भारतीय सेना ने बचाया था शेख हसीना और परिवार को...
ढाका। प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके परिवार के सदस्य नरसंहार के खतरे का सामना कर रहे थे लेकिन 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान भारतीय सैनिकों के एक समूह ने उन्हें बचा लिया था। पाकिस्तान पर जीत की यहां 44वीं वर्षगांठ मनाए जाने के बीच हसीना के पिता के करीबी सहयोगी ने बुधवार को यह कहा।
मुक्ति संग्राम में जीत के बाद की घटनाओं को याद करते हुए बांग्लादेश के संस्थापक और हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान के शीर्ष सहयोगियों में शामिल हाजी गुलाम मुर्शीद ने बताया कि उन्हें चार भारतीय सैनिकों के एक दस्ते ने उस मकान से सुरक्षित निकाल लिया, जहां बंगबंधु की पत्नी बेगम फजीलतुन्निसा को हसीना और तीन अन्य बच्चों के साथ कैद रखा गया था।
भारतीय दस्ते का नेतृत्व मेजर अशोक तारा कर रहे थे जिन्हें बांग्लादेश ने दो साल पहले बांग्लादेश का दोस्त सम्मान से नवाजा था।
मुर्शीद (85) ने बताया कि मकान की पहरेदारी कर रहे पाकिस्तानी सैनिक डरे हुए तो थे, लेकिन अकड़ दिखा रहे थे, ऐसा लगता था जैसे वे 17 दिसंबर की सुबह तक पाकिस्तान के आत्मसमर्पण करने की बात से बेखबर थे।
उन्होंने घटना को याद करते हुए बताया, मेजर तारा निहत्थे ही पाकिस्तानी सैनिकों की ओर बढ़े, एक गार्ड ने चिल्लाते हुए कहा कि यदि अपनी जान की सलामती चाहते हो तो एक कदम भी आगे मत बढ़ना वर्ना गोली मार दी जाएगी।
उन्होंने बताया कि इसके बाद के कुछ मिनट काफी खतरनाक थे, क्योंकि ऐसा लग रहा था कि हताशाभरे, डरे सहमे और दिशाहीन नजर आ रहे पाक गार्ड बंगबंधु के परिवार की हत्या करने जा रहे हैं।
मुर्शीद आखिरी व्यक्ति थे, जो बंगबंधु के साथ 25 मार्च 1971 तक मौजूद थे, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। (भाषा)