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Last Updated : शनिवार, 14 सितम्बर 2024 (08:07 IST)

1987 के बाद पहली बार कश्‍मीर में बदला राजनीतिक परिदृश्य, अब प्रत्याशियों को नहीं लगता डर

kashmir election
Jammu Kashmir elections : वर्ष 1987 के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर राज्य अपने राजनीतिक परिदृश्य में अभूतपूर्व क्षण देख रहा है। एक समय संघर्ष से घिरे इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और चुनाव एक साथ हो रहे हैं। जिन उम्मीदवारों को कभी सुरक्षा बलों की कड़ी सुरक्षा में दूर से मतदाताओं को संबोधित करना पड़ता था, वे अब अपने प्रचार अभियान के तहत हाथ मिला रहे हैं, समर्थकों को गले लगा रहे हैं और उनके साथ चाय भी पी रहे हैं।
 
यह जानकार आपको हैरानी होगी कि हिंसा के खतरे के कारण सूर्यास्त से पहले बंद होने वाला प्रचार अभियान अब आधी रात तक जारी है। श्रीनगर के ईदगाह निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व विधायक और वर्तमान पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के उम्मीदवार खुर्शीद आलम ने इस बदलाव पर टिप्पणी की, पहले हम सभी सूर्यास्त से पहले घर लौट आते थे। तब खतरा था। इन दिनों प्रचार रात 12 बजे तक चलता है।

वे कहते हैं कि कभी संकोच और डर से ग्रस्त लोग अब खुलेआम नेताओं का अपने घरों में स्वागत करते हैं, उन्हें चाय पिलाते हैं और वोट के लिए आशीर्वाद देते हैं। पिछले 40 वर्षों में इस स्तर की भागीदारी अभूतपूर्व है।
 
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पुलवामा में रहने वाले अब्दुल कयूम भट अतीत को याद करते हुए कहते हैं कि प्रत्याशी घर-घर जाकर प्रचार करने से डरते थे। उन्हें आतंकवादी संगठनों और हुर्रियत नेताओं द्वारा किए जाने वाले पथराव और चुनाव बहिष्कार का डर था। अब लोग अपने घरों से निकल रहे हैं और अपने मुद्दों को सीधे उम्मीदवारों से साझा कर रहे हैं।
 
हालांकि पिछले चुनाव चक्रों के घाव गहरे हैं। 1996 के चुनावों के दौरान, अलगाववादियों और आतंकवादी समूहों ने विशेष रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं को निशाना बनाया। हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों द्वारा पार्टी नेता मोहम्मद गुलाम की नृशंस हत्या और अन्य राजनीतिक हस्तियों पर अनगिनत हमलों ने खुले तौर पर राजनीतिक भागीदारी को हतोत्साहित किया।
 
पर इस बार एक बड़ा उलटफेर है - जो लोग कभी अलगाववादी समूहों के प्रभाव में चुनाव का बहिष्कार करते थे, वे अब सक्रिय रूप से राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद पहली बार, इस क्षेत्र में जमात-ए-इस्लामी के सदस्य, जो लंबे समय से चुनाव बहिष्कार से जुड़े हुए हैं, राजनीतिक मुख्यधारा में प्रवेश कर रहे हैं।
 
वैसे इस संगठन पर भारत के गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन इसके नेता निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। इन चुनावों को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है, कई लोगों का अनुमान है कि इस बार भारी मतदान होगा, चुनाव प्रचार जोरों पर होगा और राजनीतिक दलों की भागीदारी भी मजबूत होगी।

राजनीतिक विश्लेषकों को पिछले चुनावों की तुलना में इस बार अधिक मतदान की उम्मीद है, जहां प्रतिशत में नाटकीय रूप से उतार-चढ़ाव हुआ है। 1989 में मतदान प्रतिशत घटकर मात्र 5-10 प्रतिशत रह गया था, लेकिन 1996 तक सुरक्षा बलों ने इसे 50 प्रतिशत तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
 
इस बार बिना किसी जोर-जबरदस्ती के पूरे केंद्र शासित प्रदेश में उत्साह का माहौल है। इस राजनीतिक पुनर्जागरण में नए चेहरे उभर रहे हैं। मुफ्ती परिवार की तीसरी पीढ़ी इल्तिजा मुफ्ती राजनीति के मैदान में पदार्पण कर रही हैं, जबकि उमर अब्दुल्ला के बेटे पहली बार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। भाजपा जैसी स्थापित पार्टियों के साथ-साथ कई छोटे समूह भी चुनाव लड़ रहे हैं।
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