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Written By WD

सईद का माँ को खत

खामोश क्रांति

सईद का माँ को खत -
ND
सईद मिर्जा का कुछ वर्षों का एकांतवाश हाल ही में मुखर हुआ। हालाँकि उन्‍होंने अपने इस अकेले में भी कई आवाज को समेटा और केद्र में अपनी माँ को रखा। उन्‍होंने किताब लिखी -'अम्मी, लैटर टू ए डेमोक्रेटिक मदर। इसके बाद एक और खुशगवार बाकया यह होने वाला है कि उन्‍होंने फिल्‍म बनाने की भी घोषणा कर दी है।

दरअसल सईद जिस मिट्टी के बने हैं, उनके लिए यह एकांतवाश जरूरी थी, लेकिन वहाँ स्‍टैटिज्‍म नहीं रहा हो, बिल्‍कुल नहीं। सईद की तासिर में स्‍टैटिज्‍म है ही नहीं। अकेले रहते हुए भी वो डायनमिक हैं। बहुत कुछ चलता होगा दिमाग में। तभी तो किताब लिखी। वैसे दो साल पहले सईद ने अपने बारे में, कहाँ-कहाँ गुजरे वगैरह पर किताब लिख रहे थे।

फिलहाल माँ के दायरे में रखकर उनकी किताब सामने आई है 'अम्मी, लैटर टू ए डेमोक्रेटिक मदर।' जैसा कि शीर्षक से ही ध्वनित होता है, उन्होंने अपनी प्रजातांत्रिक सोच वाली माँ को संबोधित करते हुए पुस्तक लिखी है। उनकी इस संस्मरणात्मक शैली वाले उपन्यास से प्रस्तुत है एक छोटा-सा टुकड़ा।

'मैं कल्पना कर रहा हूँ कि वह पल कैसा रहा होगा? वह 1938 का साल था और बुरका तो तुम तबसे पहनती आ रही थीं जब तुम तेरह साल की थीं। तुम्हारे दिमाग में आखिर क्या आया होगा कि तुमने अचानक यह निर्णय ले लिया होगा कि अब से बुरका नहीं पहनोगी? कितना अविश्वसनीय निर्णय था यह?

वैसे मुझे लगता है कि यह फैसला तुम्हारे दिमाग में तय था और तुम कभी से निर्णय के इस क्षण की राह देख रही थीं। क्यूँ मैं सही यूँ ना? अच्छा बाबा ने क्या किया या कहा होगा जब तुमने अपना सिर झटक दिया होगा? मुझे लगता है वो मुस्कुराए होंगे। उतारकर हाथ में ले लिए गए बुरके का तुमने क्या किया होगा? मुझे पता चला है तुमने इसे तह करके बाँह पर लटका लिया था, रास्ते पर इसी तरह चलते हुए तुम बाबा के साथ घर आई थीं।

सड़क पर दसियों लोग तुम्हारे सामने से गुजरे होंगे, कुछ ने पलटकर तुम्हें घूरा भी होगा। क्या तुमने उन्हें पलटकर देखा या तुम सड़क की तरफ गर्दन झुकाकर चलीं। मुझे पता है बाद में तुमने बुरका तह करके ट्रंक में डाल दिया था जैसे
  दरअसल सईद जिस मिट्टी के बने हैं, उनके लिए यह एकांतवाश जरूरी थी, लेकिन वहाँ स्‍टैटिज्‍म नहीं रहा हो, बिल्‍कुल नहीं। सईद की तासिर में स्‍टैटिज्‍म है ही नहीं। अकेले रहते हुए भी वो डायनमिक हैं। बहुत कुछ चलता होगा दिमाग में। तभी तो किताब लिखी।      
अपने आपको और दुनिया को कह रही हों, 'पुराना अध्याय अब बंद हो गया।' मेरे खयाल से यह सबसे खामोश क्रांति थी, क्योंकि बाद में भी तुम्हें और बाबा को तुम्हारे इस निर्णय के बारे में बहस करते कभी नहीं देखा।'

* लेखक- सईद मिर्जा
* पुस्‍तक- अम्मी, लैटर टू ए डेमोक्रेटिक मदर