प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई शहर और सभ्यताएं तबाह हो गईं। आज भी खुदाई के दौरान उनके अवशेष मिलते रहते हैं। भूकंप से प्राचीन मीनोअन सभ्यता तथा सीदाम और गोमोराह जैसे नगर कुछ ही क्षणों में समाप्त हो गए थे। मेनलोनार्थ कैलीफोर्निया के भूकंप विशेषज्ञ रास स्टीव के अनुसार, भूकंप मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा दलदली भूमि में तीव्रता के साथ आता है एवं अत्यधिक क्षति पहुंचाता है। सन् 1989 में कोबे जापान तथा सेन फ्रांसिस्को के मेरीना में आया भूकंप नमी वाली जमीन पर था। इससे अपार धन-जन की हानि हुई।
अमेरिका के एक अन्य भूकंपवेत्ता वेयन थेचर ने एक भूगर्भीय सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है। इसके अनुसार दो भीषणतम भूकंपों के बीच की अवधि एक हजार से पाँच वर्ष की होती हैं, जबकि इससे कम शक्तिशाली वाला भूकंप शताब्दी के अन्दर ही आ जाता है। यह कभी भी, किसी भी समय अपनी तबाही ला सकता है।
गत पांच-छह हजार वर्षों का जो इतिहास प्राप्त हो सका है, उसके अनुसार इसी बीच में मिस्र, बेबीलोनिया, असीरिया, ईरान, यूनान, रोम आदि की भूमंडल में प्रसिद्ध सभ्यताएं पूर्णतया नष्ट हो चुकी हैं।
आइए, जानते हैं ऐसे ही शहरों और सभ्यताओं के बारे में जो प्राकृतिक आपदाओं में नष्ट हो गए....
रेत में दफन एक सभ्यता... पढ़ें अगले पेज पर...
राजस्थान में प्राचीन सभ्यता के अवशेष : उत्तर पश्चिम राजस्थान में कालीबंगा या उससे पहले भद्रकाली से लेकर सुल्तान पीर, माणक थेड़ी, रंग महल, बड़ोपल, कालीबंगा व पीलीबंगा और उससे आगे तक अनेक ऐसे थेड़ (थेहड़ या माटी के ढेर) हैं, जहां एक प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले। कहते हैं कि ये बस्तियां थीं। पर सवाल उठता है कि यह कैसे हुआ? कैसे एक आबादी अचानक ही मानो रेत की बारिश में दबकर नष्ट हो गई।
वैसे एक जीता जागती सभ्यता अचानक कैसे लुप्त हो गई इस सवाल के अलग अलग जवाब हैं। उपलब्ध ऐतिहासिक, पुरातात्विक और वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि कालीबंगा भूकंप से नष्ट हुआ भारतीय इतिहास का पहला शहर है।
साइंस एज (अक्टूबर, 1984, नेहरू सेंटर, मुंबई) में डी. लाल ने कालीबंगा के भूकंप को अर्लीएस्ट डेटेबल अर्थक्वेक इन इंडिया कहा है। भूकंप के कारण धरती में पड़ी दरारों से सरस्वती का पानी नीचे भूमिगत जलधाराओं में जाकर लुप्त हो गया।
कालांतर में मौसमी बदलावों से अकाल, सूखा पड़ने लगा और भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण अरावली पर्वतमाला ऊपर उठने लगी, जिससे सरस्वती की सहायक नदियों के रास्ते बदल गए और सरस्वती के बहाव क्षेत्र में टीले आकर जमने लगे और धीरे-धीरे रेगिस्तान बढ़ने लगा। इसी रेगिस्तान में कालीबंगा, पत्तन मुनारा जैसे नगर 2500-1500 ई.पू. में जमींदोज हो गए।
सरस्वती नदी का तट : दरअसल यह सभ्यता एक नदी के किनारे विकसित हुई जिसे सरस्वती नदी माना जाता है। कालीबंगा के मिट्टी के ढेर से मिले अवशेषों के आधार पर कहा गया है कि लगभग 4700 साल पहले यहां सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पाकालीन सभ्यता फल-फूल रही थी। यह नदी अब घग्घर नदी के रूप में है। सतलज उत्तरी राजस्थान में समाहित होती थी।
इतिहास कहता है कि सिंधु घाटी सभ्यता दुनिया की सबसे व्यवस्थित सभ्यताओं में से एक थी। व्यवस्थित नगर, व्यवस्थित जीवन जैसे कि फुकुशिमा (जापान) के लोगों का? अगर आज से 5000 साल बाद सूनामी से तबाह हुए फुकुशिमा जैसे शहरों की बात होगी तो इन्हीं शब्दों में लिखा जाएगा कि यह बहुत व्यवस्थित सभ्यता थी। तो पहले भूकंप और फिर जलप्रलय?
