मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. France Pesidential Election
Written By Author राम यादव

फ़्रांस : युद्ध की छाया में राष्ट्रपति का चुनाव

फ़्रांस : युद्ध की छाया में राष्ट्रपति का चुनाव - France Pesidential Election
फ्रांस की जनता को इस बार यूरोप में चल रहे रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की छाया में 10 अप्रैल को मतदान के पहले और यदि ज़रूरी हुआ, तो 24 अप्रैल को दूसरे दौर में अपना अगला राष्ट्रपति चुनना है।
 
रूस ने 24 फ़रवरी को जब से यूक्रेन पर आक्रमण किया है, फ़्रांस के 44 वर्षीय वर्तमान राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों इस युद्ध की आग बुझाने में जुटे रहे हैं। वे रूसी राष्ट्रपति पुतिन को बार-बार फ़ोन करते रहे हैं। एक बार स्वयं मॉस्को जा कर छह घंटे तक उनके साथ सिर खपा चुके हैं। इसी कारण स्वदेश में अपना प्रचार अभियान शुरू तक नहीं कर पाए। ''सुबह टेलीफ़ोन पर पुतिन से बातें करना और शाम को रैलियों में नारेबाज़ी'' उन्हें जंच नहीं रही थी। दो बार उन्हें अपनी चुनावी रैलियां रद्द करनी पड़ीं।
 
अंततः मतदान की पहली तारीख़ से ठीक 9 दिन पहले, शनिवार 1 अप्रैल की शाम, एक रंगबिरंगी आतिशबाज़ी के बीच माक्रों पेरिस की 'ला देफेंस अरेना' में पहुंचे। वहां लगभग 30,000 समर्थकों ने ''संक़ आँ दे प्ल्यु'' (पांच साल और) के नारे के साथ उनका ज़ोरदार अभिनंदन किया। ''हम एक ऐसे समय यहां हैं,'' माक्रों ने कहा, ''जब यूक्रेन में युद्ध का प्रकोप चल रहा है। हम यहां हैं प्रगति की योजना का मार्ग प्रशस्त करने के लिए... अपने फ्रांस का, अपने यूरोप का भविष्य संवारने के लिए।'' उनका भाषण मुख्यतः फ्रांस की घरेलू राजनीति को समर्पित रहा। 
 
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच बार-बार रुकते हुए माक्रों ने कहा कि वे जनता की क्रयशक्ति बढ़ाना चाहते हैं। उनका प्रयास होगा कि देश की कंपनियां, गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ, अपने कर्मचारियों को 6000 हज़ार यूरो तक करमुक्त क्रयशक्ति-बोनस दें। रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ते ही डीज़ल-पेट्रोल फ़्रांस में भी बहुत मंहगा हो गया है। सरकार प्रेट्रोल को कुछ सस्ता करने के लिए प्रतिलीटर 18 यूरोसेन्ट (क़रीब15 रुपए) अनुदान दे रही है। 2000 यूरो से कम आय वाले हर परिवारों को सहायता के तौर पर एकबारगी 100 यूरो (1 यूरो = 85 रुपए) अलग से दिए जा रहे हैं। 
 
उपलब्धियां : कोविड-19 के होते हुए फ्रांस की अर्थव्यवस्था तेज़ी से सुधरी है। विकास दर 7 प्रतिशत के साथ 52 वर्षों के सबसे ऊंचे स्तर पर और बेरोज़गारी पिछले 10 वर्षों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर है। 2017 में सत्ता में आने के बाद माक्रों ने फ्रांस के श्रम कानून को कुछ इस तरह से उदार बनाया है कि कर्चारियों की भर्ती और छुट्टी, दोनों बातें आसान हो गई हैं। बोरोजगारी के समय मिलने वाली वित्तीय सहायता और पूंजी निवेशक व्यक्तियों एवं कंपनियों के करभार में कटौती की गई है। रोज़गार के अवसर कुल मिलाकर बढ़े हैं। 
 
