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Last Modified: सोमवार, 20 अगस्त 2018 (11:41 IST)

जान लेती आकाशीय बिजली

जान लेती आकाशीय बिजली | sky lightning
भारत में हाल के वर्षों में वज्रपात यानी आसमानी बिजली गिरने से होने वाली मौतों की तादाद तेजी से बढ़ी है। अब एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अनियोजित शहरीकरण और पेड़ों की कटाई से ही इन घटनाओं में इजाफा हुआ है।
 
 
पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलाजी के वैज्ञानिकों ने यह बात कही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस साल मई तक देश के पांच राज्यों में बिजली गिरने से 80 लोगों की मौत हो गई थी इनमें से 51 अकेले यूपी में ही मरे थे।
 
 
सबसे ज्यादा मौतें 
देश में बाढ़, भूस्खलन, भूकंप और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं में होने वाली मौतों में से वज्रपात से होने वाली मौतों की तादाद लगभग 10 फीसदी है। राष्ट्राय आपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2005 से देश में वज्रपात की वजह से हर साल लगभग दो हजार लोगों की मौत हो जाती है। लेकिन पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलाजी (आईआईटीएम) ने यह तादाद साढ़े तीन हजार होने का दावा किया है। बावजूद इसके इसे प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता। नतीजतन इससे मौत की स्थिति में मृतकों के परिजनों को मुआवजा नहीं मिल पाता।
 
 
लोकसभा में बीते दिनों पेश सरकारी आंकड़े में कहा गया था कि इस साल मई तक देश के विभिन्न राज्यों में वज्रपात से 80 लोगों की मौत हो गई थी। उसके बाद भी देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी घटनाएं होती रही हैं। मोटे अनुमान के मुताबिक, देश में इस साल अब तक आसमानी बिजली की चपेट में आकर मरने वालों की तादाद दो सौ के पार पहुंच गई है। अब अमेरिका जैसे देशों के आंकड़ों से तुलना करें तो हालत की गंभीरता समझ में आती है। वहां वज्रपात से सालाना औसतन 27 लोगों की मौत होती है।
 
 
दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में खेतों या खुले में काम करने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे यहां आसमानी बिजली की जद में आने वालों की तादाद बढ़ जाती है। देश के पूर्वी हिस्से में स्थित पश्चिम बंगाल, ओडीशा व असम में हालत ज्यादा गंभीर है। इनके अलावा महाराष्ट्र, केरल, झारखंड और बिहार में भी ऐसी घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं।
 
 
वजह
देश में हाल के वर्षों में आखिर वज्रपात की घटनाएं तेजी से क्यों बढ़ रही हैं ? पुणे स्थित आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने कहा है कि तेजी से होने वाला अनियंत्रित शहरीकरण और पेड़ों की कटाई इन घटनाओं और इससे होने वाली मौतों की तादाद बढ़ने की प्रमुख वजह है। संस्थान की ओर से ताजा अध्ययन में कहा गया है कि अब ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी इलाकों में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं।

आईआईटीएम के वैज्ञानिक डॉ सुनील डी पवार कहते हैं, "देश में हर साल आसमानी बिजली की चपेट में आकर तीन से साढ़े तीन हजार लोगों की मौत हो जाती है। बीते पांच वर्षों के दौरान यह सिलसिला तेज हुआ है। इस साल भी जम्मू-कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग तक हिमालय के तराई इलाकों, पूर्वी व मध्य भारत में ऐसी घटनाएं और बढ़ने का अंदेशा है।” उनका दावा है कि इन घटनाओं में होने वाली मौतों की तादाद हर साल लगातार बढ़ रही है।
 
 
संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि प्राकृतिक घटना होने की वजह से इसमें वृद्धि की एकदम सटीक वजह बताना तो संभव नहीं हैं। लेकिन शहरी इलाकों में अनियंत्रित तरीके से होने वाला शहरीकरण इसकी एक प्रमुख वजह है। पवार कहते हैं, "ग्लोबल वार्मिंग से भी इसका सीधा संबंध है। शहरी इलाकों में पेड़ों की कटाई में तेजी से भी ऐसी घटनाओं का सिलसिला तेज होता है। इन वजहों से ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी इलाके लगातार गर्म हो रहे हैं।”
 
 
संस्थान ने अपने अध्ययन में कहा है कि शहरी इलाकों में बढ़ता प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन भी इन घटनाओं को तेज करने में सहायक होता है। पवार कहते हैं, "मेघालय औऱ पूर्वोत्तर के दूसरे पर्वतीय राज्यों में अब भी हरियाली रहने की वजह से वहां वज्रपात और इससे होने वाली मौतों की तादाद देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले कम हैं।” वह कहते हैं कि मुंबई के मुकाबले कोलकाता जैसे महानगर में वज्रपात की घटनाएं बढ़ी हैं। मानसून के दौरान बादल नीचे होने की वजह से वज्रपात की घटनाएं कम होती हैं।
 
 
अंकुश के उपाय
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्राकृतिक आपदा होने की वजह से इस पर पूरी तरह अंकुश तो नहीं लगाया जा सकता। लेकिन विभिन्न इलाकों में होने वाले वज्रपात की घटनाओं पर गहन शोध औऱ एक सटीक चेतावनी प्रणाली के जरिए इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है। पवार कहते हैं, "देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम के अंतर व इसके बदलते मिजाज को समझने के लिए बड़े पैमाने पर शोध जरूरी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में मौसम की स्थिति भी अलग-अलग होती है। इस बात का भी अध्ययन जरूरी है कि ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ क्यों रही हैं।”
 
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुमंजिली इमारतों में बिजली गिरने की स्थिति में बचाव के समुचित उपाय किए जाने चाहिए। बिजली गिरने के दौरान लोगों को जमीन पर लेट जाना चाहिए और चलने-फिरने से बचना चाहिए। केरल समेत कई राज्यों के वैज्ञानिक अब इसे प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल करने की भी मांग कर रहे हैं।
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 
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