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Last Modified: सोमवार, 4 जुलाई 2022 (17:15 IST)

पिछले एक दशक में प्रशांत क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ी

पिछले एक दशक में प्रशांत क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ी - China's presence in the Pacific has increased over the past decade
हवाई। प्रशांत क्षेत्र में चीन की मौजूदगी के नए प्रारूप सामने आए हैं। यह मौजूदगी पहले केवल आर्थिक थी, लेकिन अब इसके और भी गहरे मायने हैं। छोटे राजनयिक कदमों से लेकर व्यापार को दोगुना करने तक, प्रशांत द्वीप राष्ट्रों में पिछले एक दशक के दौरान चीन के हितों का विस्तार हुआ है। ताइवान को लेकर बढ़ते तनाव एवं भू-राजनीतिक अस्थिरता वाली दुनिया में चीन इस क्षेत्र का स्थाई भागीदार बनने की स्थिति में है।

प्रशांत क्षेत्र में चीन की मौजूदगी की शुरुआत मत्स्य एवं खनन क्षेत्र में निवेश के साथ आर्थिक संबंधों के रूप में हुई थी, जो अब विशेष रूप से 2013 में ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) की घोषणा के बाद से अधिक समग्र आर्थिक, सुरक्षा एवं राजनयिक संबंधों के रूप में विकसित हो गई है। चीन ने प्रशांत द्वीप राष्ट्रों में कानून, कृषि एवं पत्रकारिता समेत शिक्षा के क्षेत्रों में भी मौजूदगी बढ़ाई है।

आर्थिक संबंधों से पहले ये रिश्ते ऐतिहासिक थे। चीनी मूल के लोग व्यापारी, मजदूर और राजनीतिक शरणार्थियों के रूप में 200 से अधिक वर्षों से प्रशांत द्वीपों में रह रहे हैं। ए लोग चीन के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व हिस्सों से इन देशों में गए थे।

1975 से पहले अधिकतर प्रशांत द्वीप देशों ने ताइवान (या चीन गणराज्य) को मान्यता दी थी। फिजी और समोआ 1975 में चीन के साथ राजनयिक संबंध विकसित करने वाले पहले देश बने। इसके बाद से क्षेत्र के आठ अन्य देशों पापुआ न्यू गिनी (1976), वानुआतु (1982), माइक्रोनेशिया (1989), कुक द्वीप (1997), टोंगा (1998), नीयू (2007), सोलोमन द्वीप (2019) और किरिबाती (2019) ने ताइवान के बजाय चीन के साथ औपचारिक संबंध स्थापित किए।

चीन सरकार अपनी इस बढ़ती मौजूदगी को ‘दक्षिण-दक्षिण सहयोग’ का नाम देती है, जिसके तहत वैश्विक दक्षिण में देशों के बीच ज्ञान, संसाधनों और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को प्राथमिकता दी जाती है। ‘यात्राओं की कूटनीति’ क्षेत्र में चीन के बढ़ते हितों की अहम संकेतक है। वर्ष 2014 के बाद से प्रशांत देशों की सरकार के प्रमुखों और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आमने-सामने की 32 बैठकें हुई हैं।

फिजी के नाडी में 2014 में शी और आठ प्रशांत द्वीप देशों के नेताओं के बीच हुई बैठक चीन की मौजूदगी के विस्तार की दिशा में अहम कदम थी। शी ने बीआरआई की ‘मैरीटाइम सिल्क रोड’ के तहत विकास की चीनी ‘एक्सप्रेस ट्रेन’ की सवारी करने के लिए इन देशों के नेताओं को आमंत्रित किया। तब से चीन के सभी क्षेत्रीय राजनयिक साझेदारों ने बीआरआई समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यात्रा के बाद के दो वर्षों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भी 175 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

चीनी विदेश मंत्री वांग ई का मई 2022 का सात प्रशांत द्वीप देशों का दौरा यात्रा कूटनीति का नवीनतम उदाहरण है, जो दर्शाता है कि कैसे चीन की उपस्थिति केवल आर्थिक संबंधों तक सीमित नहीं है। वांग ने यात्रा के बाद इन देशों के साथ 52 द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा सौदे किए, जिससे बीजिंग की क्षेत्रीय साझेदार के रूप में स्थिति मजबूत हुई।

चीन ने 1950 और 2012 के बीच ओशिनिया को लगभग 1.8 अरब डॉलर की मदद दी। वर्ष 2011 से 2018 तक के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, चीन प्रशांत क्षेत्र में सहायता देने के मामले में ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर है।

इसके अलावा, 2000 से 2012 के बीच चीन और प्रशांत क्षेत्र में उसके राजनयिक साझेदारों के बीच व्यापार 24 करोड़ 80 करोड़ डॉलर से बढ़कर 1.77 अरब डॉलर हो गया है। चीन ने पिछले 10 वर्ष में दो नए राजनयिक साझेदार जोड़े हैं और उन 10 में से आठ देशों में (कुक द्वीप और नीयू अपवाद हैं) दूतावास स्थापित किए हैं, जिनके साथ उसके औपचारिक संबंध हैं।

सोलोमन द्वीपसमूह और चीन के बीच अप्रैल 2022 में सुरक्षा समझौता हुआ था, जिसकी सटीक जानकारी का अभी खुलासा नहीं किया गया हैं। इस सुरक्षा समझौते के तहत चीन 'सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में मदद के लिए' सोलोमन द्वीपसमूह में पुलिस और सैन्यकर्मी भेज सकता है। इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि इस समझौते के तहत चीनी सैन्य अड्डा स्थापित किया जा सकता है।

प्रशांत देशों में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे ‘पारंपरिक’ साझेदार चीनी उपस्थिति को सीमित करने के लिए अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं, लेकिन प्रशांत द्वीप राष्ट्र की सरकारें प्रभाव के लिए उभरती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच अपना भविष्य स्वयं निर्धारित कर सकती हैं।
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