क्या हार का इनाम है पाकिस्तान का 'नया' फील्ड मार्शल आसिम मुनीर, भारत के इन 2 फील्ड मार्शल के सामने है बौना
asim munir promoted field marshal: पाकिस्तान ने हाल ही में अपने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोशन किया है। मुनीर अब तक पाकिस्तान में जनरल के पद पर थे। पहलगाम आतंकी हमले से पहले उनके विडिओ सोशल मीडिया पर काफी वायरल थे जिनमें वे भारत विरोधी बातें करते हुए दिखाई दे रहे थे। पाकिस्तान के इतिहास में यह दूसरी बार है जब किसी अधिकारी को यह सर्वोच्च सैन्य रैंक दी गई है। इससे पहले, जनरल मुहम्मद अयूब खान को 1959 में यह पद मिला था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कौन हैं भारत के वे दो महान और जांबाज फील्ड मार्शल जिनकी नेतृत्व क्षमता और वीरता का लोहा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने माना? आइये जानते हैं, साथ ही जानते हैं कितना महत्वपूर्ण होता है फील्ड मार्शल का पद।
क्या है फील्ड मार्शल का पद?
फील्ड मार्शल सेना में एक 'फाइव स्टार' रैंकिंग का पद होता है, जो सैन्य पदानुक्रम में सर्वोच्च स्थान रखता है। यह एक औपचारिक और सम्मानजनक पदवी है, जो किसी असाधारण सैन्य उपलब्धि, युद्ध में अभूतपूर्व नेतृत्व या देश के लिए अतुलनीय योगदान के लिए प्रदान की जाती है। फील्ड मार्शल का पद प्राप्त करने वाले अधिकारी को पूरे जीवन सैन्य प्रतिष्ठान में सर्वोच्च स्थान मिलता है और वे सक्रिय सेवा में न होते हुए भी राष्ट्रीय रक्षा नीतियों और रणनीतिक मामलों में महत्वपूर्ण सलाहकार की भूमिका निभा सकते हैं। वे कभी सेवानिवृत्त नहीं होते और आजीवन सैन्य अधिकारी माने जाते हैं। उन्हें जनरल का पूरा वेतन मिलता है साथ ही उन्हें उनकी मृत्यु तक एक सेवारत अधिकारी माना जाता है
भारत के दो अमर 'फील्ड मार्शल' जो बन गए शौर्य की मिसाल
भारत का सैन्य इतिहास ऐसे ही दो महान फील्ड मार्शलों की कहानियों से भरा है, जिनके नाम आज भी हर भारतीय के लिए गर्व का विषय हैं। भारत के इन दोनों फील्ड मार्शलों की उपलब्धियां विश्व सैन्य इतिहास में दर्ज हैं।
1. फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw): 'सैम बहादुर' के नाम से लोकप्रिय सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल थे। उन्हें 1 जनवरी, 1973 को इस पद पर पदोन्नत किया गया था। मानेकशॉ ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना का असाधारण नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का ऐतिहासिक उदय हुआ और पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा। उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता, सैनिकों के प्रति उनका लगाव और उनका करिश्माई नेतृत्व ही था जिसने भारत को इतनी बड़ी विजय दिलाई। वह भारतीय सैन्य इतिहास के एक स्वर्णिम अध्याय के रचयिता हैं।
2. फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा (Kodandera Madappa Cariappa - K.M. Cariappa): स्वतंत्र भारत के पहले सेना प्रमुख, जनरल के.एम. करियप्पा को 15 जनवरी, 1986 को फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान देश के प्रति उनकी अतुलनीय सैन्य सेवा के साथ 1947-48 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनके असाधारण नेतृत्व के लिए भी दिया गया था। करियप्पा ने भारतीय सेना के 'भारतीयकरण' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसे एक मजबूत व पेशेवर बल के रूप में स्थापित किया।
क्या हार का ईनाम है पाकिस्तान का 'नया' फील्ड मार्शल
हाल ही में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया है। मुनीर के प्रमोशन की खबरें ऐसे समय में आई हैं, जब कुछ दिनों पहले ही कथित तौर पर उन्हें भारत के हाथों 'ऑपरेशन सिंदूर' में मिली शिकस्त के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। सोशल मीडिया पर उनके भारत विरोधी वीडियो भी काफी वायरल थे। आसिम मुनीर की इस पदोन्नति को लेकर पाकिस्तान के भीतर और बाहर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं। कई विश्लेषक इसे हार का इनाम और एक राजनीतिक कदम मान रहे हैं, न कि विशुद्ध सैन्य उपलब्धि।