भारत में पिछले दो वर्षों में इंटरनेट ने जिस तरह अपने पैर पसारे हैं, उसे देखते हुए यदि यह कहा जाए कि अगली क्रांति इंटरनेट से होगी तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जनवरी 2013 में जहाँ केवल 19 करोड़ भारतीय इंटरनेट का उपयोग करते थे वहीं आज यह संख्या 35 करोड़ को पार कर गई है। एक अनुमान के अनुसार 2017 तक यह संख्या 50 करोड़ को पार कर जाएगी। कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं की दृष्टि से अभी भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
लेकिन इंटरनेट की यह यात्रा इतनी आसान नहीं रही है। सबसे नए दस करोड़ उपयोगकर्ता भले ही एक साल से कम समय में जुड़े हों लेकिन पहले दस करोड़ उपयोगकर्ता पाने में इंटरनेट को 15 से अधिक साल लगे थे। हाल ही में भारत में इंटरनेट यदि इतनी तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है तो इसका श्रेय सीधे फ़ेसबुक और वॉट्सएप को दिया जाना चाहिए जिसने आम भारतीय को इंटरनेट का उपयोग करने का एक कारण दिया।
कुछ समय पहले जब इंटरनेट–प्रवेश को लेकर चर्चाएँ होती थीं तो एक ही प्रमुख मुद्दा होता था कि आखिर एक आम व्यक्ति के लिए इंटरनेट की क्या उपयोगिता है, वह इंटरनेट कनेक्शन आखिर ले ही क्यों? साथ ही एक प्रमुख सवाल यह भी था कि इंटरनेट कनेक्शन और कंप्यूटर खरीदने का खर्च बहुत अधिक है जिसे आम आदमी के लिए वहन कर पाना मुश्किल है। तकनीक ने करवट ली, मोबाइल टॉवरों के जरिए इंटरनेट का प्रसार संभव हुआ और स्मार्टफ़ोन के जरिए बहुउपयोगी छोटे कंप्यूटर उपलब्ध हुए। सस्ते स्मार्टफ़ोन ने इसे और भी तेज़ी दी।
लेकिन इस मूलभूत अधोसंरचना के पूरे होने के बाद भी सवाल एक ही था– मैं इंटरनेट पर खर्च करूँ क्यों? इसके जवाब के रूप में उभरे फ़ेसबुक और वॉट्सएप। इन दोनों ने इंटरनेट को कुछ उसी तरह लोगों में लोकप्रिय बनाया जिस तरह से 80 के दशक में 'रामायण' ने टेलीविज़न को बनाया था।
भारत में फ़ेसबुक और वॉट्सएक की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है। इनकी सफलता का मुख्य कारण आम लोगों के जीवन से इनका सीधा जुड़ाव है। फ़ेसबुक ने लोगों को अभिव्यक्ति और दो लोगों को पास लाने का आभासी माध्यम दिया जहाँ वे अपने मित्रों के जीवन की घटनाओं और विचारों को दृश्य–श्रव्य माध्यम में देख सकते हैं। खुद का प्रचार करने की भारतीय मानसिकता ने इसे अत्यंत लोकप्रिय बनाया। भारत में फ़ेसबुक के 13 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं तथा अमेरिका के बाद फ़ेसबुक का यह दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। इनमें से अधिकांश उपयोगकर्ता फ़ेसबुक का उपयोग मोबाइल द्वारा करते हैं।
भारत में इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग मोबाइल के माध्यम से किया जाता है। 35 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से लगभग 22 करोड़ इंटरनेट का उपयोग मोबाइल से करते हैं। 2016 तक यह संख्या बढ़कर 24 करोड़ होने का अनुमान है। 2014 में मोबाइल इंटरनेट पर होने वाला औसत मासिक खर्च 235 रु. था।
आसान उपयोग, फ़ोटो–वीडियो–स्टेटस शेयर करने की इसकी सुविधा और भारतीय भाषाओं में उपलब्धता के कारण भारतीय बाज़ार में बहुत आगे है तथा गूगल प्लस जैसे इसके प्रतिस्पर्धी कहीं टिक भी नहीं पाए। मोबाइल के साथ खाली बैठे किसी भी भारतीय के लिए फ़ेसबुक सबसे पसंदीदा टाइमपास है।
अपनी इसी सफलता को देखते हुए फ़ेसबुक ने अब भारत में एक अरब उपयोगकर्ता बनाने का लक्ष्य रखा है। इसी दिशा में इसके संस्थापक मार्क जुकरबर्ग भारत यात्रा पर आए थे तथा मुफ़्त इंटरनेट की अपनी योजना internet.org के लिए भारत सरकार से मदद माँगी थी। इस योजना के तहत स्मार्टफ़ोन उपयोगकर्ता फ़ेसबुक का उपयोग इंटरनेट पर खर्च किए बिना भी कर सकता है।
भारत में इंटरनेट क्रांति का दूसरा बड़ा वाहक बना वॉट्सएप जो कहने को तो एक मोबाइल पर मौजूद एक छोटा सा मैसेंजर है जिसके द्वारा हम किसी दूसरे वॉट्सएप उपयोगकर्ता से संवाद कर सकते हैं लेकिन वास्तव में इसने फ़ेसबुक के पूरक के रूप में काम किया। अर्थात इसने मोबाइल उपयोगकर्ता को वह सुविधाएँ दीं जो फ़ेसबुक में नहीं थीं। इसमें प्रमुख हैं दो या अधिक लोगों के बीच निजी और त्वरित संवाद तथा संदेश के अलावा फ़ोटो, गीत, वीडियो आदि तुरंत शेयर कर पाने की खूबी।
यह तो हुआ इसका लक्षित उपयोग लेकिन हमारे भारतीय जुगाडू मानस ने इसे संवाद करने के माध्यम के अलावा अपनी दैनिक आवश्यकताओं से भी उपयोग कर लिया। जैसे दुकान वाला अपना कोटेशन इससे भेजने लगा, बाजार गई बहूरानी दुकान पर देख रही साड़ियों के फ़ोटो भेजकर घरवालों से राय लेने लगी, कॉन्ट्रैक्टर फ़ोन पर ही साइट देख लेता है और यहाँ तक कि जयपुर में प्रसूता की डिलीवरी वॉट्सएप पर मिले निर्देशों को देखकर करा दी गई। अब तो वॉट्सएप पर कॉलिंग सुविधा भी उपलब्ध है।
अपनी इन्हीं खूबियों के कारण वॉट्सएप आम भारतीय के दैनिक आवश्यकताओं में रच–बस गया है। देश में अभी इसके लगभग 8 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो अत्यंत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार 98% भारतीय एंड्रॉइड उपयोगकर्ता वॉट्सएप का उपयोग करते हैं।
लोगों तक इंटरनेट को पहुँचाने का एक स्तर का काम मोबाइल इंटरनेट, सस्ते स्मार्टफ़ोन तथा फ़ेसबुक–वॉट्सएप के मिलाप ने कर दिखाया है। लोगों को इंटरनेट तक लाना अब परेशानी नहीं रही। अब यदि सरकार चाहे तो इस तैयार अधोसंरचना को आगे ले जाने में रुचि दिखा सकती है तथा लोगों को मोबाइल के माध्यम से ई–गवर्नेंस के लाभ देकर देश को आगे बढ़ा सकती है। (लेखक हिन्दी सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ हैं)