-समान लतीफ (श्रीनगर), मुरली कृष्णन
कश्मीर में संवैधानिक विशेषाधिकारों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद, यहां के लोगों का भविष्य अनिश्चितता से घिरा है। कश्मीर में नागरिकता, भू स्वामित्व और रोजगार से जुड़ी संवैधानिक गारंटियों को बुनियादी तौर पर बदल देने वाले केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। कोर्ट के फैसले के एक दिन बाद, कश्मीर में सबसे पुराने और सबसे बड़े राजनीतिक दल नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्यालय पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच सदस्यों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि 2019 में बीजेपी सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को हासिल विशेष दर्जा वापस लेकर अपनी सत्ता का अतिक्रमण नहीं किया था। अदालत ने अनुच्छेद 370 को 'अस्थायी प्रावधान' बताया।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कोर्ट के फैसले को मायूस करने वाला बताया। उन्होंने यह भी कहा कि उनका दल अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेगा।
सादिक ने डीडब्ल्यू को बताया, 'हम जम्मू और कश्मीर के लोगों को देश की सर्वोच्च अदालत से इंसाफ मिलने की उम्मीद कर रहे थे।'
सरकार के विवादास्पद फैसले को चुनौती देते हुए 20 से ज्यादा याचिकाएं डाली गई थीं। इनमें कहा गया था कि भारतीय संसद के पास उस क्षेत्र के विशेष दर्जे को खत्म करने की शक्ति नहीं है, सिर्फ जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा ही उस पर कोई फैसला कर सकती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर को अपना संविधान बनाने और कुछ हद तक आंतरिक स्वायत्तता की अनुमति देता है। स्थानीय स्तर पर स्वीकृत कानूनों के तहत इसका मतलब ये था कि सिर्फ स्थानीय कश्मीरियों को ही वोट देने, जमीन का मालिकाना हासिल करने और सरकारी नौकरियां पाने का अधिकार था।
2019 में केंद्र के कदम का विरोध करने वाले कश्मीरियों का ये भी आरोप था कि बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाके में जनसांख्यिकी बदलाव लाने की नीयत से भूस्वामित्व के प्रावधान वाले अनुच्छेद 35 ए को खत्म करने का कदम उठाया था।
जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि बीजेपी कश्मीर में, 'बाहर से लोगों को लाकर और उन्हें यहां बसाकर अलग किस्म की डेमोग्राफी बनाना चाहती है।'
कश्मीर के लिए आगे क्या?
फैसले के बाद, कश्मीरी पर्यवेक्षकों और क्षेत्रीय राजनीतिज्ञों के लिए बड़ा सवाल ये है कि क्षेत्र आगे कैसे बढ़ेगा।
पूर्व कश्मीरी मध्यस्थ और दक्षिण एशिया में शांति और संघर्ष मामलों की विशेषज्ञ राधा कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि सरकार का कदम 'प्रभावित लोगों की राय न लेकर, उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का अनादर करता है और संघ से कश्मीरी अलगाव को और सख्त ही बनाता है।' उनके मुताबिक 'इससे और ज्यादा असुरक्षा पैदा होगी और शायद हिंसा भी भड़केगी, अभी तो नहीं लेकिन धीरे-धीरे।'
राधा कुमार कहती हैं, 'पहले आतंकवाद इसलिए खत्म हुआ कि लोग संघर्ष से आजिज आ चुके थे और उन्होंने आतंकवादियों की मदद करना बंद कर दिया था। अब उनके लिए सहानुभूति फिर लौट सकती है।' कश्मीर दशकों से आतंकी हिंसा का ठिकाना रहा है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद इलाके में भड़के आंदोलन के जवाब में भारत ने अर्धसैनिक बलों को भेजकर कर्फ्यू लगाने और संचार व्यवस्था बंद करने जैसे कदम उठाए थे।
2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष दर्जे की समाप्ति को सही ठहराते हुए दावा किया था कि इससे जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा हालात काबू में आ जाएंगे और आर्थिक विकास की गति तेज होगी।
कश्मीर टाइम्स अखबार की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन ने डीडब्ल्यू को बताया कि कोर्ट के फैसले से 'निराशा और कुछ खो देने की भावना' घर करेगी। भसीन यह भी कहती हैं कि स्थिरता कायम रखने को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं क्योंकि 'बहुत खराब अतीत वाला कश्मीर एक संवेदनशील क्षेत्र है।'
कश्मीर में राजनीतिक परिवर्तन?
