भारत से दूरी, चीन से करीबी और फिर चीन के कर्ज तले डूब जाने का अंजाम यह है कि श्रीलंका के तबाह होने के दृश्य पूरी दुनिया में साफ नजर आ रहे हैं। एक तरह से भारत की मदद और चीन की विस्तारवादी चाल के बीच श्रीलंका अपने लिए सही विकल्प नहीं चुन सका और तबाही के रास्ते पर आ गया है।
कोलंबो में स्थित राष्ट्रपति भवन जैसी ऊंची इमारत में भी जनता घुस गई। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के आवास को घेर लिया गया। वे राष्ट्रपति भवन छोड़कर सुरक्षित स्थान पर चले गए हैं।
राष्ट्रपति भवन में बिस्तरों पर आराम करने, स्विमिंग पुल में नहाने और किचन में खाना बनाकर खाने के हास्यास्पद दृश्य श्रीलंका के इतिहास में दर्ज हो गए हैं। एक बार फिर से श्रीलंका भारत और चीन की तरफ मदद की आस में देख रहा है। सबसे बड़ी मदद भारत से ही दी गई है, भारत ने श्रीलंका को 4 अरब डॉलर का उधार दिया है। सवाल यह है कि आखिर श्रीलंका की यह हालत हुई क्यों और अब उसका क्या होगा।
आखिर ऐसा क्यों हुआ?
पर्यटन : श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर का कर्ज है और उसका ब्याज चुकाने के लिए भी धन नहीं है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की आत्मा माने जाने वाला पर्यटन पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। कोरोना के चलते यहां का पर्यटन ध्वस्त हो चुका है।
देश की मुद्रा : देश की मुद्रा 80 प्रतिशत नीचे जा चुकी है, जिसकी वजह से आयात मुश्किल हो गया है और महंगाई आसमान पर है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक खाने-पीने की चीजें 57 प्रतिशत महंगी हो चुकी हैं।
चीन का कर्ज : श्रीलंका ने अपना हंबनटोटा पोर्ट चीन को 99 साल के लिए लीज पर दिया था, जिसे बाद में उसने वापस लेने की कोशिश की। इसके साथ ही लगातार चीन पर निर्भरता के चलते श्रीलंका पूरी तरह से उसके कर्ज तले डूब गया। श्रीलंका पर वर्तमान में करीब 51 अरब डॉलर का कर्ज है। चीन की करीबी ने उसे अपने मित्र राष्ट्र भारत से भी दूर कर दिया। जबकि भारत समय-समय पर श्रीलंका की मदद करता रहा है।
भूखमरी : यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका में लोग भूखे पेट सो रहे हैं और हर 10 में 9 परिवार एक वक्त का खाना खा रहे हैं। इसके अलावा कम से कम 30 लाख लोग तो सरकारी मदद पर ही निर्भर हैं।
स्वास्थ्य सेवाएं : स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो यह बुरी तरह प्रभावित हो चुकी हैं। जरूरी दवाओं और अन्य सामान के लिए डॉक्टर सोशल मीडिया पर मदद मांग रहे हैं। पासपोर्ट कार्यालयों में पासपोर्ट के लिए श्रीलंकाइयों की संख्या बढ़ गई है, ज्यादातर लोग देश छोड़कर काम की तलाश में विदेश जाना चाहते हैं। हाल ही में सरकारी कर्मचारियों को अगले तीन महीने के लिए हफ्ते में एक अतिरिक्त छुट्टी दी गई थी ताकि वे अपना अनाज खुद उगा सकें।
अब आगे क्या होगा?
ऐसी तबाही के हालात में सवाल यह है कि अब श्रीलंका का आगे क्या होगा। भारत में विदेश मामलों के जानकार और पत्रकार वैदप्रताप वैदिक ने तो अपने एक आलेख में यहां तक लिख डाला कि भारत को श्रीलंका को गोद ले लेना चाहिए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि श्रीलंका का क्या हाल हो चुका है। तो अब आगे श्रीलंका का क्या होगा?
निर्विरोध होगा राष्ट्रपति का चुनाव?
अगर संसद के सिर्फ एक सदस्य को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया जाता है, तो महासचिव को घोषित करना होगा कि उसे चुन लिया गया है। अगर एक से ज्यादा प्रत्याशी होते हैं तो एक गुप्त मतदान होगा। मतदान के आधार पर बहुमत से राष्ट्रपति का चुनाव होगा। इस बीच, श्रीलंका में इस बात की भी चर्चा है कि वहां सर्वदलीय सरकार का गठन किया जाए। हालांकि इसमें कितनी सफलता मिलेगी, इस बात लेकर भी अभी संदेह है।
नए राष्ट्रपति चुने जाने तक क्या?
श्रीलंका के संविधान के मुताबिक नए राष्ट्रपति के चुनाव तक वर्तमान प्रधानमंत्री कार्यवाहक राष्ट्रपति बन सकते हैं। अगर गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे देते हैं, तो रानिल विक्रमसिंघे एक महीने से भी कम समय के लिए कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाएंगे, जब तक संसद एक नए राष्ट्रपति का चुनाव नहीं कर लेती।
क्या कहा सांसद हर्षा डी सिल्वा ने?
प्रदर्शन के बीच श्रीलंका के सांसद हर्षा डी सिल्वा ने कहा कि पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के इस्तीफे और संसद के स्पीकर को अधिकतम 30 दिनों के लिए राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने पर सहमति व्यक्त की थी। उन्होंने आगे कहा कि नेताओं ने चुनाव पर सहमति जताई थी और कहा था कि सरकार के शेष कार्यकाल के लिए सांसद राष्ट्रपति द्वारा चुने जाएंगे और अगले कुछ दिनों में सर्वदलीय अंतरिम सरकार नियुक्त की जाएगी। कोलंबो टाइम्स अखबार में छपी एक खबर का शीर्षक श्रीलंका के दृश्य को स्पष्ट तौर पर दिखाता है। अखबार ने लिखा, मुद्राकोष पर टिकी है श्रीलंका की आखरी उम्मीद।