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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023 (14:55 IST)

फ्रांस में इमिग्रेशन बिल पास, मैक्रों की पार्टी में बगावत

फ्रांस में इमिग्रेशन बिल पास, मैक्रों की पार्टी में बगावत - Immigration bill passed in France
-एसएम/ (एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
 
Immigration bill passed in France : काफी अवरोध के बाद फ्रांस की संसद ने इमिग्रेशन बिल पास कर दिया है। प्रवासियों के लिए सख्त प्रावधानों वाले इस कानून को दक्षिणपंथी पार्टियां 'ऐतिहासिक जीत' बता रही हैं जबकि इमैनुएल मैक्रों की अपनी पार्टी में गहरा विरोध दिख रहा है। इस कानून में आप्रवासियों के लिए कई सख्त नियमों का प्रावधान है। इसके कारण आप्रवासियों के बच्चों के लिए फ्रेंच बनना ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। साथ ही, फ्रांस की सरकारी जन कल्याण सुविधाओं का फायदा भी उन्हें देर से मिल सकेगा।
 
नए कानून पर जहां राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार और रुढ़िवादी विपक्ष के बीच सहमति बनी, वहीं मैक्रों की अपनी पार्टी और सरकार बंटी हुई नजर आ रही है। मैक्रों की रेनेजां पार्टी के वाम झुकाव वाले सदस्यों ने कानून का विरोध किया है। खबरों के मुताबिक कई मंत्रियों ने इस्तीफा देने की चेतावनी दी है। इमिग्रेशन बिल की रूपरेखा और सख्त प्रावधानों के विरोध में स्वास्थ्य मंत्री ओरेलियां रूसो ने भी इस्तीफे की पेशकश की।
 
इमिग्रेशन विरोधी खेमा खुश है
 
कानून के प्रावधान इतने सख्त और रूढ़िवादी हैं कि मैक्रों की राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी और दक्षिणपंथी नेता मरीन ल पेन ने इसे अपनी 'वैचारिक जीत' बताया। मरीन ल पेन की दक्षिणपंथी पार्टी 'नेशनल रैली' इमिग्रेशन विरोधी है और अभी संसद की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है।
 
अपने शुरुआती रूप में इस बिल के माध्यम से मैक्रों सरकार माइग्रेशन पर कुछ कड़े कदम उठाने के साथ-साथ प्रवासी कामगारों के बीच संतुलन बनाना चाहती थी। लेकिन पिछले हफ्ते जब यह बिल संसद में पेश किया गया, तो विपक्षी दलों ने इसपर चर्चा करने से भी इनकार कर दिया। यूरोप के कई अन्य हिस्सों की तरह फ्रांस में भी दक्षिणपंथी राजनीति माइग्रेशन पर ज्यादा सख्त रवैया अपनाने की समर्थक है।
 
दक्षिणपंथी दलों के साथ समझौता
 
यूरोप के कई देशों की तरह फ्रांस में भी कई क्षेत्रों में काम करने वालों की काफी जरूरत है। ऐसे में विदेशी कामगारों के आने से अर्थव्यवस्था को फायदा होने की उम्मीद है। जानकारों के मुताबिक, बेहद सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी से प्रवासी कामगार हतोत्साहित हो सकते हैं।
 
बिल पर बने गतिरोध को दूर करने के लिए विपक्षी दलों के साथ बातचीत हुई और प्रावधानों को ज्यादा सख्त बनाने के बाद सहमति बन पाई। हालांकि वोटिंग के दौरान मैक्रों की अपनी मध्यमार्गी रेनेजां पार्टी में गहरी अहसमति दिखी। कई सांसदों ने बिल के खिलाफ वोट डाला और कई गैरहाजिर भी रहे।
 
बिल का एक अहम पक्ष सामाजिक सुरक्षा के फायदों से जुड़ा है। अब प्रवासियों को फ्रांस में पांच साल बिताने या 30 महीने की नौकरी पर इनका फायदा मिल सकेगा। साथ ही, इसमें माइग्रेशन कोटा का भी प्रावधान होगा। जानकारों के मुताबिक, इस कोटा के कारण प्रवासियों के बच्चों के लिए फ्रेंच बनना ज्यादा मुश्किल हो जाएगा।
 
वाम रुझान वाले विपक्ष का कहना है कि ऐसा करके मैक्रों, दक्षिणपंथी राजनीति की विवादित नीतियों की राह पर चल रहे हैं। मरीन ल पेन की दक्षिणपंथी पार्टी 'राष्ट्रीय प्राथमिकता' की बात करती है जिसके तहत हाउसिंग और सामाजिक सुरक्षा जैसी नीतियों में फ्रेंच लोगों को प्राथमिकता दिए जाने की बात है।
 
कानून की सख्त आलोचना भी हो रही है
 
फ्रेंच ह्युमन राइट्स लीग समेत करीब 50 संगठनों ने इस बिल का विरोध करते हुए एक साझा बयान जारी किया। इसमें कहा गया है, 'लंबे समय से फ्रांस में रह रहे विदेशियों समेत बाकी प्रवासियों के अधिकारों और उनके रहने की स्थितियों के मद्देनजर यह बिल पिछले 40 सालों के दौरान आया सबसे रूढ़िवादी बिल है।'
 
लेफ्ट-विंग अखबार लिबरेशन ने इस कानून को मैक्रों की पार्टी के लिए 'नैतिक हार' बताया। कई गैर-सरकारी संगठनों ने भी इसे बीते कई दशकों का सबसे 'पीछे की और लौटने वाला' कानून बताया। वहीं दक्षिणपंथी नेता और संगठन इसे ऐतिहासिक जीत मान रहे हैं।
 
संवैधानिक पक्ष की समीक्षा
 
हालांकि बड़े स्तर पर हो रही आलोचना और विरोध को देखते हुए इस कानून की समीक्षा की भी बात कही जा रही है। राष्ट्रपति मैक्रों एक टीवी इंटरव्यू में नए कानून पर अपना पक्ष रखने वाले हैं। साथ ही, प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न ने 20 दिसंबर को 'फ्रांस इंटर' रेडियो चैनल से बातचीत में माना कि कानून के कुछ प्रावधान शायद असंवैधानिक हैं।
 
पीएम बोर्न ने कहा कि सरकार को कानून से जुड़े कुछ पक्षों की संसदीय वैधता पर संदेह है। ऐसे में राष्ट्रपति मैक्रों, संसदीय परिषद द्वारा इस पर गौर किए जाने की अनुशंसा करेंगे। यह परिषद कानून लागू किए जाने से पहली उसकी संवैधानिकता की समीक्षा करती है। पीएम बोर्न ने संकेत दिया है कि परिषद की समीक्षा के बाद कुछ बदलाव मुमकिन हैं। 
 
फ्रांस में शरणार्थियों और प्रवासियों को अपनाने की लंबी परंपरा रही है। लेकिन शरण चाहने वालों की बढ़ती संख्या, आम लोगों द्वारा खर्च उठाए जा सकने वाले घरों की कमी और बढ़ती महंगाई के कारण यहां सामाजिक तनाव बढ़ रहा है। साथ ही, प्रवासियों और फ्रेंच मूल्यों के बीच भी कई बार दरार बढ़ती दिखती है।
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