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Written By ND

2009 में महँगाई बाय-बाय

2009 में महँगाई बाय-बाय -
- चन्द्रकांत शिंदे
इस समय सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आर्थिक मंदी और कुछ हद तक महँगाई के दौर का सामना कर रही है। ऐसे में लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगले साल देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था का हाल क्या होगा। ब्याज दरों की स्थिति क्या होगी, शेयर बाजार किधर जाएगा, बीमा क्षेत्र का हाल क्या होगा। इस तरह के कई सवालों का समाधान नईदुनिया ने अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों के जरिए खोजने का प्रयास किया है। उम्मीद है विशेषज्ञों की टिप्पणियाँ निवेशकों को मार्गदर्शन करने में सहायक होंगी।

अर्थव्यवस्था में ऐतिहासिक तेजी के साथ शुरू हुए वर्ष 2008 के शुभारंभ ने आम लोगों और निवेशकों में भारी उम्मीदें जगाई थीं। जनवरी के उत्तरार्द्ध और सितंबर के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक मंदी के दबाव में आती चली गई। ऐतिहासिक आर्थिक ऊँचाइयाँ नापने के स्थान पर वर्ष के अंत तक देश की अर्थव्यवस्था भारी आर्थिक तंगी का शिकार हो गई। ऐसे में सभी के जेहन में सवाल है कि 2009 कैसा होगा?

किधर जाएगी महँगाई : जिस तरह से पेट्रोल, डीजल के दामों में कटौती के बाद महँगाई का आँकड़ा 7 फीसदी से नीचे आ गया है, ऐसे में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मार्च 2009 तक देश में मुद्रास्फीति की दर 2 फीसदी से नीचे आ जाएगी। महँगाई नीचे आने से आम आदमी के साथ ही भारतीय कंपनियों को फायदा होगा, क्योंकि भारतीय कंपनियों का कारोबार अपने देश के लोगों पर ही निर्भर है।

क्या होगा ब्याज दरों का : इस बारे में क्रिसिल के प्रधान अर्थशास्त्री डीके जोशी का मानना है कि अगले साल महँगाई की दर काफी कम होगी। यही नहीं, ब्याज दरें भी काफी नीचे आ जाएँगी। रिजर्व बैंक ने हाल के महीनों में अपनी प्रमुख दरों में काफी कटौती की है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगले साल पहली तिमाही के दौरान ब्याज दरों में दो फीसदी की और कमी हो सकती है।

इससे आवास, कार, शिक्षा और व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज दरें काफी नीचे आ जाएँगी। देश की अर्थव्यवस्था वर्ष के अंत तक नीचे ही रहेगी और 2010 की पहली तिमाही में यह ऊपर उठेगी। पूरे विश्व में इस समय मंदी चल रही है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार इतनी जबर्दस्त मंदी विश्व में दिख रही है। अपने देश में घरेलू चीजों पर लोग निर्भर हैं और बाहरी डिमांड कम है।

रुपया होगा मजबूत : डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया मजबूत हो जाएगा। शॉर्ट टर्म डिपॉजिट बढ़ जाएँगे। हालाँकि डॉलर के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि डॉलर की चाल कई बातों पर निर्भर करती है।