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Written By ND
Last Modified: मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009 (13:16 IST)

गर्मियों का ठंडा आइडिया

गर्मियों का ठंडा आइडिया -
गर्मी की छुट्टियों में मैं इस बार अपने दादाजी के यहाँ नहीं जाना चाहता हूँ। वे खंडवा में रहते हैं। हर बार गर्मियों की छुट्टियों में पापा मुझे और दीदी को वहाँ छोड़ आते हैं। मम्मी भी कुछ समय हमारे साथ वहीं रहती है। वहाँ जाने के बाद दो-तीन दिन तो अच्छा लगता है,पर इसके बाद क्या करो। गर्मी में घर के सारे लोग तो दोपहर में सो जाते हैं। हम बच्चे क्या करें।

बाहर खेलने जाओ तो सभी कहते हैं कि लू लग जाएगी, बाहर मत निकलो। मेरी बुआ तो कहती है कि क्या बच्चे हैं कुछ देर भी सीधे नहीं बैठ सकते हैं। भरी दोपहरी में भी खेलने को निकल पड़ते हैं। डाँट सुनने से तो अच्छा है कि घर में ही रहो। खंडवा में दोपहर को टीवी देखी जा सकती है, पर बिजली रहती ही कहाँ है।

तो दोपहर घर में कैसे काटे। यही सोचकर मैंने इस बार की गर्मी की छुट्टियों के लिए एक प्लान बनाया है। मेरी ही क्लास में मेरा एक दोस्त पढ़ता है इकबाल। वह गर्मियों की छुट्टियों में अपने पापा की कुल्फी की दुकान पर बैठता है और उसे यह काम बहुत ही अच्छा लगता है। वह कहता है कि जब इच्छा हो कुल्फी बेचो और जब इच्छा हो कुल्फी खाओ। दोपहर यहाँ रहो और शाम को घर चले जाओ। उसके पापा की दुकान रेलवे स्टेशन के बाहर ही है और जैसे ही गाड़ी आती है, भीड़ बढ़ जाती है और ऐसे में इकबाल हाथ बँटाता है। उसकी दोपहरी अच्छी कट जाती है और आते-जाते लोगों से बातचीत करके उसे बहुत कुछ पता भी चलता है।

इसीलिए तो क्लास में जब टीचर ने पूछा था कि दगडू गणेश मंदिर कहाँ है? तो वही बता पाया था कि वह मंदिर पुणे में है। पिछली गर्मियों में ही मैं दो दिनों के लिए उसकी दुकान पर गया था। वहाँ बहुत अच्छा लगा। इस बार इकबाल ने कहा है कि वह उसके पापा की दुकान के पास ही अपनी अलग दुकान लगाएगा नींबू के शर्बत की।

मैंने भी सोच रखा है कि इस बार उसकी दुकान पर हम दोनों मिलकर यात्रियों को आने-जाने वालों को ठंडा शर्बत पिलाएँगे। पापा से इसकी मंजूरी भी मैंने ले ली है। वे भी खुश हैं क्योंकि इस बार उनकी छुट्टियाँ भी हम लोगों के यहाँ रहने से अच्छी कटेंगी और उन्हें खाना भी तो नहीं बनाना पड़ेगा।
- अपूर्व कोठारी, रतलाम