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Last Modified: मंगलवार, 4 जून 2019 (11:24 IST)

हजारों करोड़ का खर्च, सैकड़ों सैनिकों की मौत फिर भी क्यों जरूरी है सियाचिन

हजारों करोड़ का खर्च, सैकड़ों सैनिकों की मौत फिर भी क्यों जरूरी है सियाचिन | Siachen
हर साल सियाचिन में वहां की हालात के चलते सैकड़ों सैनिक मारे जाते हैं। रोज का खर्च करोड़ों में है। सियाचिन में रहना बेहद कठिन है फिर भी भारत और पाकिस्तान वहां से हटने को तैयार क्यों नहीं हैं?
 
 
भारत के नए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह पद संभालने के बाद पहले सीमा दौरे पर निकले हैं। यह सीमा है सियाचिन ग्लेशियर। सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। काराकोरम पर्वत श्रृंखला पर लगभग 20 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन दुनिया के सबसे दुर्गम स्थानों पर है। सिया शब्द का अर्थ गुलाब और चिन का अर्थ स्थान होता है। सियाचिन का मतलब गुलाब का स्थान या गुलाबों का बगीचा कह सकते हैं लेकिन सियाचिन में गुलाब तो क्या किसी भी तरह का कोई फूल नहीं हो सकता।
 
 
इसका कारण है यहां तापमान हमेशा माइनस 10 डिग्री या इससे नीचे होता है। सर्दियों में तो यह तापमान माइनस 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। साथ ही पूरे इलाके में हमेशा बर्फ की मोटी चादर बिछी रहती है। सियाचिन उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बर्फ से ढंका क्षेत्र है। सियाचिन की सबसे ऊंची जगह इंदिरा पोस्ट है जो 18,875 फीट की ऊंचाई पर है। पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली जगह साल्तारो घाटी सियाचिन से 3,000 फीट नीचे है।
 
 
1984 में ऑपरेशन मेघदूत के बाद भारत सियाचिन पहुंचा
भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 में युद्धविराम लागू हुआ। 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद 1972 में शिमला समझौता हुआ। इस समझौते में तय हुआ कि सियाचिन इंसान के रहने लायक जगह नहीं है। इसलिए इसे सैन्य हस्तक्षेप से बाहर रखा जाएगा। इसका मतलब यहां दोनों देशों की फौज तैनात नहीं होगी। सियाचिन के उत्तरी हिस्से का नाम एनजे 9842 है। लेकिन 70 के दशक के अंत में भारतीय सेना के कर्नल एन कुमार को एक जर्मन पर्वातारोही ने काराकोरम पहाड़ी का एक नक्शा दिखाया। यह नक्शा अमेरिका में बना था जिसमें सियाचिन समेत पहाड़ी के एक बड़े हिस्से को पाकिस्तान में दिखाया गया। हालांकि भारत और पाकिस्तान ने उत्तरी कश्मीर के इस हिस्से में कभी लाइन ऑफ कंट्रोल आधिकारिक रूप से नहीं बनाई थी।
 
 
इस नक्शे के सामने आने के बाद जब जांच शुरू की गई तो पता चला कि 70 के दशक में पाकिस्तान ने कई विदेशी पर्वतारोहियों को इस पहाड़ी पर ट्रेकिंग करने की अनुमति दी थी मतलब पाकिस्तान इसे आधिकारिक रूप से अपना हिस्सा मान रहा था। ऐसे में भारत ने कर्नल कुमार और उनकी टीम को जायजा लेने के लिए भेजा। इस टीम ने पाया कि यहां पर पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी थी। कर्नल कुमार और उनकी टीम ने इस इलाके का नक्शा भी बना लिया।
 
 
भारत अभी कूटनीतिक तौर पर सियाचिन पर अपना पक्ष रखने की तैयारी में था। लेकिन एक गुप्तचर सूचना ने इस कूटनीतिक कार्रवाई को सैनिक कार्रवाई में बदल दिया। सूचना थी कि पाकिस्तानी सेना बड़े पैमाने पर विशेष पर्वतारोहियों वाले कपड़ों की खरीददारी कर रही है। इससे अंदाजा लगाया गया कि पाकिस्तानी सेना सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऐसा कर रही है।
 
 
भारत ने यह देखते हुए 1984 में ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च कर दिया। कुमायूं रेजिमेंट की एक टुकड़ी को हेलिकॉप्टरों से सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात कर दिया। पाकिस्तान और भारत के बीच इसको लेकर तनाव भी बढ़ा लेकिन भारत ने इस जगह से हटने से इंकार कर दिया। 2003 तक यहां भारत और पाकिस्तान के बीच झड़पों की खबर आती रहती थी लेकिन 2003 से दोनों देशों के बीच सियाचिन में कोई झड़प नहीं हुई है।
 
