनाद - Prime Minister Narendra Modi will start election campaign from Jhabua
भोपाल। लोकसभा चुनाव के लिए मध्यप्रदेश में भाजपा के चुनावी अभियान का आगाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 फरवरी को झाबुआ से करेंगे। आदिवासी बाहुल्य जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय सम्मेलन के जरिए प्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के चुनावी अभियान का शंखनाद करेंगे।

झाबुआ से क्यों चुनावी अभियान का आगाज?- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर झाबुआ से प्रदेश में लोकसभा के चुनावी अभियान का आगाज करने जा रहे है तो इसके कई सियासी मायने है। अगर विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखा जाए तो झाबुआ जिले की तीन विधानसभा सीटों में से 2 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है,वहीं एक सीट भाजपा के खाते में गई है। झाबुआ जिला रतलाम लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है, जिस पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। अगर रतलाम लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजों को देखे तो भाजपा ने 4 विधानसभा सीटों अलीराजपुर, पेटलावद, रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहर पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस ने झाबुआ, थांदला और जोबट विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है वहीं सैलाना सीट पर भारतीय आदिवासी  पार्टी पर जीत हासिल की है।

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद भाजपा ने इस बार प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से छह लोकसभा क्षेत्र आदिवासी वर्ग (अनुसूचित जनजाति वर्ग- ST) के लिए रिजर्व हैं। अगर एसटी के लिए रिजर्व सीटों की बात करें तो शहडोल और बैतूल में भाजपा तो धार, खरगोन और मंडला लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा की सुरक्षित सीटों में कांग्रेस आगे रही है।

आदिवासी वोटर्स साबित होते हैं गेमचेंजर!-भाजपा अगर लोकसभा चुनाव के अभियान का आगाज मालवा से करने जा रही है तो इसके कई सियासी मायने है। प्रदेश में एसटी वर्ग के आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से मालवा की 22 विधानसभा सीटें है जो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखे तो भाजपा ने इस बार 9 सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस ने 12 विधानसभा सीटों और एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है।

ऐसे में अगर संघ का गढ़ कहे जाने वाले मालवा में अगर पार्टी को आदिवासियों के लिए आरक्षित 13 सीटों पर हार मिली है तो यह उसके लिए बड़ा झटका है। ऐसे में भाजपा ने अब लोकसभा चुनाव से पहले अपना पूरा फोकस आदिवासी वोटरों पर कर दिया है।

अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि जिस दल के साथ आदिवासी वोटर्स गए उसकी सरकार बनी है। 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी।

इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।

वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई।

वहीं दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो तो प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने 24 सीटों पर जीत हासिल की है वहीं कांग्रेस ने 22 सीटों पर जीत हासिल की है। ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव के कुल नतीजों को देखा जाए तो आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला लगभग बराबरी का नजर आता है। अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों देखे तो भाजपा ने विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर 2018 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसे में भाजपा अब लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों पर अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है।
 

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