एक खूबसूरत शहर जो भूकंप में तबाह हो गया... पढ़ें अगले पेज पर...
अपने लम्बे इतिहास के दौरान पेट्रा (जॉर्डन) को बहुत सारे भूकंपों का सामना करना पड़ा है। विदित हो कि इसे अरबी में अल बतरा के नाम से जाना जाता है जो कि दक्षिण जॉर्डन में स्थित है। यह शहर करीब एक बहुत बड़ी अरेबियन प्लेट के ऊपर स्थित है जिसके परिणामस्वरूप धरती का ऊपरी भाग गतिशील रहता है।
जो क्षेत्र प्लेटों के ऐसे स्थानों के नीचे होते हैं, जहां वे एक दूसरे से मिलती हैं या काटती हैं, ऐसे इलाकों में ज्यादातर भूकंप आता है। पूर्वी भूमध्यसागरीय इलाके में एक साथ तीन प्लेटें मिलती है इसलिए पेट्रा और इसके आसपास के क्षेत्र को भूकंपों से बहुत अधिक खतरा बना रहता है।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि 16 मई, ईसा पश्चात 363 में पेट्रा में एक बहुत भयानक भूकंप आया था जिससे इसे बहुत नुकसान हुआ था। समकालीन रिकॉर्ड में कहा गया है कि आधा शहर नष्ट हो गया था और पुरातत्वविदों का कहना है कि पेट्रा के मेन थिएटर को काफी नुकसान पहुंचा था।
इसके प्रमुख मंदिर (कसर अल-बिंत) और कोलोनेडेड स्ट्रीट समाप्त हो गई थी। भूकंप के कारण पानी की सप्लाई को नुकसान पहुंचा था। आर्थिक रूप से सक्षम पेट्रा फिर से खड़ा हो सकता था, लेकिन व्यापार के मार्गों में बदलाव के कारण शहर की ताकत खत्म हो गई थी। ईसा पश्चात 363 में ऐसा लगता है कि पेट्रा को अपने को बनाने के साधन नहीं थे।
विदित हो कि 1976 में पुरातत्वविदों ने पेट्रा (जॉर्डन) की खुदाई करवाई और जहां से एक नष्ट हुए छोटे घर से पुरावस्तुएं मिलीं और 85 छोटे ऐसे कांसे के सिक्के मिले जिन पर रोमन सम्राट कांस्टेंटियस की तस्वीर बनी है और इनमें से ज्यादा सिक्कों को ईसा पश्चात 354 में बनाया गया है। इसलिए कहा जा सकता है कि भूकंप इससे पहले नहीं आया होगा। इसको लेकर कई अन्य प्रमाण हैं। यह दुनिया का ऐतिहासिक शहर है।
रोमन शहर जिसे ज्वालामुखी निगल गया... पढ़ें अगले पेज पर....
