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Written By राम यादव
Last Modified: शनिवार, 25 फ़रवरी 2023 (18:55 IST)

ब्रिटेन में भी लोगों की मुश्किल, पड़ा सब्ज़ियों का अकाल

Britain
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान के लोगों को ही नहीं, भारत पर राज कर चुके ब्रिटेन के लोगों को भी इस समय खाने-पीने की कुछ चीज़ों के भारी अभाव का सामना करना पड़ रहा है। वहां के सुपर मार्केटों ने सब्ज़ियों की राशनिंग शुरू कर दी है। 
 
यूरोपीय संघ से नाता तोड़ लेने के बाद से ब्रिटेन को रह-रह कर ऐसी अजीब समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनकी वहां के नेताओं ने कल्पना तक नहीं की थी। यूरोपीय संघ के देशों के जो लाखों लोग ब्रिटेन में नौकरी-धंधे कर रहे थे, उनमें से बहुतेरों को अपने-अपने देशों में लौटना पड़ा।

ट्रक-चालकों और छोटे-मोटे काम करने वालों का अचानक ऐसा अकाल पड़ा कि पेट्रोल पंपों तक न तो डीजल-पेट्रोल पहुंच रहा था और न दुकानों में सही सामान। पेट्रोल पंपों के आगे न केवल लंबी-लंबीं कतारें लगती थीं, गाली-गलौज़ और मार-पीट तक की नौबत आ जाती थी। इस स्थिति में कुछ सुधार हुआ, तो अब उन सब्ज़ियों का अकाल पड़ गया है, जिनका एक बड़ा हिस्सा यूरोपीय संघ के दूसरे देशों से आया करता था।
 
इस समय स्थिति यह है कि ब्रिटेन के स्वदेशी-विदेशी सुपर मार्केटों में कई प्रकार की आम सब्ज़ियां या तो हर दिन मिल नहीं रही हैं या प्रतिव्यक्ति केवल एक सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन की अपनी सबसे बड़ी सुपरमार्केट चेन 'टेस्को' और वहां पैर जमा चुकी जर्मनी की सबसे बड़ी चेन 'अल्डी' ने सब्ज़ियों और फलों की प्रतिव्यक्ति एक निश्चित मात्रा तय कर रखी है। इनके दोनों बड़े प्रतिद्वंद्वियों 'असदा' और 'मॉरिसन' ने भी यही किया है।
 
सब्ज़ियों की राशनिंग : सबने अपने ग्राहकों को प्रतिव्यक्ति, अधिक से अधिक केवल तीन खीरे, कुछ गिने-चुने टमाटर और शिमला मिर्च की भी बस एक गिनी-चुनी मात्रा ही देने की नीति अपनाई है। तब भी, हो सकता है कि ये या फूलगोभी जैसी कुछ दूसरी सब्ज़ियां तथा फल कई बार दिखाई ही न पड़ें। टीवी चैनल 'स्काई न्यूज़'  का कहना है ब्रिटेन का सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक 'APS' अप्रैल का अंत आने से पहले इस तंगी में सुधार की संभावना नहीं देखता।
 
फलों और सब्ज़ियों की तंगी का कारण यह बताया जा रहा है कि अधिकतर सब्ज़ियां तथा  फल दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के जिन देशों से आते हैं, वहां मौसम अनुकूल नहीं रहने से फसल अच्छी नहीं रही। लोगों द्वारा उनकी जमाखोरी को रोकने के लिए राशनिंग का सहारा लेना पड़ा। ब्रिटेन का अपना सब्ज़ी उत्पादन भी काफ़ी कम रहा है। वहां के किसान संघ ने कम उत्पादन की संभावना से पहले ही आगाह कर दिया था। 
 
ब्रिटेन विदेशी आयात पर निर्भर है : दूसरी ओर, आयातकों और विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों के दौरान ब्रिटेन विदेशी आयात पर हमेशा बहुत अधिक निर्भर रहता है। लगभग 95 प्रतिशत टमाटर दिसंबर से मार्च तक आयात किए जाते हैं। ऐसे कई कारक है, जो कीमतों को बहुत बढ़ा रहे हैं। मुख्य रूप से ब्रेक्सिट से पहले, जब ब्रिटेन भी यूरोपीय संघ का सदस्य था, तब वहां के आयातकों को यूरोपीय संघ के अन्य देशों से आने वाली चीज़ों पर कोई सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) नहीं देना पड़ता था।
 
यूरोपीय संघ की सदस्यता त्यागने के बाद अब ब्रिटिश आयातकों को हर चीज़ पर सीमा शुल्क देना पड़ता है। इस शुल्क का भार, स्वाभाविक है कि बढ़ी हुई क़ीमतों के रूप में अंततः उपभोक्ताओं को ही झेलना पड़ता है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के देशों से आए सस्ते मज़दूरों-कर्मचारियों के चले जाने से खेती-किसानी करने की अनुभवी श्रमशक्ति का अभाव हो गया है। ब्रिटेन के जिन लोगों ने यूरोपीय संघ को तलाक देने के लिए 23 जून, 2016 को हुए जनमतसंग्रह के समय ब्रेक्सिट के पक्ष में मतदान किया था, अब वे भी पछता रहे हैं कि काश! हमने ऐसा नहीं किया होता।
 
नहले पर दहला : नहले पर दहला यह हो गया कि 31 जनवरी, 2020 के दिन ब्रेक्सिट लागू होते ही, यानी ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होते ही, एक विश्वव्यापी महामारी बनकर कोरोनावायरस आ धमका। उस पर क़ाबू पाते ही 24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर धावा बोल कर एक ऐसा युद्ध छेड़ दिया, जिसने पूरी दुनिया में अचानक ऊर्जा संकट पैदा कर दिया। बिजली, गैस और तेल की क़ीमतें आसमान छूने लगीं। खाने-पीने की चीज़ों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना ही था, और पड़ा भी। ब्रिटेन कई दशकों बाद की सबसे अधिक मंहगाई के दौर से गुज़र रहा है। सुपर मार्केटों में फलों और सब्ज़ियों वाले रैक प्रायः ख़ाली नज़र आते हैं।
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