अंतरिक्ष में शुभांशु शुक्ला अपने साथ क्यों ले गए मूंग और मेथी के बीज, जानिए क्या हैं इस मिशन के 7 अनोखे प्रयोग
Axiom 4 mission experiments: Axiom 4 मिशन चार अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष में गया है, जो विभिन्न देशों और संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण शोध कर रहे हैं। Axiom 4 मिशन के तहत अंतरिक्ष में गए भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अपने 14 दिनों के प्रवास के दौरान कई दिलचस्प प्रयोगों को अंजाम देंगे। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को सात प्रमुख प्रयोगों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ये सभी प्रयोग भारतीय संस्थानों द्वारा विकसित किए गए हैं और इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) नासा के साथ मिलकर इन पर काम कर रहा है। आइए जानते हैं शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में कौन-कौन से प्रयोग कर रहे हैं :
शुभांशु शुक्ला के 7 अहम अंतरिक्ष प्रयोग:
1. माइक्रोग्रैविटी के मांसपेशियों पर असर का अध्ययन: अंतरिक्ष में शून्य गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) का मानव शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर मांसपेशियों पर। अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स करीब साढ़े नौ महीने अंतरिक्ष में रहने के बाद जब लौटीं तो उनके पैर और पीठ की मांसपेशियों काफी कमजोर हो चुकी थी। भारत के Institute of Stem Cell Science and Regenerative Medicine माइक्रोग्रैविटी में होने वाले इस प्रयोग के तहत मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों का आगे अध्ययन करेगा और ऐसे इलाज विकसित कर सकेगा जो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों और बुज़ुर्गों के लिए काफ़ी कारगर हों।शुभांशु शुक्ला इस बात का अध्ययन करेंगे कि माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों की कार्यप्रणाली कैसे बदलती है और उन्हें मजबूत रखने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।
2. फसलों के बीजों से जुड़ा अध्ययन: इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य माइक्रोग्रैविटी वातावरण में विभिन्न फसलों के बीजों के अंकुरण और प्रारंभिक विकास का अध्ययन करना है। अंतरिक्ष में खाद्य उत्पादन भविष्य के चंद्र और मंगल मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। यह शोध हमें समझने में मदद करेगा कि कौन से बीज अंतरिक्ष की कठोर परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं और कैसे हम अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर खाद्य प्रणालियाँ विकसित कर सकते हैं।
3. छोटे जीव टार्डीग्रेड्स को लेकर अध्ययन: टार्डीग्रेड्स, जिन्हें "पानी के भालू" भी कहा जाता है, अपनी अविश्वसनीय सहनशीलता के लिए जाने जाते हैं। आठ पैरों वाले टार्डीग्रेड्स को दुनिया का सबसे कठोर और सहनशील जीव माना जाता है। ये धरती पर 60 करोड़ साल, यानी डायनासोर से भी करीब 40 करोड़ साल पहले से से जी रहे हैं। ये सालों तक बिना खाए पिए रह सकते हैं। भयानक गर्मी यहां तक कि रेडिएशन और वैक्यूम में भी जिंदा रह सकते हैं। शुभांशु शुक्ला इन जीवों पर माइक्रोग्रैविटी के प्रभावों का अध्ययन करेंगे, जिससे हमें जीवन की चरम अनुकूलन क्षमता के बारे में और अधिक जानने का अवसर मिलेगा।
4. सूक्ष्म शैवाल पर माइक्रोग्रैविटी के असर का अध्ययन: सूक्ष्म शैवाल (माइक्रोएल्गी) एककोशिकीय शैवाल होते हैं। ये मीठे पानी और समुद्री वातावरण दोनों में पाए जाते हैं। इस मिशन के तहत तीन तरह के माइक्रोएल्गी स्पेस स्टेशन में ले जाए गए हैं। माइक्रोग्रैविटी में इनका विकास कर ये देखा जाएगा कि क्या भविष्य के लंबे मिशनों में अंतरिक्षयात्रियों के पोषण में उनकी भूमिका हो सकती है। पौधों की तरह फोटोसिंथेसिस से ये न केवल ऑक्सीजन पैदा करते हैं बल्कि भोजन और जैव-ईंधन के स्रोत के रूप में भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इस प्रयोग में अंतरिक्ष में इन शैवाल के विकास और चयापचय का अध्ययन किया जाएगा, जो भविष्य के जीवन समर्थन प्रणालियों और अंतरिक्ष में संसाधन उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
5. मूंग और मेथी के बीजों पर शोध: माइक्रोग्रैविटी में बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया का अध्ययन किया जाएगा। इसके आधार पर ये देखा जाएगा कि इन्हें कैसे भविष्य की जरूरतों के लिए अंतरिक्ष में उगाया जा सकेगा। इन बीजों से उगे पौधों को धरती पर आगे कई चक्रों में आगे उगाया जाएगा। यानी उनसे निकले बीजों को अंकुरित कर नए पौधे तैयार किए जाएंगे। ये देखा जाएगा कि उन बीजों के जेनेटिक्स और माइक्रोबियल लोड पर क्या असर पड़ता है। इसके अलावा मूंग और मेथी के बीजों की पोषण क्षमता में आए बदलाव का भी अध्ययन किया जाएगा।
6. बैक्टीरिया की दो किस्मों से जुड़ा शोध: यह प्रयोग अंतरिक्ष में सूक्ष्मजीवों के व्यवहार का अध्ययन करेगा। बैक्टीरिया अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस शोध से हमें यह जानने में मदद मिलेगी कि माइक्रोग्रैविटी बैक्टीरिया के विकास और एंटीबायोटिक प्रतिरोध को कैसे प्रभावित करती है।
7. कंप्यूटर स्क्रीन का आंखों पर असर: आधुनिक जीवन में कंप्यूटर स्क्रीन का उपयोग आम है, लेकिन अंतरिक्ष में लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों पर क्या असर पड़ता है? यह प्रयोग अंतरिक्ष यात्रियों की आंखों पर कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के प्रभावों का अध्ययन करेगा, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष मिशनों के लिए बेहतर दिशानिर्देश और उपकरण विकसित किए जा सकें।
कुल मिलाकर, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के ये प्रयोग अंतरिक्ष में जीवन और मानव अस्तित्व से जुड़ी कई महत्वपूर्ण पहेलियों को सुलझाने में मदद करेंगे। यह मिशन न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान के नए द्वार खोल रहा है!