‘सहारा’ रेगिस्तान भी था हरा-भरा!
दुनिया के सबसे बड़े रेगिस्तान और दुर्गम क्षेत्र ‘सहारा’ का नाम सुनते ही कुछ याद आता है तो सिर्फ धूल, आग उगलता सूरज, गर्म रेतीली हवाएँ, और दूर-दूर तक पानी का नामों-निशान नहीं, कुल मिलाकर जीवन के लिए असंभव परिस्थितियाँ क्योंकि जहाँ पानी नहीं वहाँ जीवन भी नहीं। दरअसल रेगिस्तान के बारे में आमतौर पर हमारी धारणा यही रहती है। अफ्रीका महाद्वीप में 9,400,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैले रेत के इस महासागर को अरबी भाषा में ‘अस-सहारा अल कुब्रा’ अर्थात महान रेगिस्तान कहा जाता है।
पर गर्म रेत के विशाल टीलों वाले दुनिया के सबसे बड़े मरुस्थल सहारा में यदि 5000 साल पुराने किसी कब्रिस्तान में एक माँ की अस्थियाँ मिलें, जिसे उसके दो बच्चों के साथ दफनाया गया था, तो आप क्या कहेंगे? चमत्कार! नहीं, इससे साफ है कि सहारा में कभी जीवन था। जीवन ही नहीं बल्कि शोधकर्ता तो यहाँ तक कह रहे हैं कि सहारा रेगिस्तान कभी हरा-भरा और उपजाऊ भी था। क्या से क्या हो गया: सहारा रेगिस्तान के चप्पे-चप्पे से परिचित जानकारों का कहना है कि 6000 साल पहले तक वहाँ हरियाली बिखरी पड़ी थी। उत्तरी अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा पेड़ों और झीलों से भरा पड़ा था। स्वाभाविक तौर पर क्षेत्रफल में आस्ट्रेलिया से बड़े इस इलाके पर जीवन भी था। ऐसे हुआ खुलासा: शिकागो विश्वविद्यालय का एक अनुसंधान दल दक्षिण-पूर्वी अल्जीरिया में डायनोसोर के अवशेष तलाश रहा था, तभी उन्हें एक विशालकाय कब्रिस्तान का पता चला। विस्तृत खोज करने पर इंसानों के साथ ही पशुओं, बड़ी मछलियों और मगरमच्छों के अवशेष भी मिले। इतिहास के पन्नों को अगर थोड़ा पलटें तो नेशनल जियोग्राफिक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 और 2006 में भी इस स्थान पर 200 कब्रों का पता लगाया गया था। (आगे पढ़े...)
डायनासोर भी विचरते थे इस जगह : सहारा के प्राचीनकाल में हरे-भरे होने का एक और प्रमाण मिलता है वहाँ मिले जीवाष्मों से। नाइजर में जीवाष्मों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों को सहारा रेगिस्तान में मिले जीवाश्मों से माँसाहारी डायनासोर के दो नए प्रकारों की पहचान की है। जिनके बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी।2008
में एक्टा पैलेंटोलोजिका पोलोनिका जर्नल में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि एक डायनासौर संभवत: जीवित जानवरों का शिकार करता था और दूसरा मृत और अधखाए प्राणियों को खाता था। दोनों बड़े माँसाहारी समूहों का प्राचीन रिकॉर्ड बताता है कि ये अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत में कम से कम पाँच करोड़ साल पहले रहे होंगे। दूसरे प्रकार का नाम ईओकारकैरिया डाइनोप्स रखा गया है, जिसके दाँत ब्लेड की तरह थे। इससे अनुमान जताया गया है कि वह जीवित जानवरों का शिकार करता था। क्रिप्टोप्स पैलिओस नामक डायनासौर की लंबाई संभवत: 25 फीट थी और आधुनिक लकड़बग्घे की तरह यह भी मुर्दाखोर था।