रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. asia the worlds economic engine prepares for trump shock
Written By DW
Last Modified: मंगलवार, 12 नवंबर 2024 (07:57 IST)

ट्रंप के झटके को कैसे झेलेंगे भारत जैसे एशियाई बाजार

Donald Trump
जनवरी में अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने आयात पर भारी टैक्स लगाने का वादा किया है। इसमें चीन को खासतौर पर निशाना बनाया जा सकता है। अगर वह इस वादे को पूरा करते हैं तो भारत, इंडोनेशिया और वियतनाम आदि कुछ देशों को खासा फायदा हो सकता है। इसका कारण यह होगा कि कई फैक्ट्रियां चीन से हटकर एशिया के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित हो सकती हैं।
 
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध से वैश्विक बाजार अस्थिर हो जाएगा, और इसका सबसे बड़ा असर भी एशिया पर ही पड़ेगा, जो वैश्विक विकास में सबसे ज्यादा योगदान देता है।
 
ट्रंप ने पिछले हफ्ते जोरदार बहुमत के साथ राष्ट्रपति चुनाव जीता है। उन्होंने अपने प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह चीन से अमेरिका आने वाले सभी सामानों पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन स्थापित हो सके।
 
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नए राष्ट्रपति शायद इतनी ऊंची दर पर टिके नहीं रहेंगे। फिर भी, अगर ऐसा होता है तो इससे चीन की जीडीपी में 0.7 प्रतिशत से 1.6 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। इसका कुछ असर दक्षिण-पूर्व एशिया में भी महसूस किया जाएगा, जहां की उत्पादन क्षमता सीधे चीन से जुड़ी हुई है और चीन का अच्छा खासा निवेश है।
 
ऑक्सफर्ड इकोनॉमिक्स के एडम अहमद समादीन के अनुसार, "चीन पर टैरिफ बढ़ने के कारण अमेरिकी मांग में कमी से आसियान देशों के निर्यात पर भी असर पड़ेगा, भले ही इन देशों पर सीधे अमेरिकी टैरिफ न लगे हों।"
 
अमेरिका से सब जुड़े हैं
इंडोनेशिया विशेष रूप से संवेदनशील है, क्योंकि इसके खनिजों के निर्यात पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा जापान, ताइवान और दक्षिण कोरिया भी प्रभावित होंगे, जहां चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
 
ट्रंप ने यह भी चेतावनी दी है कि वह सभी आयातों पर 10 से 20 प्रतिशत तक की दर से टैरिफ बढ़ा सकते हैं। यह उनकी संरक्षणवादी नीतियों का हिस्सा है क्योंकि उनका मानना है कि अन्य देश अमेरिका का फायदा उठा रहे हैं।
 
समादीन के अनुसार, "इन प्रभावों का दायरा इस पर निर्भर करेगा कि हर देश की अर्थव्यवस्था का अमेरिकी बाजार से कितना सीधा संपर्क है।" उन्होंने कहा कि अमेरिका कंबोडिया के 39.1 प्रतिशत, वियतनाम के 27.4 प्रतिशत, थाईलैंड के 17 प्रतिशत और फिलीपींस के 15.4 प्रतिशत निर्यात का हिस्सा है।
 
चुनाव से पहले ही चीनी निर्यातकों में खलबली मची हुई थी। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में 2018 में चीन पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिससे "कनेक्टर देशों" का उभरना हुआ। इन देशों के जरिए चीनी कंपनियों ने अपने उत्पादों को अमेरिकी टैक्स से बचाते हुए भेजा। अब ऐसे देशों पर भी खतरा मंडरा रहा है।
 
जापान के सबसे बड़े बैंक मित्सुबिशी यूएफजी फाइनैंशल ग्रुप (एमयूएफजी) के वरिष्ठ विश्लेषक लॉयड चान ने कहा, "वियतनाम के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात भी ट्रंप के निशाने पर हो सकते हैं, ताकि चीन के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के वियतनाम के जरिए अमेरिकी बाजार में प्रवेश को रोका जा सके।" उन्होंने कहा, "यह असंभव नहीं है। व्यापार का पुनर्गठन खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में तेजी से हो रहा है।"
 
