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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
Last Updated : गुरुवार, 10 जुलाई 2014 (11:38 IST)

प्रलय के लिए जिम्मेदार हैं प्राकृतिक और खगोलीय घटनाएं...

प्रलय के लिए जिम्मेदार हैं प्राकृतिक और खगोलीय घटनाएं... -
सवाल उठता है कि आखिर प्रलय क्यों आती है। धरती पर पाप बढ़ने के कारण क्या ईश्वर प्रलय लाता है या कि प्रलय के और भी कई कारण हैं। दरअसल जो जानकार हैं वे कहेगें कि मानव ही है प्रलय का सृजनकार, क्योंकि उसने धरती पर जो जुल्म किया है, धरती उसका बदला लेने के लिए अब पूरी तरह तैयार है

* प्राकृतिक दोहन किए जाने से कमजोर पड़ती धरती
* ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पिघल रहे हैं ग्लैशियर
* ओजन पर्त में छेद के कारण बढ़ता धरती का तापमान
* धरती को खतरा आकाश से गिरने वाली उल्कापिंडों स

धरती के 75 प्रतिशत हिस्से पर जल है और सिर्फ 25 प्रतिशत हिस्से पर ही मावन की गतिविधियां जारी थी। आज से 200-300 सौ साल पहले मानव की आकाश और समुद्र में पकड़ नहीं थी, लेकिन जबसे मानव ने आकाश और समुद्र में दखलअंदाजी की है, धरती को पहले की अपेक्षा बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। तेल के खेल और खनन ने धरती का तेल निकाल दिया है। वक्त के पहले धरती को मार दिए जाने की हरकतें धरती कतई बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। इससे पहले कि मानव अपनी हदें पार करे धरती उसके अस्तिव को मिटाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।

धरती का अपना एक परिस्थितिकी तंत्र होता था। उस तंत्र के गड़बड़ाने से जीवन और जलवायु असंतुलित हो गया है। मानव की प्रकृति में बढ़ती दखलअंदाजी के चलते वह तंत्र गड़बड़ा गया है। मानव ने अपनी सुख, सुविधा और अर्थ के विकास के लिए धरती का हद से ज्यादा दोहन कर दिया है।

मांसाहार के अति प्रचलन के चलते मूक प्राणियों के मारे जाने की संख्या लाखों से करोड़ों में पहुंच गई। जो नहीं खाना चाहिए मानव वह भी खाने लगा है। शेर को बकरी नहीं मिलती, बकरी को चारा नहीं मिलता। कुत्ते को बिल्ली नहीं मिलती और बिल्ली को चूहा। बाज को सांप नहीं मिलता और सांप को इल्ली। सभी के हिस्से का भोजन मानव खाने लगा है।

जो पशु जीभ से पानी पीता है वह मांसाहारी और जो होठ लगाकर पानी पीता है वह शाकाहारी है। मानव भी एक शाकाहारी प्राणी है, लेकिन उसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल जहां जीवन के स्तर को अच्छा बनाने में किया, वहीं उसने स्वयं सहित धरती के जीवन को संकट में डाल दिया है तब निश्चत ही प्रकृति प्रलय का सृजन कर स्वयं को रिफोर्म करेगी। प्रकृतिक और खगोलीय घटनाओं के लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है।

प्राकृतिक घटनाएं -
ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते लगातार दुनिया के ग्लैशियर पिघल रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कहीं सुनामी तो कहीं भूकंप और कहीं तूफान का कहर जारी है। दूसरी और धरती के उपर ओजन पर्त का जो जाल बिछा हुआ है उसमें लगभग ऑस्ट्रेलिया बराबर का एक छेद हो चुका है। जिसके कारण धरती का तापमान 1 डिग्री बढ़ गया है। एक अन्य शोध के चलते वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप आदि आपदाओं के कारण धरती अपनी धूरी से 2.50 से 3 डिग्री घिसक गई है जिसके कारण भी जलवायु परिवर्तित हो गया है।

धरती पर से प्राकृतिक आपदा के कारण कई बार कई जाति और प्रजातियों का विनाश हो चुका है। वैसे मानव को अस्तित्व में आए वैज्ञानिकों अनुसार तो लगभग 2 करोड़ साल ही हुए हैं और एक दूसरी मान्यता अनुसार 80 लाख वर्ष पूर्व आधुनिक मानव अस्तित्व में आया। धरती की अब तक की आयु का आंकलन 4.5 अरब वर्ष किया गया है। हालांकि वैज्ञानिकों में इस बारे में मतभेद हैं।

वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती के सारे द्वीप (अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका आदि) एक दूसरे से जुड़े हुए थे, लेकिन धरती की घूर्णन गति (अपनी धुरी पर घूमना) के कारण ये सभी एक दूसरे से धीरे-धीरे अलग होते गए और इस प्रक्रिया में हजारों लाखों साल लगे। इस घूर्णन गति के कारण ही समुद्र और धरती के अंदर स्थित बड़ी-बड़ी चट्टानें घिसकर एक दूसरे से दूर होती रहती है जिसके कारण भूकंप और ज्वालामुखी सक्रिय होते हैं और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो आज भी जारी है और आगे भी निरंतर जारी रहेगी। लेकिन जब मानव इस स्वाभाविक प्रक्रिया में दखल देता है तो स्थिति और भयानक बन जाती है।

