मजेदार कहानी : उछलू बंदर की चित्रकारी
उछलू बंदर बहुत नटखट था। सुबह से शाम तक शैतानी और ऊधम बस उसका एक ही काम था। कभी इस पेड़ से उस पेड़, तो कभी इस डाल से उस डाल कूदता रहता था। खूब मस्ती करता था दिन भर, परंतु दिमाग का वह बहुत तेज था। उसे प्राकृतिक दृश्य बहुत अच्छे लगते थे। कल-कल बहती नदी के किनारे वह घंटों बैठा रहता, नीले जल को निहारता और उछलती हुई लहरों को देखकर खुश होता रहता। नदी के पीछे सुदूर पर्वतों को देखता और सोचता कितने सुंदर होते हैं पर्वत। उसे हरे भरे पेड़ अच्छे लगते, वह डालियों को निहारता और उस पर बैठे पक्षियों की आवाज सुनकर आनंदित होता रहता।
उछलू सोचता, काश उसके पास कागज और रंग होते तो वह लकड़ी की कूची बनाकर सुंदर चित्रकारी करता। नदी बनाता उसमें तैरने वाले डोंगे बनाता और बतखों को कागज पर उतार देता। नीले आकाश के तारों को भी जमीन पर लाकर कागज पर उतारने की इच्छा हो आती। पर क्या करता, रंग कागज कुछ भी तो नहीं था उसके पास। नदी किनारे रेत से खेलता उदास बैठा रहता। एक दिन वह पास की बस्ती की एक दुकान में गया और दुकानदार से कुछ कागज और रंग मांगे।दुकानदार बहुत उदार था उसने चित्रकारी का सब सामान उछलू को दे दिया। उछलू ने दुकानदार को भरोसा दिलाया कि जैसे ही चित्रकारी के पैसे मिलेंगे, वह उधारी चुका देगा। उसकी योजना थी कि वह अपने सब मित्रों के चित्र बनाएगा और उन्हें बेचकर पैसे कमाएगा। सबसे पहले उछलू ने नदी का चित्र बनाया, पानी बनाया उछलती हुईं लहरें बनाईं और तैरती हुई नाव बनाई। नदी के पीछे वाले हरे भरे वृक्षों से लदे पहाड़ बनाए। उसकी चित्रकारी की बात बहुत जल्दी जंगल में आग की तरह चारों तरफ फैल गई कि उछलू बहुत अच्छी चित्रकारी करता है।