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Written By DW
Last Updated : शनिवार, 17 अक्टूबर 2020 (17:15 IST)

पराली नहीं अपनी किस्मत खाक कर रहे हैं किसान?

Parali | पराली नहीं अपनी किस्मत खाक कर रहे हैं किसान?
विवेक त्रिपाठी (आईएएनएस)
 
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ ही पराली जलाने का मुद्दा भी सामने आ जाता है। हवा की गुणवत्ता को खराब होने के लिए पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है। किसान अपनी लागत कम करने के लिए पराली जला देते हैं।
 
धान की कटाई शुरू हो चुकी है। रबी के सीजन में आमतौर पर कंबाइन से धान काटने के बाद प्रमुख फसल गेहूं के समय से बोआई के लिए पराली (डंठल) जलाना आम बात है। चूंकि इस सीजन में हवा में नमी अधिक होती है। लिहाजा पराली से जलने से निकला धुआं धरती से कुछ ऊंचाई पर जाकर छा जाता है जिससे वायु प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। कभी-कभी तो यह दमघोंटू हो जाता है।
 
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने पराली जलाने को दंडनीय अपराध घोषित किया है। किसान ऐसा न करें इसके लिए कई सरकार भी लगातार जागरूकता अभियान चला रही है। ऐसे कृषि यंत्र जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है, उन पर 50 से 80 फीसदी तक अनुदान भी दे रही है।
 
बावजूद इसके, अगर आप धान काटने के बाद पराली जलाने जा रहे हैं तो ऐसा करने से पहले कुछ देर रुकिए और सोचिए, क्योंकि पराली के साथ आप फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जलाने जा रहे हैं। यही नहीं, भूसे के रूप में बेजुबान पशुओं का हक भी मारा जाता है।
 
कृषि विषेषज्ञ गिरीष पांडेय बताते हैं कि शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसदी होती है। वे कहते हैं कि जलाने की बजाय अगर खेत में ही इनकी कम्पोस्टिंग कर दें तो मिट्टी को एनपीके की क्रमश: 4, 2 और 10 लाख टन मात्रा मिल जाएगी। भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टीरिया, फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वॉर्मिंग में कमी बोनस होगी। अगली फसल में करीब 25 फीसदी उर्वरकों की बचत से खेती की लागत इतनी घटेगी और लाभ इतना बढ़ जाएगा।
 
एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किलोग्राम उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं। प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है। सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए मान लें तो डंठल के रूप में 7,200 रुपए का भूसा नष्ट हो जाता है। बाद में यही चारे के संकट की वजह बनता है।
 
पांडेय के मुताबिक फसल अवशेष से ढंकी मिट्टी का तापमान सम होने से इसमें सूक्ष्म जीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं। अवशेष से ढंकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है। साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है।
 
पांडेय कहते हैं कि डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जुताई कर खेत में पलटकर सिंचाई कर दें। शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं।
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