बागपत (उप्र)। राजधानी दिल्ली से करीब 100 किलोमीटर दूर चंदायन गांव में अतिप्राचीन बसावट के अवशेष मिले हैं, जो हड़प्पा सभ्यता के उत्तरकाल के हो सकते हैं।
हड़प्पाकालीन सभ्यता का शुरुआती काल 3300 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व, उत्कर्ष काल 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व और अंतिम चरण 1900 ईसा पूर्व से 1600 ईसा पूर्व माना जाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद एके पांडेय ने बताया कि संयोगवश ईंट भट्टे के लिए मिट्टी खोद रहे किसी मजदूर का फावड़ा एक ऐसे नरकंकाल से टकराया जिसकी खोपड़ी पर तांबे का मुकुट सजा था।
पांडेय ने बताया कि नरकंकाल की खोपड़ी पर मिला मुकुट तांबे के पतरे से बना है जिस पर मूंगे जैसे रत्न की कीमती मणिकाएं जड़ी हैं, जो इससे पूर्व हड़प्पा सभ्यता से जुड़े अवशेष स्थलों पर मिली मणिकाओं से मेल खाती हैं।
उन्होंने बताया कि मुकुट को देखने से लगता है कि नरकंकाल किसी तत्कालीन कबीले अथवा गांव के मुखिया का हो सकता है। हमें वहां पक्की मिट्टी के कुछ बर्तन भी मिले, हालांकि वे सामान्य ही हैं और उनमें कुछ खास बात नहीं है।
पांडेय ने बताया कि मुकुटधारी नरकंकाल मिलने के बाद एएसआई ने हिंडन नदी के मैदानी इलाके में बागपत जिले की बड़ौत तहसील में स्थित गांव चंदायन के उस स्थान के पास खुदाई का काम शुरू करवाया।
उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष के उत्तरार्ध में शुरू हुई खुदाई में कुछ और ऐसे अवशेष मिले जिसके बाद एएसआई महानिदेशक की अनुमति से उस स्थान को विभाग के संरक्षण में ले लिया गया।
पांडेय ने बताया कि खुदाई का काम दिसंबर महीने तक पहुंचते-पहुंचते इस बात के पर्याप्त प्रमाण सामने आए कि उस इलाके में लगभग 4,000 साल पहले कोई गांव अथवा मनुष्यों की बसावट थी, जो समय के साथ जमीन में दब गई।
पांडेय ने बताया कि यह समयकाल ईसा पूर्व 1900 के आस-पास का लगता है जिसे हड़प्पन सभ्यता के उत्तरार्ध का अंतिम छोर माना जाता है। हड़प्पन सभ्यता की शुरुआत ईसा पूर्व 3,300 वर्ष से लेकर ईसा पूर्व 1900 तक मानी जाती है।
उन्होंने खुदाई में मिले अवशेषों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि एक जगह खुदाई में मिट्टी की बनी दीवार मिली है जबकि दूसरी जगह पर एक मकान की 3 सतहें पाई गई हैं।
एएसआई अधीक्षक ने बताया कि हालांकि चंदायन से करीब 20 किलोमीटर दूर सिनौली इलाके में कुछ वर्षों पहले हुई खुदाई में मिले कब्रिस्तान में हड़प्पाई सभ्यता के अवशेष पाए गए थे। यह पहला मौका है, जब उत्तरप्रदेश में उस काल की किसी बसावट के अवशेष मिले हैं।
पांडेय ने बताया कि चंदायन में कभी गांव अथवा कस्बा रहे होने वाले क्षेत्र के पास ही एक कब्रगाह भी मिली है जिसमें विभिन्न आकार के बर्तन मिले हैं। उन्हें देखकर लगता है कि उस दौरान मुर्दों के साथ बर्तन में खाने-पीने का सामान भी रखे जाने की परंपरा थी।
उन्होंने बताया कि कुछ जानवरों के भी कंकाल मिले हैं जिससे उस दौरान अंत्येष्टि के समय जानवरों की बलि देने की परंपरा के संकेत मिलते हैं और यह भी हड़प्पाकालीन सभ्यता के अनुरूप ही है।
पांडेय ने कहा कि अब तक के शोधों में सामने आए इस तथ्य के मद्देनजर कि हड़प्पाकाल में मुर्दों को दफनाते समय उनके साथ खाने-पीने का सामान रखने की परंपरा थी। चंदायन में मिले अवशेष हड़प्पाकाल के लगते हैं। ऐसे ही बर्तन चंदायन के निकट 20 किलोमीटर दूर सिनौली की कब्रगाह से मिले थे।
एएसआई के महानिदेशक राकेश तिवारी ने कहा कि दरअसल सिनौली में हड़प्पाकाल की 116 कब्रें मिली थीं, मगर वहां गन्ने की खेती होने के कारण किसानों ने खुदाई का काम आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी।
उन्होंने बताया कि यह दूसरा मौका है, जब किसी नरकंकाल की खोपड़ी पर मुकुट पाया गया है। इससे पहले हरियाणा के फतेहाबाद जिले में हड़प्पन सभ्यता के एक अवशेष स्थल पर मिले नरकंकाल के साथ मुकुट मिला था, जो कि सोने का बना था। (भाषा)