जिसे ज्वालामुखी निगल गया : 79 ईसा पश्चात का यह रोमन शहर पॉम्पेई एक नजदीकी ज्वालामुखी के फटने से नष्ट हो गया था। शहर की पूरी आबादी ज्वालामुखी के लावे और चट्टानों के नीचे दब गई। उस समय पॉम्पेई की आबादी 20 हजार थी। यह एक समय पूरे रोम का सबसे शानदार पर्यटन स्थल था। 1748 में इसे अचानक से दोबारा खोजा गया।
मंदिरों का केंद्र : 800 ईसा पश्चात बसा शहर अंगकोरवाट कंबोडिया में स्थित है। 1431 में थाई सेना के आक्रमण के चलते यह नष्ट होता गया। इस शहर में अनेक बौद्ध मंदिर थे। सन 1800 से पहले इस शहर का कोई नामो-निशान नहीं था। बाद में फ्रेंच पुरातत्वविदों के एक समूह ने इसे दोबारा खोजा।
अब से 25-30 हजार वर्ष पहले अटलांटिक महासागर में एक महाद्वीप की सभ्यता संसार में सर्वश्रेष्ठ थी, ऐसा पता कुछ शोध करने वाले विद्वानों ने लगाया है। पर वह भी काल के थपेड़ों, भूकंप के धक्कों से विनष्ट हो गई और वहां के इने-गिने व्यक्ति ही बच कर अन्य स्थानों में पहुंच सके जहां उन्होंने नई सभ्यताओं को जन्म दिया।
बेमिसाल लड़ाकों का राज्य, जिसे भूकंप ने तबाह कर दिया... पढ़ें अगले पेज पर...
स्पार्टा : ईसा पूर्व 464 में भूकंप ने स्पार्टा को नष्ट कर दिया। सभी को पता है कि स्पार्टावासी बेमिसाल लड़ाका थे जिन्होंने फारस की आक्रमणकारी सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया था। लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि उनका समाज उन गुलामों से भी बना था जिन्हें हेलोट्स कहा जाता था, बाद में इन्हीं लोगों ने स्पार्टा शहर को जीत लिया था। स्पार्टा के लोगों ने किसी तरह नाराज हेलोट्स पर काबू पा लिया था लेकिन 7.2 तीव्रता वाले भूकंप ने 20 हजार लोगों के शहर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था।
क्रेट द्वीप : ईसा पूर्व 365 में सूनामी ने मेडीटेरिनियन महासागर स्थित क्रेट द्वीप को पानी में डुबा दिया था और इसी के साथ ही द्वीप की सांस्कृतिक विरासत भी पानी में समा गई। अब यह अंदाजा लगाया जाता है कि उस समय 8.5 की तीव्रता के भूकंप के कारण सूनामी आई थी। इस द्वीप के बारे में प्राचीन इतिहासकार अमीनस मार्सेलिनस के विवरण से जाना जा सकता है कि यह कितना समृद्ध था।
भूकंप कितना ताकतवर था इसे इस बात से जाना जा सकता है कि द्वीप के कुछ हिस्से नौ मीटर तक ऊंचे हो गए थे। साथ ही हजारों की जलसमाधि हो गई थी। इस भूकंप से पैदा हुई दो मीटर ऊंची लहरें मिस्र के सिकंदरिया तक को नुकसान पहुंचाने में सफल रही थीं।
जब मीलों दूर खिसक गए थे पर्वत... पढ़ें अगले पेज पर....
