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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022 (14:58 IST)

30 सालों के आंदोलन के बाद जो मिला था वह रास नहीं आया लद्दाख को, अगले साल से तेज होगा आंदोलन

30 सालों के आंदोलन के बाद जो मिला था वह रास नहीं आया लद्दाख को, अगले साल से तेज होगा आंदोलन - Movement will intensify in Ladakh from next year
जम्मू। करीब 30 सालों के आंदोलन के बाद लद्दाख ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 5 अगस्त 2019 को पाया तो मन की मुराद पूरी होने की खुशी अब हवा होने लगी है। कारण स्पष्ट है। वे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाने के कारण अब राज्य का दर्जा पाने को छटपटा रहे हैं। लद्दाखवासी अब अगले वर्ष तेज आदोलन करेंगे।
 
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के निवासियों ने क्षेत्र के हितों के संरक्षण की रणनीति के तहत वर्ष 2023 में राज्य दर्जे को लेकर आंदोलन तेज करने की तैयारी कर ली है। इसकी शुरुआत 2 नवंबर को लद्दाख बंद के साथ होगी। लेह में लद्दाख एपेक्स बॉडी व करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस की बैठक में 2 नवंबर को लद्दाख बंद का फैसला किया गया। इसके साथ ही लद्दाख के मुद्दों को लेकर आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए पूर्व मंत्री छेरिंग दोरजे की अध्यक्षता वाली कोर कमेटी का भी गठन किया गया। कमेटी के सदस्यों में नसीर हुसैन मुंशी, पूर्व सांसद थुप्स्टन छेवांग, पदमा स्टेंजिन, थिनलेस आंगमो, कमर अली अखून, असगर अली करबलई व सज्जाद करगिली शामिल हैं।
 
एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने राजधानी शहर लेह में संयुक्त बैठक कर कोर कमेटी का गठन किया है। इसमें युवाओं को शामिल किया गया है। दोनों संगठनों ने साफ किया है कि केंद्र ने उनकी मांगों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। ऐसे में उन्हें अपनी जमीन, रोजगार और पहचान को बचाने के लिए आंदोलन की ओर जाना पड़ रहा है। एपेक्स बॉडी के अध्यक्ष थुप्स्टन छेवांग ने कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए 3 साल पूरे होने जा रहे हैं।
 
यूटी बनाए जाने के बाद से ही लद्दाख के लोग अपनी जमीन, रोजगार, संस्कृति, जलवायु और पहचान को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पूर्ण राज्य और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर केंद्र से वार्ता जरूर हुईं लेकिन इसे लेकर टालमटोल ही किया गया। अगस्त 2021 में लेह और करगिल के लोगों ने मिलकर संघर्ष करने का फैसला लिया। अब कोर कमेटी का गठन किया गया है, जो दोनों प्रमुख मांगों को लेकर संघर्ष तेज करेगी।
 
दरअसल, जो यूटी का दर्जा बिना विधानसभा के मिला, वह अब लद्दाखवासियों को रास नहीं आ रहा है। यूटी मिलने के कुछ ही महीनों के बाद उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया। हालांकि इस आंदोलन ने अभी उतनी हवा नहीं पकड़ी है जितनी आग यूटी पाने की मांग ने पकड़ी थी। एक बार अगस्त महीने में भी इस मांग को लेकर बंद का आयोजन किया जा चुका है।
 
पर इस मुद्दे पर पिछले 3 सालों में कई बार बुलाई गई हड़ताल के बाद केंद्र सरकार लद्दाख को धारा 371 के तहत नॉर्थ-ईस्ट की तर्ज पर हद से बढ़कर अधिकार देने को तैयार है, पर लद्दाखी मानने को राजी नहीं हैं। हालांकि कुछ दिनों पहले लद्दाखी नेताओं की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान। उन्होंने 2 संसदीय क्षेत्र देने की बात को मान लिया, पर राज्य का दर्जा देकर विधानसभा न देने के पीछे कई कारण गिना दिए गए थे।
 
लद्दाख में अब राज्य का दर्जा पाने के साथ ही विधानसभा पाने को जिस आंदोलन को हवा दी जा रही है, उसका नेतृत्व लेह अपेक्स बॉडी कर रही है जिसके चेयरमेन थुप्स्टन छेवांग बनाए गए हैं। नॉर्थ ब्लॉक में अधिकारियों से मुलाकातों के बाद छेवांग को भी धारा 371 के तहत ही और अधिकार देने का आश्वासन दिया गया है जिसे लेह अपेक्स बॉडी तथा करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस मानने को राजी नहीं हैं।
 
ऐसे में लद्दाख से मिलने वाले संकेत यही कहते हैं कि लद्दाख के दोनों जिलों- लेह और करगिल में राज्य का दर्जा पाकर लोकतांत्रिक अधिकार पाने का लावा किसी भी समय फूट सकता है। 3 साल पहले जब करगिल को जम्मू-कश्मीर से अलग किया गया था था, तब भी उसने इसी चिंता को दर्शाते हुए कई दिनों तक बंद का आयोजन किया था। करगिलवासी भी लोकतांत्रिक अधिकारों की खातिर विधानसभा चाहते हैं।
 
Edited by: Ravindra Gupta