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का कहना है कि अपने फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने 'प्रचंड बहुमत वाली सरकार को मनमानी करने और देश के संघीय ढांचे में जो कुछ बचा-खुचा है, उसे ढहा देने की खुली छूट दे दी है।' मुफ्ती ने सोशल मीडिया पर जारी पांच मिनट के वीडियो संदेश में कहा, 'ये न सिर्फ जम्मू और कश्मीर के लिए, बल्कि भारत के विचार को मिली मौत की सजा है।'
11 दिसंबर को कोर्ट ने यह भी कहा कि दूसरे भारतीय राज्यों की तरह जम्मू और कश्मीर को यथाशीघ्र राज्य के रूप में ले आना चाहिए। अगले साल 30 सितंबर को वहां स्थानीय निकाय के चुनाव होंगे।
राजनीतिविज्ञानी और कश्मीर मामलों की जानकार नवनीता चड्ढा बेहरा ने डीडब्ल्यू को बताया कि कोर्ट का आदेश, सत्ता का संतुलन सत्तारूढ़ दल की ओर झुका सकता है और इससे भारतीय राज्य का संघीय चरित्र भी बदल सकता है।
वह कहती हैं, 'ये एक बहुत बड़ी बात हो जाएगी कि भारतीय संसद किसी भी राज्य के लोगों की तरफ से बोल सकती है और अपने ढंग से ऐसा कुछ कर सकती है, जिसके अपरिवर्तनीय नतीजे हों।'
कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य पर कभी नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे क्षेत्रीय दलों का बोलबाला था, आज वो परिदृश्य बड़े भारी बदलाव से गुजर रहा है।
कश्मीर के राजनीतिविज्ञानी नूर मुहम्मद बाबा का कहना है कि कश्मीर में राजनीतिक ताकतों के पास एकजुट होने का मौका है।
उन्होने डीडब्ल्यू से कहा, 'एकबारगी प्रतिनिधि आवाजें उभर आएं, एकबार लोकतंत्र बहाल हो जाए और लोग खुद को राजनीतिक तौर पर सशक्त बनाना शुरू करें, तो कुछ खास सुरक्षा उपायों के लिए, जमीन और रोजगार को बचाने के लिए दबाव बनाया जा सकेगा। लोग सशक्तिकरण चाहेंगे।'
फैसले का जश्न मनाती बीजेपी
देश में मई 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले बीजेपी के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ा ही उत्साहपूर्ण है।
मोदी ने फैसले को 'उम्मीद का प्रकाश-स्तंभ, एक चमकदार भविष्य का वादा और ज्यादा मजबूत, ज्यादा एकजुट भारत के हमारे सामूहिक संकल्प का टेस्टामेंट' बताया।
कश्मीर से बीजेपी नेता प्रिया सेठी ने कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने से 'भारत की अखंडता में मदद' मिलेगी। सेठी ने कहा कि उस प्रावधान को 'एक-न-एक दिन जाना ही था और वो चला गया है। यह राष्ट्र की बेहतरी के लिए है।'
कश्मीर के सबसे बड़े शहर श्रीनगर में हाउसबोट के मालिक अब्दुल मजीद ने कोर्ट के फैसले को 'धक्का' बताया। उनका कहना है, 'हमें उम्मीद थी कि कोर्ट देखेगी अनुच्छेद 370 किस तरीके से हमसे छीना गया और लोगों के अधिकारों का हनन हुआ। लेकिन अब तो सरकार जो चाहती है, उसे वो सब करने की छूट मिल गई है।'