इसी तरह आधुनिक लीबिया के बंदरगाह शहर अपोलोनिया भी सूनामी से पहले बहुत विस्तृत था, लेकिन सूनामी के कारण इसकी भी जलसमाधि हो गई थी। पर अब तक का सर्वाधिक भयानक भूकंप 1556 में चीन में आया था जिसका असर नौ राज्यों में हुआ था। 8 की तीव्रता वाले भूकंप में 830,000 लोग मारे गए थे।
यह इतना भीषण था कि इसने हुआ शान पर्वतों को मीलों दूर तक खिसका दिया था। इसके छह माह के बाद तक ऑफ्टरशॉक्स आते रहे और इनका क्रम पांच वर्षों तक बना रहा। विदित हो कि पायरेट्स ऑफ कैरिबियंस में जिस पोर्ट रॉयल बंदरगाह को दर्शाया गया है, वह किसी समय वास्तविक बंदरगाह था।
पर 1962 में आए एक भीषण भूकंप के चलते न केवल बंदरगाह वरन आसपास का इलाका पानी में चला गया। ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण वाला दो तिहाई हिस्सा पानी के 8 मीटर नीचे समा गया। अभी भी शहर बना हुआ है लेकिन यह फिर कभी पहले जैसा नहीं बन सका है। इस दुर्घटना में पांच हजार लोगों की मौत हुई थी।
तहस नहस हुआ लिस्बन : भूकंप और सूनामी के गठजोड़ ने पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन को तहस नहस कर दिया और 8.7 की तीव्रता के भूकंप से 33 फीट ऊंची लहरों ने दस मिनट में ही न केवल पुर्तगाल वरन स्पेन और मोरक्को को भी चपेट में ले लिया और इस आपदा में कम से कम 50 हजार लोगों की जान चली गई। लेकिन इस घटना के बाद एक सकारात्मक परिवर्तन यह हुआ कि भूकंप और सूनामी जैसी आपदाओं के बारे में वैज्ञानिक तरीकों से सोचा जाने लगा।
इनके भी अवशेष कहते हैं अपनी तबाही की कहानी... पढ़ें अगले पेज पर...
माचु-पिच्चु : दक्षिणी अमेरिका के पेरु में स्थित माचु-पिच्चु दुनिया के सर्वाधिक रहस्यमय शहरों में से एक है। एंडीज पर्वत पर बसा यह शहर दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक है। 1911 में अमेरिकी इतिहासकार हिराम बिंघम ने दोबारा इसकी खोज की थी। इस शहर के अवशेष दुनिया के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक हैं।
ट्रॉय : ट्रॉय आधुनिक तुर्की में आज भी स्थित है। यह ऐतिहासिक शहर ट्रोजन वॉर के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है। यह एक बेहद पुराना शहर था, जिसे 1870 में हेनरिच शीलमैनन ने दोबारा से एक खुदाई के दौरान खोजा था। पुराना ट्रॉय स्कैमेंडर नदी के किनारे बसा था और लकड़ियों के घरों से घिरा हुआ था।
गुमनाम शहर जेड : ब्राजील के घने जंगलों में बसा शहर जेड दुनिया के सबसे आधुनिक बसाहट वाले शहरों में गिना जाता रहा। जेड शहर में पुलों का नेटवर्क, सड़कें और मंदिर थे। जेड को 1753 में एक पुर्तगाली ने खोजा था और इसके पहले यह कभी चर्चा में नहीं आया। उसके बाद यह शहर खोजकर्ताओं को सबसे ज्यादा आकर्षित करता रहा।
वर्ष 1925 में इसकी खोज में गए खोजकर्ता पर्सी फेवसेट फिर कभी नहीं लौटे और इसके बाद कई खोजकर्ता भी गुम हो गए। हाल ही के वर्षों में इस शहर को कुहीकुगू नाम से अमेजन के जंगलों में दोबारा खोजा गया। जेड की सभ्यता के निशान इस शहर में दिखाई देते हैं। संभव है कि यह पुराना जेड शहर हो।
इस शहर की खोज तो अब तक जारी है... पढ़ें अगले पेज पर...
एटलांटिस शहर : एटलांटिस सिवाय एक मिथ के कुछ नहीं रहा। 360 ईसा पूर्व सबसे पहले यूनान के दार्शनिक प्लेटो ने इसे दुनिया का सर्वाधिक सभ्य नागरिक सभ्यता का केंद्र माना था। समुद्र में डूबकर एक पहेली बन जाने वाले इस शहर को पूरे यूरोप का केंद्र भी कहा जाता रहा। बहरहाल, एटलांटिस की खोज भी लंबे समय तक जारी रही, लेकिन यह शहर एक तरह से प्लेटो की कल्पना ही बना रहा। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि वे एक ना एक दिन इस शहर को भी खोज लेंगे।