लेकिन, दुबारा चुने जाने पर माक्रों अब तक की घिसीपिटी दक्षिणपंथी-वामपंथी विचारधाराओं की दीवारें तोड़ते हुए फ्रांसीसी समाज का कायापलट करना चाहते हैं। वे देश की रोज़गार दिलाने वाली एजेंसी के काम में सुधार लाना, एक उचित जीवनस्तर बनाए रखने के लिए दी जाने वाली सामाजिक सहायता के नियमों को और कसना तथा पेंशन के लिए आयु, इस समय के 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष करना चाहते हैं। 
 
माक्रों ने एक बार फिर चुनाव लड़ने का निर्णय मार्च के अरंभ में लिया। तीन सप्ताह बाद 300 पत्रकारों के साथ चार घंटे तक चली बातचीत के दौरान कहा कि यूक्रेन में चल रहा युद्ध 2019 के उनके इस कथन की पुष्टि करता है कि ''नाटो दिमाग़ी तौर पर मर चुका है।''

रूसी राष्ट्रपति के कारण पैदा हो गया नया ख़तरा नाटो की ''समरनीति के स्पष्टीकरण'' की और ''यूरोप के जाग जाने की'' मांग करता है। फ्रांस में राष्ट्रपति ही सर्वोच्च सेनापति होता है। माक्रों इसलिए रक्षा-बजट को दृढ़तापूर्क बढ़ाना और युद्धस्थिति में बुलाए जा सकने वाले रिज़र्व सैनिकों की संख्या दोगुनी करना चाहते हैं। 
 
पृष्ठभूमि : 44 वर्षीय इमानुएल माक्रों 1958 से चल रहे फ्रांस के पांचवें गणराज्य के आठवें और अब तक के सबसे युवा राष्ट्रपति हैं। उनके पिता तंत्रिका विज्ञान, यानी न्यूरोसाइंस के प्रोफ़ेसर हैं और मां बच्चों की डॉक्टर। दर्शनशास्त्र और राजनीतिशास्त्र की पढ़ाई के बाद प्रशासनिक कार्यों का प्रशिक्षण पा चुके माक्रों, फ्रांस के वित्त मंत्रालय में कुछ समय काम करने के बाद इनवेस्टमेंट (निवेश) बैंकर भी रहे हैं।

2017 में राष्ट्रपति-पद के चुनावी अखाड़े में कूदने से पहले माक्रों फ्रांस के उद्योगमंत्री भी रह चुके हैं। विचाराधारा से वे लोकतांत्रिक समाजवादी हैं और सामाजिक मामलों में इतने उदार कि उनकी पत्नी उनसे 24 साल बड़ी हैं! दोनों एक-दूसरे से जिन दिनों परिचित हुए थे, उस समय माक्रों मात्र 17 साल के थे। उनकी पत्नी स्कूल में फ्रेंच भाषा की उनकी शिक्षिका हुआ करती थीं।
 
रूस ने यूक्रेन पर जब से आक्रमण किया है, माक्रों ही इस वीभत्स युद्ध का जल्द से जल्द अंत करने के लिए तत्पर पश्चिमी जगत के सबसे सक्रिय नेता बन गए हैं। चुनावी अखाड़े में बहुत देर से कूदने के बावजूद, उनकी इस सक्रियता ने उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ा दी कि बाक़ी सभी 11 प्रत्याशी अपने भाग्य को कोस रहे होंगे। मतदान के पहले दौर से केवल एक सप्ताह पूर्व के मत सर्वेक्षण में, 27 प्रतिशत समर्थन के साथ, माक्रों सबसे आगे थे।

22 प्रतिशत के साथ धुर-दक्षिणपंथी 'रासेम्ब्लेमां नस्योनाल' पार्टी की नेता मरीन ले पेन दूसरे, और 15 प्रतिशत के साथ वामपंथी पार्टी 'ला फ़्रोंस इँसुमिज़' (अनम्य फ़्रांस/ बग़ावती फ़्रांस) के नेता ज़ौं ल्युक मेलेंशों तीसरे नंबर पर थे। 2017 के चुनाव के समय भी तीनों का यही क्रम था। ठीक पांच साल पहले जैसी ही स्थिति के कारण, कुछ जनमत सर्वेक्षकों का मानना है, कि इस बार एक-तिहाई मतदाता शायद मतदान करने जाएं ही नहीं। तब कुछ भी हो सकता है। सारे पूर्वानुमान उलट-पलट सकते हैं।
 