भारत पर असर
ट्रंप के  दूसरे कार्यकाल में भारत और अमेरिका के सुरक्षा संबंध पहले की तरह ही बने रहने की संभावना है। हालांकि, कारोबारी संबंधों के बारे में ऐसा अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। विदेश नीति विशेषज्ञ सी राजा मोहन का मानना है कि ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के कारण भारत से निर्यात की जाने वाली चीजों पर टैरिफ बढ़ सकता है। इससे आईटी, दवा और कपड़ा क्षेत्र पर खास तौर पर असर पड़ेगा।
 
ऑक्सफर्ड इकोनॉमिक्स की अर्थशास्त्री एलेक्जेंड्रा हरमन का मानना है कि भारतीय उत्पादों में चीनी हिस्सेदारी के कारण भारत भी ट्रंप के संरक्षणवादी उपायों का शिकार हो सकता है। नई दिल्ली स्थित ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव ने बताया कि ट्रंप भारत के ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स और वाइन सेक्टर पर ऊंचे टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो सकते हैं।
 
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के निदेशक अजय सहाय का कहना है कि यह व्यापार युद्ध भारत के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा, "ट्रंप एक सौदेबाज व्यक्ति हैं। वह भारत के कुछ उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिकी उत्पादों के लिए भारत में टैरिफ कम करने की मांग कर सकते हैं।"
 
मध्यम अवधि में, इन नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए चीन के बाहर फैक्ट्रियां स्थापित की जा सकती हैं, ताकि नुकसान से बचा जा सके। "चीन+1" रणनीति के कारण ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन की फैक्ट्रियां बड़े पैमाने पर भारत, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम में चली गई थीं।
 
वियतनाम को फायदा
वियतनाम अपनी भौगोलिक स्थिति और सस्ते कुशल श्रम के कारण पहले से ही इस रणनीति का लाभ उठा रहा है। वहां एप्पल की सहयोगी निर्माता कंपनी फॉक्सकॉन और पेगाट्रॉन और दक्षिण कोरिया की सैमसंग का निवेश है, जिससे यह चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन निर्यातक बन गया है।
 
यूरोपीय चैंबर ऑफ कॉमर्स इन वियतनाम के चेयरमैन ब्रूनो यास्पर्ट ने कहा, "यह संभावना बढ़ती है कि और अधिक कंपनियां चीन के बाहर दूसरा या तीसरा उत्पादन बेस स्थापित करना चाहेंगी।"
 
चीनी कंपनियां भी वियतनाम से लेकर इंडोनेशिया तक बड़े पैमाने पर निवेश कर रही हैं, खासकर सोलर, बैटरी, इलेक्ट्रिक गाड़ियों और खनिज क्षेत्रों में। हनोई स्थित अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यकारी निदेशक एडम सिटकॉफ ने कहा, "अमेरिकी कंपनियां और निवेशक वियतनाम में अवसरों को लेकर काफी उत्साहित हैं और यह रुचि ट्रंप प्रशासन में भी जारी रहेगी।"
 
लेकिन नोमुरा बैंक का कहना है कि निचले स्तर से लेकर उच्च तकनीकी उत्पादन तक, चीन की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को दोहराना मुश्किल है। आईएमएफ के एशिया उप निदेशक थॉमस हेल्ब्लिंग ने हाल ही में कहा था कि उत्पादन श्रृंखलाओं का पुनर्गठन "क्षमता में कमी" ला सकता है और कीमतें बढ़ा सकता है, जिससे वैश्विक विकास पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
 
इसलिए, एशियाई देशों की निर्यात बाजार में हिस्सेदारी बढ़ सकती है, लेकिन कमजोर वैश्विक मांग के चलते उनकी स्थिति और खराब हो सकती है।
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
 
 
 
ये भी पढ़ें
पश्चिम बंगाल में क्यों अब भी गंभीर है बाल विवाह की समस्या