क्रिकेट के मैदान पर करिश्मों को अंजाम देने वाले कप्तान रहे हैं इमरान
नई दिल्ली। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में आगे चल रहे इमरान खान की पहली पहचान हमेशा उस क्रिकेट कप्तान के रूप में रहेगी, जो मैदान पर नामुमकिन को मुमकिन बनाने का माद्दा रखता था और जिसने अपनी टीम को विश्व विजेता बनने का ख्वाब दिखाया और पूरा भी किया।
अस्सी के दशक में कई अंतरराष्ट्रीय कप्तान रहे लेकिन क्रिकेट के मैदान पर एक ही अगुआ था और वह इमरान खान था। यह वह दौर था जब भारतीय टीम अक्सर पाकिस्तान से हार जाया करती थी। अक्तूबर और नवंबर में जाड़े की धूप में अपने श्वेत श्याम टीवी के आगे दूरदर्शन पर नजरें गड़ाए बैठे भारतीय क्रिकेटप्रेमी यही सोचा करते थे कि काश इमरान उनका कप्तान होता।
संजय मांजरेकर ने अपनी आत्मकथा ‘इमपरफेक्ट’ में लिखा था कि अगर इमरान खान उसके कप्तान होते तो वह बेहतर क्रिकेटर होते। अपने दौर में बेहतरीन हरफनमौला रहे इमरान विश्व स्तरीय तेज गेंदबाज रहे लेकिन अपनी कप्तानी के दम पर उन्होंने जो इज्जत कमाई, उसने उन्हें अलग ही जमात में ला खड़ा किया।
भारत के पूर्व स्पिनर मनिंदर सिंह ने कहा, ‘वह उनका कप्तान, कोच, मुख्य चयनकर्ता सभी कुछ था। वह प्रतिभा का पारखी था और काफी जिद्दी भी।’ उस दौर में कई हरफनमौलाओं के बीच श्रेष्ठता की जंग छिड़ी थी। कपिल देव नैसर्गिक प्रतिभा के धनी थे तो रिचर्ड हैडली बेहद अनुशासित। इयान बॉथम जीनियस थे और इमरान खान दुनिया के किसी भी बल्लेबाज में दहशत भरने का माद्दा रखते थे। ऑक्सफोर्ड से पढ़े इमरान की शख्सियत सबसे जुदा थी।
वसीम अकरम उनसे ज्यादा कलात्मक गेंदबाज थे लेकिन अगर इमरान उनके सरपरस्त नहीं होते तो कैरियर में वह इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते। अकरम रिवर्स स्विंग के सुल्तान कहलाए जिन्होंने इमरान से ही यह कला सीखी थी।
एक दिन टीवी पर घरेलू मैच देखते हुए इमरान ने युवा तेज गेंदबाज को देखा। उन्होंने पीसीबी अधिकारियों से उसके बारे में पता करने को कहा। वह लड़का वकार युनूस था। इंजमाम उल हक भी इमरान की ही खोज थे जो 1992 विश्व कप के सितारे रहे।
एक कप्तान के तौर पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि जावेद मियांदाद के साथ तालमेल बिठाने की रही। दोनों की शख्सियत जुदा थी लेकिन साथ में खेलते हुए दोनों बेहद कामयाब रहे। भारत में इमरान की लोकप्रियता जबर्दस्त हुआ करती थी। वह जहां जाते भीड़ जुट जाती। उन्होंने थम्सअप और सिंथाल का विज्ञापन भी किया।
वह 1987 विश्व कप के बाद रिटायर हो चुके थे लेकिन उन्हें फैसला बदलना पड़ा। उन्होंने 1992 विश्व कप में वापसी की और चोट के कारण बतौर बल्लेबाज अधिक खेले। विश्व कप 1992 में टास से पहले इयान चैपल से बात करते हुए इमरान ने सफेद रंग का टीशर्ट पहन रखा था। उसके किनारे पर बाघ बना हुआ था जो बानगी दे रहा था कि कप्तान का किरदार कैसा हो।
पाकिस्तान को विश्व कप जिताकर क्रिकेट को अलविदा कहने वाले इमरान जैसी विदाई बिरलों को ही मिलती है।
बतौर सियासतदां इमरान कैसे साबित होंगे, यह तो मुस्तकबिल ही तय करेगा लेकिन एक क्रिकेटर और कप्तान के रूप में वह हमेशा कद्दावर रहेंगे।