मत सर्वेक्षणों से यह भी संकेत मिलता है कि पहले दौर के मतदान का दिन निकट आने के साथ माक्रों के लिए समर्थन का अनुपात घटा है और मरीन ले पेन का अनुपात बढ़ा है। दो सप्ताह बाद मतदान के दूसरे दौर में इन्हीं दोनों के पहुंचने की संभावना है। आशंका है कि तब तक दोनों एक-दूसरे के कहीं इतना निकट न आ जाए कि माक्रों का जीत सकना संदिग्ध हो जाए। उन्हें मुख्य ख़तरा मरीन ले पेन से ही है।
 
मरीन ले पेन : 53 वर्षीय मरीन ले पेन की दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी पार्टी का नाम पहले 'फ्रों नस्योनाल' (नेशनल फ्रंट) हुआ करता था। उसकी स्थापना उनके अंधराष्ट्रवादी पिता ज़ौं-मरी ले पेन ने 1972 में की थी। 'फ्रांस सबसे पहले' नारे के साथ वे विदेशियों को फ्रांस से भगाने और यूरोपीय संघ से नाता तोड़ लेने की मांग किया करते थे।

वृद्धावस्था के करण 2011 में उन्होंने पार्टी का कार्यभार बेटी मरीन को सौंप दिया। पर, बाद में बाप-बेटी के बीच इतना मतभेद हो गया कि बेटी ने बाप को 2015 में पार्टी से ही निकाल बाहर कर दिया। पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए मरीन ने उसे ऐसा बनाया कि जो अंधराष्ट्रवादी या नस्लवादी नहीं हैं, वे भी उसका समर्थन कर सकें।
 
मरीन ले पेन को राष्ट्रवाद अपने पिता से विरासत में तो मिला ही है, एक ऐसी घटना से पुष्ट भी हुआ है, जिसमें उनके पूरे परिवार का सफ़ाया हो गया होता। जब वे आठ साल की थीं, तब एक रात उनके पैतृक घर पर बम से हमला हुआ। सभी लोग बच गए, पर परिवार बेघर हो गया। उस समय 'फ्रों नस्योनाल' के ही एक उत्साही समर्थक ने, जो कि एक बड़ा उद्योगपति भी था, पेरिस के एक उपनगर में एक आलीशान बंगला देकर उनके परिवार की सहायता की। बम किसकी कारस्तानी था, यह आज तक स्पष्ट नहीं है।

मरीन ले पेन को इस घटना से ऐसा मानसिक आघात लगा कि उन्हें लंबे समय तक उपचार कराना पड़ा। लोगों का मानना है कि विदेशियों और वामपंथियों के प्रति उनकी दुर्भावना के पीछे यह मानसिक आघात ही प्रमुख कारण है। मरीन ले पेन के दो अलग-अलग पतियों से तीन बच्चे हैं। दोनों विवाहों का अंत तलाक के साथ हुआ है। 
मरीन कुछ समय पहले तक कहा करती थीं कि कि वे यदि राष्ट्रपति बनीं, तो ब्रिटेन की तरह फ्रांस को भी यूरोपीय संघ से मुक्ति दिलाने के लिए जनमत संग्रह करवाएंगी। यूक्रेन पर रूसी हमला होने तक वे रूसी राष्ट्रपति पुतिन की समर्थक और प्रशंक रही हैं। 2019 के चुनाव के समय उन्हें रूसी बैंकों से 91 लाख यूरो के बराबर पैसा भी मिला था, जिसे उन्हें 2028 तक लौटाना है। इस समय पुतिन की विश्वव्यापी निंदा-आलोचना की आंधी ने उनका जोश अब कुछ ठंडा कर दिया है। यूरोपीय संघ और यूरो-ज़ोन वाली साझी मुद्रा 'यूरो' को त्यागने की बात अब वे नहीं करतीं। 
 
