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Last Updated : बुधवार, 5 जुलाई 2017 (15:21 IST)

चौंक जाएंगे धोखेबाज चीन के इस आरोप पर

चौंक जाएंगे धोखेबाज चीन के इस आरोप पर - China new trick on Sikkim
भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है। इसी बीच चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत पर पंचशील समझौता तोड़ने का आरोप लगाया है। भारतीयों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही चीन है जिसने पंचशील समझौते और हिन्दी चीनी भाई भाई के नारे की आड़ में पीठ में छुरा घोंपते हुए का भारत पर हमला कर दिया था। 
 
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत ने पंचशील समझौते की नींव रखी थी और अब भारत ने ही इसे तोड़ दिया है। सिक्किम सीमा पर तनाव के चलते चीनी मीडिया भी भारत के खिलाफ जमकर जहर उगल रहा है। चीन की ओर से यह भी कहा गया है कि गतिरोध खत्म करना भारत की जिम्मेदारी है। 
 
चीनी मीडिया में भी भड़काऊ लेख : चीन की आधिकारिक मीडिया ने भारत पर हमला और तेज कर दिया और अपने-अपने संपादकीय में स्थिति को चिंता का विषय बताते हुए भारतीय सैनिकों को सम्मान के साथ सिक्किम सेक्टर के डोका ला इलाके से बाहर चले जाने को कहा। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि भारत को कड़ा सबक सिखाना चाहिए। एक अन्य सरकारी अखबार चाइना डेली ने लिखा कि भारत को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा कि भारत अगर चीन के साथ अपने सीमा विवादों को और हवा देता है तो उसे 1962 से भी गंभीर नुकसान झेलना पड़ेगा।
 
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अखबार ने लिखा कि हमारा मानना है कि चीनी सरजमीन से भारतीय सैनिकों को निकाल बाहर करने के लिए चीन की जनमुक्ति सेना (पीएलए) पर्याप्त रूप से सक्षम है। भारतीय सेना पूरे सम्मान के साथ अपने क्षेत्र में लौटने का चयन कर सकती है या फिर चीनी सैनिक उन्हें उस इलाके से निकाल बाहर करेंगे। इसमें लिखा है, इस मुद्दे से निपटने के लिए राजनयिक और सैन्य अधिकारियों को हमें पूरा अधिकार देने की आवश्यकता है। 
 
संपादकीय में कहा गया कि उसका यह दृढ़ मत है कि इस टकराव का खात्मा दोंगलांग से भारतीय सैनिकों के पीछे हटने से होगा। चीन इस क्षेत्र को दोंगलांग कहता है। इसमें कहा गया, अगर भारत यह मानता है कि उसकी सेना दोंगलांग इलाका (दोक ला) में फायदा उठा सकती है और वह ढाई मोर्चों पर युद्ध के लिए तैयार है तो हमें भारत को यह कहना पड़ेगा कि चीन उनकी सैन्य ताकत को तुच्छ समझता है।
 
अखबार ने लिखा है कि भारत के रक्षामंत्री अरुण जेटली सही हैं कि भारत की वर्ष 2017 की स्थिति वर्ष 1962 से अलग है- इसलिए अगर भारत संघर्षों को उकसाता है तो उसे वर्ष 1962 की तुलना में कहीं अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा।