• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. indias wheat rice export ban is not very effective for food inflation
Written By DW
Last Modified: रविवार, 3 सितम्बर 2023 (08:26 IST)

बहुत कारगर नहीं भारत का गेहूं-चावल निर्यात बैन

बहुत कारगर नहीं भारत का गेहूं-चावल निर्यात बैन - indias wheat rice export ban is not very effective for food inflation
अविनाश द्विवेदी
ban on wheat and rice export : भारत सरकार ने पिछले साल गेहूं निर्यात को बैन किया था। इसके बाद गैर-बासमती चावल का निर्यात बैन हुआ और अब बारी आई बासमती चावल के निर्यात पर कई तरह की पाबंदियों की। इन सारे कदमों के बावजूद भारत में खाद्य महंगाई नियंत्रित होने का नाम नहीं ले रही।
 
फिर अल नीनो के प्रभाव के चलते कमजोर होता मॉनसून, सरकार के भंडार में घटता अनाज, फ्री राशन स्कीम की जरूरतें और महंगाई के दौर में नजदीक आते चुनाव भी सरकार और जानकारों की चिंता बढ़ा रहे हैं।
 
जीवनस्तर ही नहीं पोषण के लिए भी चिंता
जुलाई में भारत में खाद्य महंगाई 11.5 फीसदी रही। यह तीन साल में सबसे उच्चतम स्तर था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले पांच साल में भारत में सामान्य खाने की थाली का दाम 65 फीसदी बढ़ा है, जबकि इस दौरान लोगों की कमाई सिर्फ 37 फीसदी बढ़ी है। यानी खाने पर लोगों का खर्च काफी ज्यादा बढ़ गया है।
 
एक ओर यह महंगाई आम लोगों के जीवनस्तर को प्रभावित कर रही है, तो दूसरी ओर वंचित समुदाय से आने वाले लोगों और खासकर बच्चों की पोषण जरूरतों के लिए भी चिंता पैदा कर रही है। दूध, दाल और अंडों की महंगाई से बच्चों का स्वास्थ्य खासकर प्रभावित होता है क्योंकि उनके लिए इन चीजों की उपलब्धता घट जाती है। ग्रामीण इलाकों में ये समुदाय ज्यादा संकट में है क्योंकि वहां लगातार लोगों की क्रय क्षमता घट रही है।
 
आर्थिक जानकारियां देने वाली प्रतिष्ठित कंपनी "स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ग्लोबल" के सम्यक पांडेय बताते हैं कि यह एक चक्रीय क्रम है और भारत में खाद्य महंगाई सिर्फ गेहूं या चावल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी खाद्य बास्केट ही महंगाई से जूझ रही है। ऐसे में सिर्फ निर्यात पर पाबंदी से इसे रोका जा सकेगा, संभव नहीं लगता।
 
कमजोर मॉनसून और फ्री राशन का बोझ
कोविड के बाद से अब तक वंचित समुदायों के लिए केंद्र सरकार की मुफ्त राशन स्कीम एक बड़ा सहारा रही है। इस पर भी खतरा मंडरा रहा है। अगस्त की शुरुआत में सरकार के सेंट्रल पूल में 2.8 करोड़ टन गेहूं और 2.4 करोड़ टन चावल था। कुल मिलाकर करीब 5.2 करोड़ टन अनाज। जबकि एक अक्टूबर को सामान्य बफर स्टॉक में 30.8 करोड़ टन अनाज होना चाहिए।
 
भारतीय खाद्य कॉर्पोरेशन को नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (एनएफएसए) के तहत आवंटन के लिए एक साल में 3.6 करोड़ टन चावल और 1.8 करोड़ टन गेहूं की जरूरत होती है। वहीं 2 करोड़ टन चावल और 3 करोड़ टन गेहूं रक्षा और सैन्य जरूरतों के लिए रिजर्व होता है। इसे देखें, तो अब देश के पास एक साल से भी कम का स्टॉक बचा है।
 
फिर सरकार यह भी कह चुकी है कि वो अतिरिक्त 50 लाख टन गेहूं और 25 लाख टन चावल को खुले बाजार में लाएगी। हालांकि अभी सरकार के चावल भंडार में धान की कटाई शुरू होने के बाद से बढ़ोतरी जरूर होगी। लेकिन एक अक्टूबर से शुरू हो रहे धान कटाई के मौसम पर कमजोर मॉनसून के चलते उत्पादन में कमी का ग्रहण लगा हुआ है।
 
कम चावल उत्पादन के दूसरे नुकसान भी
अगस्त की शुरुआत तक किसानों ने करीब 9.2 करोड़ हेक्टेयर इलाके में फसल बुआई की थी, जिसमें से 2.9 करोड़ हेक्टेयर पर धान की बुआई की गई थी। इस बार पिछले साल से धान का रकबा 9 फीसदी बढ़ा है। लेकिन इन तैयारियों को भारत में मानसून की अनियमित बारिश और फिर अल नीनो के असर प्रभावित होने का डर है। अल नीनो का असर खेती के अगले चक्र पर भी होना तय है। अगस्त की रिकॉर्ड कम बारिश के चलते देशभर में पानी के जलाशय अपने स्तर से काफी नीचे हैं। इन जलाशयों का पानी रबी की फसल के काम आता है। 
 
इनके चलते जानकारों को इस साल चावल के अलावा गेहूं की अगली फसल का उत्पादन भी पिछली बार के मुकाबले कम रहने का अनुमान है। सरकार के चावल निर्यात के फैसलों के पीछे यह भी एक बड़ी वजह है। हालांकि इसका ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं पर भी असर होना तय है। जैसे सरकार चावल के कुछ स्टॉक एथेनॉल उत्पादन के लिए दे रही थी। अब उसे लेकर भी चिंता पैदा हो गई है। इस साल सरकार ने फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के स्टॉक से 34 लाख टन चावल एथेनॉल उत्पादन के लिए देने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से 13 लाख टन पहले ही दिया जा चुका है। लेकिन आने वाले समय में ऐसी जरूरतों के लिए चावल देना मुश्किल होगा।
 
दर्द बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक कमजोर मॉनसून का असर दालों के उत्पादन और बाद में उनकी महंगाई पर भी होगा। फरवरी 2024 तक अल नीनो का प्रभाव रह सकता है, यानी यह आने वाली फसलों को भी प्रभावित कर सकता है। भारत सरकार भी इस समस्या को समझ रही है और लगातार इसके लिए प्रयास कर रही है। लेकिन किसी एक खाद्य वस्तु की महंगाई से निजात मिलती है, तो दूसरी खाद्य वस्तु की महंगाई बढ़ जाती है।
 
एसएंडपी के सम्यक पिछले कई महीनों में सरकार के इस महंगाई से निपटने के कदमों के बारे में बताते हैं। वो खाद्य तेल की महंगाई, दाल की महंगाई, प्याज की महंगाई और गेहूं-चावल की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए पिछले महीनों में उठाए गए दर्जन भर प्रयासों की ओर इशारा करते हैं।
 
खेती के दूसरे जानकार तो यह भी कहते हैं कि खाद्यान्न की महंगाई से निपटने में सरकार का अगला कदम रूस जैसे देशों से गेहूं आयात का हो सकता है। लेकिन गेहूं की बुआई के समय ही मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में चुनाव भी होने हैं। इस वजह से सरकार शायद अभी गेहूं के आयात से बचे।
ये भी पढ़ें
स्कूली बच्चों में कैसे पनपी मुस्लिमों के लिए नफरत?