* प्रथम तीन गढके बदले तीन सुंदर पाट रखकर उस पर सिंहासन रखें। * नीचे के पाट पर बीच में केसर का स्वस्तिक निकालें और उस पर चावल रखकर श्रीफल रखें। * सिंहासन के बीच में केसर का स्वस्तिक निकालें और उस पर रुपये का सिक्का रखकर, तीन नवकार गिनकर उस पर धातु की प्रतिमाजी बिठाएँ। * प्रतिमाजी के दाहिनी ओर, प्रतिमाजी की नाक की ऊँचाई तक घी का दीप रखें। * बाद में स्नात्र पूजा करने वाले नाडाछडी बाँधकर हाथ में पंचामृत भरा हुआ कलश लेकर तीन नवकार गिन, प्रभुजी और सिद्धचक्रजी को * पक्षाल करें। (पंचामृत दूध, दही, शकर, घी और पानी का मिश्रण) * फिर बालाकुंची करके पानी का पक्षाल कर तीन कपड़ों से अंग पोंछकर केसर से पूजा करें। * बाद में हाथ धोकर खुद के दाहिने हाथ की हथेली में केसर का स्वस्तिक करें। * बाद में स्नात्र करने वाले कुसुमांजलि का थाल लेकर खड़े रहें। (कुसुमांजलि- केसर, चावल और पुष्प का मिश्रण)
(पंडित श्री वीरविजयजी कृत)
(पहले कलश लेकर खड़े रहना) काव्य (द्रुतविलंबित वृत्तम्)