वॉशिंगटन। सीनेट की विदेश मामलों से संबंधित समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन को रूस के साथ भारत के संबंधों और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थानों में आ रही गिरावट पर ध्यान देने की जरूरत है, खासकर तब जब अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा जारी रिपोर्ट में एक मजबूत और लोकतांत्रिक भारत का समर्थन करने का आह्वान किया गया है।
सीनेट के विदेश मामलों के अध्यक्ष सीनेटर रॉबर्ट मेनेंडेज ने गुरुवार को कहा कि अमेरिका को सभी संसाधनों और सरकार के पूर्ण समर्थन के साथ हिंद-प्रशांत (रणनीति) की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। स्ट्रेटेजी एलाइनमेंट : द इम्पेरेटिव ऑफ रिसॉर्सिंग द इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी नामक रिपोर्ट गुरुवार को जारी की गई।
मेनेंडेज ने कहा, मेरा मानना है कि राष्ट्रपति बाइडन की एक साल पहले जारी की गई हिंद-प्रशांत रणनीति इस सरकार के समग्र दृष्टिकोण को अपनाती है। यदि यह रणनीति सफल हुई तो इससे 21वीं सदी में दुनिया के सबसे अधिक परिणामी और गतिशील क्षेत्र में अमेरिका का नेतृत्व मजबूत होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, बाइडन प्रशासन अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को पूरी तरह से चीन के खिलाफ न रखने को लेकर सही है। हालांकि इसमें सफलता पाने के लिए अमेरिका को इस प्रतिस्पर्धा की वास्तविकताओं से जूझना होगा और अपने क्षेत्रीय सहयोगियों तथा भागीदारों की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ अमेरिका ने 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक रवैए का मुकाबला करने के लिए 'क्वाड' (चतुष्पक्षीय संवाद समूह) स्थापित करने संबंधी प्रस्ताव को आकार दिया था।
चीन लगभग सभी विवादित दक्षिण चीन सागर पर दावा करता रहा है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम भी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते रहे हैं। बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं।
अपनी सातवीं एवं आखिरी सिफारिश में मेजर स्टाफ रिपोर्ट ने एक मजबूत और लोकतांत्रिक भारत का समर्थन करने का आह्वान किया है। रिपोर्ट में कहा गया है, भले ही प्रशासन का भारत को एक महत्वपूर्ण सुरक्षा भागीदार मानना सही है, लेकिन उसे रक्षा उपकरणों के लिए रूस के साथ भारत के निरंतर संबंधों और निर्भरता की वास्तविक जटिलताओं और हाल ही में उसके लोकतांत्रिक मूल्यों तथा संस्थानों में आई गिरावट को दूर करने के लिए काम करना होगा।
मॉस्को के यूक्रेन पर हमले के बावजूद भारत और रूस के बीच संबंध मजबूत बने रहे। अमेरिका भारत को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अपने सबसे बड़े रक्षा आपूर्तिकर्ता रूस पर निर्भर रहने से भी हतोत्साहित करता रहा है।हालांकि भारत ने अमेरिका की चेतावनी के बावजूद अक्टूबर, 2018 में एस-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की पांच इकाइयां खरीदने के लिए रूस के साथ पांच अरब अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
एस-400 को रूस की सबसे उन्नत लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और चीन भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार बनने की होड़ करते हैं।
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने जून 2022 में बताया था कि अमेरिका के साथ व्यापार चीन से अधिक हो गया है, जो अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है। रिपोर्ट में कहा गया, दरअसल, दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंध दो दशकों से अधिक समय से काफी बेहतर स्थिति में हैं। दोनों देशों के संबंध शीतयुद्ध की दुश्मनी, भारत के परमाणु कार्यक्रम और 1998 में परमाणु परीक्षण को लेकर उत्पन्न मतभेद से ऊपर उठ चुके हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में सुरक्षा संबंध नाटकीय रूप से गहरे हुए हैं, क्योंकि दोनों देश चीन के कदमों को लेकर अधिक चिंतित हैं। इसमें कहा गया है, अमेरिका और भारत अब प्रमुख रक्षा साझेदार हैं और दोनों देशों ने क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी और 6जी नेटवर्क, अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर, बायोटेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर सहयोग बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण तथा उभरती प्रौद्योगिकियों की दिशा में एक नई पहल की है।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)