आज धरती की हालत पहले की अपेक्षा इसलिए खराब हो चली है कि मानव ने समुद्र, आकाश और भूगर्भ में आवश्यकता से अधिक दखल दे दिया है इसलिए वैज्ञानिकों के लिए सर्वप्रथम सबसे बड़ी चिंता का कारण आकाश से आने वाली कोई उल्कापिंड नहीं बल्कि धरती के खुद के ही असंतुलित होकर भारी तबाही मचाने का है। मौसम इस तेजी से बदल रहा है कि जलचर, थलचर और नभचर प्राणियों का जीना मुश्किल होता जा रहा है। हवा दूषित होती जा रही है। खाद्यान संकट बढ़ रहा है। मानव की जनसंख्‍या से पशु, पक्षियों और जलचर जंतुओं का अस्तित्व खतरे में हो चला है। परिस्थितिकि तंत्र गड़बड़ा रहा है तो स्वाभाविक रूप से मानव खुद ही प्रलय का निर्माता है।

खगोलीय घटनाएं -
हमारी आकाशगंगा जिसका नाम है 'मिल्की वे'। इस आकाशगंगा में धरती एक छोटा-सा ग्रह मात्र है जो कि 'मिल्की वे' के विशालकाय तारों और अन्य ग्रहों के मुकाबले एक छोटे से कंकर के समान है। एक आकाश गंगा में अरबों तारे (लगभग 250 बिलियन (अरब) सितारों का समूह), ग्रह, नक्षत्र और सूर्य हो सकते हैं।

हमारी आकाशगंगा की तरह लाखों आकाश गंगाएं हैं। प्रत्येक आकाशगंगा में सितारों के परिवार हैं, ग्रह, नक्षत्र, उपग्रह, एस्ट्रायड, धूमकेतू, उल्कापिंड और ज्वाला की भीषण भट्टियों के रूप में गैसों का अग्नितांडव (गैसीयपिंड) है।

ब्रह्मांड की अपेक्षा धरती एक जर्रा भी नहीं है। वैज्ञानिक शोध अनुसार धरती के समान करोड़ों अन्य धरती हो सकती हैं जहां जीवन हो भी सकता है और नहीं भी। अनंत है संभावनाएं।

जिस तरह धरती घूमती है उसी तरह वह घूमते हुए हमारे सूर्य का चक्कर लगाती है। शनि, शुक्र, मंगल, बुध, प्लूटो और नेप्चून सहित हमारे सौर मंडल में स्थिति सभी उल्काएं सूर्य का चक्कर लगाती हैं। सभी सूर्य के कारण अपनी-अपनी धूरी पर चलायमान हैं, लेकिन उनमें से कुछ उल्काएं जब अपने पथ से भटक जाती हैं तो वे सौर मंडल के किसी भी ग्रह से आकर्षण में आकर उस पर गिर जाती है या उसका सौर्य पथ पहले की अपेक्षा और लम्बा या छोटा हो जाता है। यह भी हो सकता है कि वे उल्काएं इस कारण स्वत: ही जल कर नष्ट हो जाएं।

जिस तरह धरती पर ज्वालामूखी फूट रहे हैं, सूनामी आ रही है, भूकंप उठ रहे हैं तूफान आ रहे हैं उसी तरह सूर्य सहित अन्य ग्रहों पर भी ये प्राकृतिक आपदाएं होते रहती हैं। जो ग्रह जितना बड़ा वहां आपदाएं भी उतनी बढ़ी और उसका प्रभाव उतना व्यापक। यदि सूर्य पर कोई बड़ी घटना घटती है तो उसका प्रभाव धरती पर भी होता हैं उसी तरह धरती का प्रभाव चंद्रमा पर भी होता है। इस प्रभाव से मौसम में परिवर्तन देखने को मिलता है। मौसम के बदलने से भूगर्भ हलचलें और बढ़ जाती है।

एस्ट्रायड (उल्कापिंड) या गैसीयपिंड के धरती के नजदीक से गुजरने या धरती से टकराने से धरती की जलवायु में भारी परिवर्तन देखने को मिलता है।

मानव ने ठंड से बचने के उपाय तो ढूंढ लिए, भूकंप, तूफान और ज्वालामूखी से बचने के उपाय भी ढूंढ लिए हैं, लेकिन धरती को सूर्य, एस्ट्रायड या अन्य ग्रहों के दूष्प्रभाव से कैसे बचा जाए इसका उपाय अभी नहीं ढूंढा है। धरती को बचाए रखना है तो जल्द ही इसके उपाय ढूंढना होंगे।