मेलेंशों : कम्युनिस्ट विचारधारा वाले 70 वर्षीय जौं-ल्युक मेलेंशों 'ला फ्रोंस अंसामीज़' (बग़ावती फ्रांस) नाम के एक नवोदित वामपंथी आंदोलन के नेता हैं। वे हमेशा जीन्स पैंट, सफ़ेद शर्ट और काली जैकेट में दिखाई पड़ते हैं। जन्म मोरक्को में रहने वाले एक फ्रांसीसी परिवार में हुआ था, जो 1962 में फ्रांस में बस गया।

उन्होंने दर्शनशास्त्र और साहित्य की पढ़ाई की है। 1977 से 2008 तक वे फ्रांसीसी सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य रहे और कई राजनैतिक पदों पर काम भी किया है। राष्टपति-पद के 2012 से लेकर अब तक के सभी चुनाव वे लड़ चुके और हार चुके हैं। इस बार भी यही होना निश्चित दिख रहा है।
 
भारत की ही तरह फ्रांस में भी पार्टियां बनती-बिगड़ती और मतदाता रुझानें बदलती रहती हैं। मारीन ले पेन की पार्टी उनकी निजी पार्टी के समान है, जबकि इमानुएल माक्रों और जौं-ल्युक मेलेंशों कामचलाऊ संरचनाओं वाले ढीले-ढाले आंदोलनों के मुखिया हैं। मध्यवर्गीय या समाजवादी पार्टियों की इस बार के चुनाव में कोई भूमिका नहीं रह गयी है
 
फ्रांसीसी चुनाव क़ानून : फ्रांस राष्ट्रपति की प्रधानता वाला लोकतंत्र है। राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। चुनाव-क़ानून के अनुसार, देश के हर निकाय के लिए मतदान करने और चुनाव लड़ने हेतु, देश की नागरिकता के साथ-साथ, कम से कम 18 साल की आयु होना और मतदाता सूची में नाम होना अनिवार्य है। यानी, फ्रांस की नागरिकता और 18 साल की आयु होने पर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति-पद के लिए भी प्रत्याशी बन सकता है!

लेकिन, प्रत्याशी के तौर पर नामांकन-पत्र भरने के लिए देश के आंतरिक या समुद्रपारीय, कम से कम 30 अलग-अलग 'डिपार्टमां' (प्रादेशिक प्रशासनिक इकाइयों) के कम से कम कुल 500 जनप्रतिनिधियों के समर्थन वाले हस्ताक्षर पेश करने होंगे। किसी एक 'डिपार्टमां' से 10 प्रतिशत से अधिक हस्ताक्षर स्वीकार नहीं किए जा सकते। इससे ऐसे लोग पहले ही छंट जाते हैं, जो गंभीर क़िस्म के नहीं होते।
 
यदि पहले मतदान में किसी भी प्रत्याशी को कुल पड़े वैध वोटों में से कम से कम आधे वोट नहीं मिले, तो दो सप्ताह बाद मतदान के दूसरे दौर में उन दो प्रत्याशियों में से किसी एक के निर्वाचन के लिए पुनः मतदान होगा, जिन्हें पहले दौर में क्रमशः पहला और दूसरा स्थान मिला था। इस दूसरे दौर में जिसे सबसे अधिक वोट मिले होंगे, उसे निर्वाचित घोषित किया जाएगा। यानी, फ्रांस का चुनाव-क़ानून ऐसा है कि निर्दलीय व्यक्ति और ऐसे लोग भी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकते हैं, जिन्होंने इसी उद्देश्य से अस्थायी तौर पर अपना कोई संगठन बना लिया है।
 
इस चुनाव-क़ानून की एक सबसे बड़ी कमी यह है कि चुनाव लड़ने के लिए किसी पार्टी का होना ज़रूरी नहीं है और यह भी हो सकता है कि दूसरे दौर में जीत सकने वाला कोई प्रत्याशी पहले ही दौर में छंट जाए। 2002 में प्रधानमंत्री रह चुके लियोनेल जोस्पां के साथ ठीक यही हुआ।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं करीब एक दशक तक डॉयचे वेले की हिन्दी सेवा के प्रमुख रह चुके हैं) 
ये भी पढ़ें
इफ्तार के बाद हो सकता है इमरान खान की किस्मत का फैसला, वोटिंग में व्यवधान से विपक्ष नाराज