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Written By DW
Last Modified: मंगलवार, 23 मई 2023 (08:19 IST)

बाढ़: कैसे इतना ताकतवर हो जाता है पानी

बाढ़: कैसे इतना ताकतवर हो जाता है पानी - how can water be so powerful in flood
हन्ना फुक्स
कुछ ही मिनटों के भीतर दनदनाती बाढ़ ने सब कुछ घेरना शुरू कर दिया। घर टूटने लगे, कारें ऐसे बहने लगीं जैसे वो माचिस की डिब्बी हों। मकानों के बेसमेंट कब्र में तब्दील हो गये। उत्तरी इटली में एक बार फिर कुदरत ने अपनी ताकत दिखायी है और उसके सामने इंसान बेबस दिखायी पड़ा।
 
आम दिनों में शांत दिखने वाला पानी आखिर इतना ताकतवर कैसे हो जाता है? मिषाएल डित्से, जर्मनी के हेल्महोल्त्स सेंटर पोट्सडाम में जियोमोफलॉजी के विशेषज्ञ हैं। जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज की वेबसाइट पर वह इसे समझाते हैं।
 
डित्से के मुताबिक सबसे पहले यह याद रखना जरूरी है कि एक घनमीटर पानी का वजन एक मीट्रिक टन होता है। वह कहते हैं, "यह बहुत ज्यादा भार है और जो कुछ भी इसके रास्ते में आता है, ये उस पर बहुत वजन डालता है। बहता पानी तो खासा ताकतवर होता है- इतना ताकतवर कि ये आसानी से कारों और बिना लंगर वाले शिपिंग कंटेनरों को बहा सकता है।"
 
इस दौरान कुछ अन्य कारण भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। जैसे, भू कटाव। खराब हो चुकी जमीन भले ही स्थिर दिखायी दे लेकिन पानी का तेज प्रवाह इसे आसानी से बहा सकता है। पोट्सडाम के जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेस के वैज्ञानिक जानना चाहते हैं कि पानी आखिर किस तरह गाद या बालू को बहाता है। बाढ़ के दौरान पानी की लहरें कैसे बहती हैं और बाढ़ किस तरह पूरे इलाके में फैलते हुए आगे बढ़ती है।
 
जर्मनी के मौसम विभाग के मुताबिक भारी बारिश से होने वाले नुकसान को अब तक कमतर आंका गया है। ज्यादातर इलाकों में अचानक होने वाली मूसलाधार बारिश का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता है। मौसम विज्ञानी यह तो बता सकते हैं कि बारिश होगी या नहीं, लेकिन कब और किस खास इलाके में कितनी बारिश होगी, यह नहीं बताया जा सकता।
 
भारी बारिश नदियों से दूर मौजूद इलाकों में भी भारी तबाही मचा सकती है। डित्से कहते हैं, "मूसलाधार बारिश किसी इलाके में जमीन की पानी सोखने की क्षमता से कई गुना ज्यादा पानी उड़ेल सकती है।"
 
मिट्टी और उसकी पानी सोखने की क्षमता
पानी की मात्रा ही बाढ़ को ताकतवर बनाने वाला अकेला फैक्टर नहीं है। जमीन में मिट्टी की संरचना भी अहम भूमिका निभाती है। मिट्टी में मौजूद अतिसूक्ष्म छिद्र इसमें निर्णायक किरदार साबित होते हैं। दो माइक्रोमीटर से भी छोटे कणों के बीच कितनी जगह है, इससे तय होता है कि वहां कितना पानी स्टोर हो सकता है।
 
बरसात से पहले जमीन की कंडीशन भी अहम है। अगर लंबे सूखे के बाद अचानक मूसलाधार बारिश हो तो जमीन एक बार में बहुत ज्यादा जल संग्रह नहीं कर पाती है। सूखी जमीन पानी को स्टोर करने के बजाए उसे ऊपरी सतह से ही बहा देती है। 
 
अपना रास्ता बनाने की ताकत
जर्मनी में राइन नदी पर कोलोन यूनिवर्सिटी का इकोलॉजिकल रिसर्च सेंटर है। रिसर्च सेंटर के नतीजों के मुताबिक बाढ़ के दौरान पानी 1-2 मीटर प्रतिसेंकड की रफ्तार हासिल कर सकता है।
 
डित्से कहते हैं, "रफ्तार और ढाल जितनी ज्यादा होगी, खास तौर पर तटबंधों या पहाड़ों में- और नदी जितनी गहरी होगी, पानी, नदी तल पर उतनी ही ज्यादा ताकत हासिल करेगा। यह अपने बराबर वजन की चीजों को कई किलोमीटर तक खींचता है, इतनी शक्ति रेत, पत्थरों और मलबे को बहाने के लिए काफी है।"
 
पानी और कण: एक घातक टीम
मकानों या सड़कों को बहाने का काम पानी अकेले नहीं करता है। ये नुकसान तो पानी में बहते कण करते हैं। ये जमीन, सड़कों और इमारतों की दीवारों को काटते हुए आगे बढ़ते हैं। डित्से कहते हैं, "इनके हमले का सामना करने वाले मैटीरियल का निचला हिस्सा आसानी से टूटने लगता है।" जरा सी कमजोर जमीन पर बसे रिहाइशी इलाकों के लिये ये बड़ा खतरा है।
 
डित्से चेतावनी देते हैं कि मूसलाधार बारिश के बाद ऐसी बाढ़ कहीं भी आ सकती है। पर्वतीय इलाकों में अचानक बांध नाकाम हो सकते हैं, झीलें भर सकती हैं और निचले इलाकों में भारी तबाही मचा सकती हैं।
 
क्या बाढ़ की भविष्यवाणी की जा सकती है?
डित्से मानते हैं मौसम के पूर्वानुमान को हाइड्रोलॉजिकल मॉडलों के साथ मिलाया जाना चाहिए। "ऐसा करने पर बाढ़ की संभावना का काफी हद तक अनुमान लगाया जा सकता है।"
 
लेकिन इसके बावजूद बाढ़ से होने वाले भूक्षरण का अनुमान लगाना अभी संभव नहीं है। यह बहुत तेजी से होता है और इतने बड़े पैमाने डाटा जुटाना अभी दूर की बात है।
 
बीते कुछ बरसों से सैटेलाइट तस्वीरों और सिस्मोमीटर्स की मदद से बाढ़ की लहरों को रियल टाइम में मॉनिटर कर उनकी ताकत मापने की कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन यह रिसर्च अभी शुरुआती चरण में है। डित्से को उम्मीद है कि यह रिसर्च भविष्य में बाढ़ की चेतावनी देने वाला अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाने में मदद करेगी।
 
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