 
हर साल हजारों करोड़ खर्च और सैकड़ों मौतें
सियाचिन में दोनों तरफ दोनों देशों की फौजें तैनात हैं। भारतीय सेना ऊंचाई पर है और पाकिस्तानी सेना नीचे है। सियाचिन में तैनात रहे शमशेर अली खान बताते हैं कि वहां पर तैनात सैनिकों को बेहद मुश्किल परिस्थितियों में काम करना होता है। यहां सैनिकों को नहाने या शेविंग करने की अनुमति नहीं होती है। एक लकड़ी की चौकी पर स्लीपिंग बैग को रखकर सोना होता है। सोते समय ऑक्सीजन की कमी होने से मौत होना आम है। इसलिए एक सैनिक की ड्यूटी सो रहे लोगों को बार-बार हिलाकर जगाते रहने की होती है जिससे पता चल सके कि ऑक्सीजन की कमी से किसी को सांस लेने में तकलीफ ना हो रही हो।
 
 
सियाचिन में पेड़, पौधा, पशु या पक्षी कुछ नहीं है। सिर्फ बर्फ ही बर्फ है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है। सियाचिन में भारत की सेना पर रोज करीब सात करोड़ रुपये का खर्च आता है। यहां पर सालभर आने वाले बर्फीले तूफान या हिमस्खलन से भी सैनिकों की जान को खतरा होता है। भारत में हर साल बड़े हिमस्खलनों के चलते दहाई के आंकड़ें में सैनिकों का मारे जाना आम है। साल 2012 में पाकिस्तान के 140 सैनिक बर्फ में दबने से मारे गए थे।
 
 
दोनों देश सेना क्यों नहीं हटाना चाहते
1984 से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच 13 बार सियाचिन से सेना हटाने को लेकर बातचीत हो चुकी है लेकिन अब तक इसका कोई नतीजा नहीं निकला है। रिटायर्ड मेजर मीर हसन कहते हैं, "सियाचिन में रहकर दोनों देश अपनी कूटनीतिक स्थिति मजबूत बनाए रखने की कोशिश करते हैं।" सियाचिन भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच स्थित है। ऐसे में भारत इस जगह पर जमे रहना चाहता है क्योंकि वो चीन और पाकिस्तान दोनों की तरफ से आने वाले खतरे से निपट सकता है।
 
 
भारत यहां से पाकिस्तानी और अक्साई चिन के इलाके पर नजर रख पाता है। सियाचिन भारतीय उपमहाद्वीप में ताजा पानी का सबसे बड़ा स्रोत है। सियाचिन से निकलने वाली नुब्रा नदी सिंधु नदी में मिलती है जो पाकिस्तान में पानी का एक बड़ा स्रोत है। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु के पानी को लेकर संधि है। बार-बार भारत और पाकिस्तान के संबंधों में आते तनाव से अब इस संधि पर भी प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में इस नदी के स्रोत पर मौजूद होना भारत को कूटनीतिक बढ़त देता है।
 
 
भारत और पाकिस्तान के बीच में सबसे बड़ा विवाद कश्मीर को लेकर है। कश्मीर पर चीन की भी निगाहें हैं। भारत का मानना है कि अगर सियाचिन से सेना हटाई गई तो यह पाकिस्तान और चीन के लिए एक एंट्री पॉइंट हो सकता है क्योंकि उत्तरी कश्मीर का यह हिस्सा भौगोलिक दृष्टि से जरूरी है। साथ ही लेह और लद्दाख का हिस्सा नुब्रा नदी घाटी से बस 120 किलोमीटर दूरी पर है। चीन और भारत के बीच होने वाले विवाद के चलते सियाचिन में भारत का सेना रखना चीन के परिप्रेक्ष्य में भी जरूरी है।
 
 
2012 में पाकिस्तान के 140 सैनिकों के मारे जाने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य जनरल ने भारत और पाकिस्तान से इस इलाके से सेना हटाने की अपील की थी। लेकिन यह आज तक हो नहीं सका है। दोनों देश एक दूसरे पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते रहे हैं। इसलिए इतने सैनिकों की मौतों और हजारों करोड़ रुपए के खर्चे के बावजूद कोई समाधान नहीं निकल सका है। सियाचिन में आर्थिक और सैन्य नुकसान के अलावा पर्यावरण का भी नुकसान हो रहा है। सियाचिन में मानव उपस्थिति के चलते वहां के इकोसिस्टम को भी नुकसान हुआ है। लेकिन इसका भी आकलन तब हो सकेगा जब वह क्षेत्र सैन्यमुक्त हो सकेगा।
 
 
रिपोर्ट ऋषभ कुमार शर्मा
 
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